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कोरोना संकट में चीन की कुटिल चाल, दर्द बांटकर मरहम की ऐसे कर रहा वसूली

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलाने के आरोपों में घिरा चीन इस महामारी के जरिए मोटी कमाई करने में जुटा है। कोरोना से बचाव के लिए कारगर मानी जाने वाली दवाओं के कच्चे माल के बदले चीन मनमानी कीमत वसूल रहा है।

Dharmendra kumar
Published on: 19 April 2020 5:20 PM GMT
कोरोना संकट में चीन की कुटिल चाल, दर्द बांटकर मरहम की ऐसे कर रहा वसूली
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नई दिल्ली: पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलाने के आरोपों में घिरा चीन इस महामारी के जरिए मोटी कमाई करने में जुटा है। कोरोना से बचाव के लिए कारगर मानी जाने वाली दवाओं के कच्चे माल के बदले चीन मनमानी कीमत वसूल रहा है। चीन मौके का फायदा उठाकर किस तरह अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में जुटा है, यह इसी से समझा जा सकता है कि उसने कच्चे माल की कीमतों चार से पांच गुना तक की बढ़ोतरी कर दी है।

चीन से माल मंगाना मजबूरी

दरअसल इन दवाओं का कच्चा माल चीन से मंगाना मजबूरी है और चीन इस वैश्विक महामारी से लड़ रही दुनिया की मजबूरियों का फायदा उठाने की कोशिश में जुटा है। हरिद्वार के सिडकुल में स्थित फार्मा कंपनियों में सैनिटाइजर के अलावा तमाम ऐसी दवाएं बनाई जा रही हैं जो कोरोना से बचाव और उसके प्रभाव को कम करने में कारगर बताई जाती हैं। लेकिन फार्मा कंपनियों से जुड़े प्रतिनिधियों का कहना है कि अब ऐसी दवाओं का उत्पादन काफी महंगा हो गया है क्योंकि चीन इसकी मनमानी कीमत वसूल रहा है।

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कीमतों में पांच गुना तक की बढ़ोतरी

उत्तराखंड में फार्मा एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि कोरोना का असर कम करने के लिए बनाई जाने वाली दवाओं में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल को एक्टिव फार्मा इनग्रेडिएंट (एपीआई) कहा जाता है। श्री शर्मा ने बताया कि देश में कोरोना का कहर बढ़ने के बाद एपीआई की कीमतों में पांच गुना तक वृद्धि हो गई है।

इस तरह उछला कच्चे माल का दाम

उन्होंने कहा कि इन दवाओं में इस्तेमाल होने वाला अधिकांश माल चीन से ही आता है। इस कारण फार्मा कंपनियों की मजबूरी है कि उन्हे मुहमांगी कीमत पर भी सामान चीन से ही खरीदना पड़ रहा है। शर्मा का कहना है कि फरवरी-मार्च तक हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन नामक साल्ट 7800 रुपए प्रति किलो था जो इस समय 55000 रुपए प्रति किलो तक मिल रहा है। इसी तरह एजिथ्रोमाइसीन की कीमत साढ़े छह हजार रुपए से बढ़कर करीब 15000 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। इवेर मेक्टिन की कीमत चौदह सौ से बढ़कर 60000 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। श्री शर