Che Guevara:टी-शर्ट्स पर दिखने वाला कौन है ये शख्स,10 हजार किमी की बाइक यात्रा,सशस्त्र क्रांति, जिसकी दुनिया है दीवानी

Che Guevara: चे-ग्वेरा (Che Guevara) अपने एक दोस्त के साथ दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर बाइक से निकले थे। उन्होंने यात्रा के दौरान देखा कि समाज दो हिस्सों में बंटा है। चे-ग्वेरा ने क्यूबा क्रांति में सेनापति जैसी भूमिका निभाई और सशस्त्र क्रांति से वहां तख्तापलट कर दिया।

Dhanish Srivastava
Published on: 24 Jun 2023 5:08 AM GMT
Che Guevara:टी-शर्ट्स पर दिखने वाला कौन है ये शख्स,10 हजार किमी की बाइक यात्रा,सशस्त्र क्रांति, जिसकी दुनिया है दीवानी
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Che Guevara ( file Pic credit: Social Media)

Che Guevara: क्यूबा की क्रांति का जिक्र हो चे-ग्वेरा (Che Guevara) का नाम नहीं आए। ऐसा संभव नहीं है। क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के सेनापति चे-ग्वेरा की जिंदगी और संघर्ष ऐसी दास्तां है, जिसे आज भी दुनिया के लोग हीरो की तरह पसंद करते हैं। साम्यवाद का समर्थन और पूंजीवाद की खिलाफत करने वाले विश्व के करोड़ों लोग उन्हें क्रांति के किसी महानायक से कम नहीं मानते। हालांकि, कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उन्हें सिर्फ एक नृशंस हत्यारा करार देते हैं।

10 हजार किलोमीटर बाइक पर यात्रा ने बदले विचार

बात ज्यादा पुरानी नहीं। इसी सदी में भारत की आजादी के दौर के आसपास की है। उसी कालखंड में उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप के देश क्यूबा में भी अस्थिरता को दौर चल रहा था। यहां की क्रांति का नायक एक ऐसा शख्स बना, जिसे आज पूरी दुनिया में खासकर युवा वर्ग के बहुत से लोग हीरो की तरह मानते हैं। दरअसल, उसके संघर्षों की कहानी ही ऐसी थी, जिसने पूरे विश्व में लोगों के विचारों को प्रभावित किया। अर्जेंटीना में 1928 में जन्मे चे-ग्वेरा एक संभ्रांत परिवार से ताल्लुक रखते थे। वो खुद पेशे से डॉक्टर थे। महज 23 साल की उम्र में उन्होंने 10 हज़ार किलोमीटर की यात्रा की। इस दौरान दक्षिण अमेरिका में उन्होंने जो देखा, उसने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया।

बाइक से सफर के दौरान दिखे दृश्यों ने अंदर तक दिया झंकझोर

(Pic credit: Social Media)

चे-ग्वेरा (Che Guevara) अपने एक दोस्त के साथ दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर बाइक से निकले थे। उन्होंने यात्रा के दौरान देखा कि समाज दो हिस्सों में बंटा है। अमीर लोग जहां हर सुख-सुविधाओं के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं, जबकि गरीब-मजदूरों को दो वक्त की रोटी तक मुश्किल से मयस्सर हो रही है। उन्होंने कई जगहों पर देखा कि पूंजीपति गरीब-श्रमिकों को निर्ममता से शोषण कर रहे हैं। ये सब देख चे-गवेरा के मन में क्रांति की मशाल जाग चुकी थी। वो वापस लौटे लेकिन अब वो पहले वाले 23 साल के युवा मेडिकल स्टूडेंट चे-ग्वेरा नहीं थे। अब उनके मन में कुछ और ही चल रहा था।

फिदेल कास्त्रों से मुलाकात, और दो दोस्तों ने बदल दिया इतिहास

क्यूबा में क्रांति होने के पीछे सबसे बड़ी वजह वहां अमेरिकी सरकार की दमनकारी नीतियां थीं। वहां के लोगों में अमेरिका के खिलाफ गुस्सा था। फिदेल कास्त्रो ने इसी तानाशाही के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक रखा था। चे-ग्वेरा की मुलाकात मैक्सिको में क्यूबा से निकाले गए फिदेल कास्त्रो के भाई राउल कास्त्रो से हुई। जिसने चे-ग्वेरा को फिदेल कास्त्रो से मिलवाया। 1955 में यानी 27 साल की उम्र में चे-ग्वेरा की मुलाक़ात फ़िदेल कास्त्रो से हुई। देखते ही देखते ये दोनों अच्छे दोस्त बन गए।

सशस्त्र आंदोलन को बनाया क्रांति का जरिया

फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा क्रांति के लड़ाकों को गोरिल्ला युद्ध सिखाया। चे-ग्वेरा ने इसमें एक सेनापति जैसी भूमिका निभाई। उसके गोरिल्ला लड़ाकों ने कई बार अमेरिका समर्थित तत्कालीन क्यूबा की बतिस्ताई सैनिकों से लोहा लिया। कई बार हुए आमने-सामने के संघर्ष में कई लोग मारे गए। आखिरकार चे-ग्वेरा की युद्ध रणनीति और फिदेल कास्त्रो की अगुवाई में 1959 में क्यूबा में सत्ता पलट कर दिया गया। ये पहली बार था, कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली मुल्क के समर्थन से चल रहे किसी मुल्क की सरकार का सशस्त्र क्रांतिकारियों ने तख्तापलट कर दिया हो।

नई सरकार में बने उद्योग मंत्री और बैंक के अध्यक्ष

फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा में मार्क्सवादी व्यवस्था को लागू कर दिया। इस सरकार में चे-ग्वेरा को उद्योग मंत्रालय के साथ ‘बैंक ऑफ क्यूबा’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उद्योग मंत्री रहते हुए चे-ग्वेरा एक बार भारत भी आए थे। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सिगार गिफ्ट किया था। हालांकि, चे-ग्वेरा को कभी सत्ता का लोभ नहीं रहा था। वह एक योद्धा की तरह जीते थे, क्यूबा में तख्तापलट करने के बाद वो बोलिविया की क्रांति में हिस्सा लेना चाहते थे। यही वजह थी कि बाद में उन्होंने क्यूबा के उद्योग मंत्री के पद को छोड़ दिया और बोलिविया की क्रांति में भाग लेने चले गए।

चे-ग्वेरा की नजर में गद्दारी की सजा- सिर्फ मौत

(Pic credit: Social Media)

क्यूबा की सत्ता हासिल करने के बाद चे-गवेरा के इशारे पर कितनी हत्याएं हुईं, इसका आंकड़ा 500 के आसपास माना जाता है। चे-ग्वेरा उद्योग मंत्री बने तब क्यूबा के खिलाफ या अमेरिका का समर्थन में वहां बड़ी संख्या में युद्धबंदियों को मौत के घाट उतार दिया गया। एक किसान और मिलिट्री नेता एउटैमिओ ग्वेरा को चे-ग्वेरा ने कैसे मारा, ये उसने लिख रखा है। एक किताब में उसने लिखा- ‘मैंने अपनी .32 कैलिबर बन्दूक से उसके दिमाग के दाहिने हिस्से पर गोली मारी, जो उसके दिमाग के बाएं हिस्से से बाहर निकल गई। वो कुछ देर कराहता रहा, फिर उसकी मौत हो गई।’ कहा जाता है ‘देशद्रोहियों को न्याय’ देने का चे-ग्वेरा का यही तरीका था।

39 साल की उम्र में अमेरिकी सीआइए ने चे-ग्वेरा को मार गिराया

विश्व में बढ़ रही चे-ग्वेरा की लोकप्रियता के बीच अमेरिका की ताकतें किसी भी कीमत पर चे-ग्वेरा को खत्म करना चाहती थीं। जब चे-ग्वेरा बोलिविया में सरकार का तख्ता पलट करने की कोशिश कर रहे थे, उसी दौरान बोलिवियाई सेना और सीआइए के अधिकारियों को चे-ग्वेरा के बारे में पता चल गया। 9 अक्टूबर 1967 को महज 39 साल की उम्र में दोतरफा संघर्ष के दौरान सीआइए ने चे-ग्वेरा को मार गिराया।

2004 में चे-ग्वेरा पर बनी फिल्म ‘द मोटरसाइकिल डायरीज’(The Motorcycle Diaries)

(Pic credit: Social Media)

चे-ग्वेरा की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2004 में उस पर फिल्म ‘द मोटरसाइकिल डायरीज’ बनाई गई। जिसमें उसके जीवन, मेडिकल स्टूडेंट से लेकर क्रांतिकारी बनने तक के सफर को दिखाया गया। आज पूरे विश्व में टीशर्ट से लेकर कैप, शर्ट, ब्लेजर, वाहनों और सोशल मीडिया की डीपी तक पर उसकी पिक्चर्स को आइकन के तौर पर लोग पसंद करते हैं। हालांकि, समाजशास्त्रियों का एक धड़ा ऐसा भी है जो चे-ग्वेरा को एक नृशंस हत्यारे के तौर पर मानता है। उसकी सशस्त्र क्रांति और न्याय लेने के तरीके से वो सहमत नहीं हैं।

क्या कहते हैं जानकार

शिक्षाविद् और सामाजिक जानकार चे-ग्वेरा की पहचान और लोकप्रियता की बड़ी वजह उसे अपने निर्णयों पर अडिग रहना बताते हैं। कूचबिहार विश्वविद्यालय, उत्तर बंगाल के प्रोफेसर (डॉ.) आरडी दुबे ने ‘न्यूजट्रैक’ से बातचीत में कहा कि चे-ग्वेरा मेडिकल ग्रेजुएट होने के बावजूद क्रांति की राह पर निकला। ये उसकी सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता ही थी कि इस सदी के विश्व के महान क्रांतिकारियों में उस नौजवान का नाम ऊंचे मुकाम पर शामिल है।

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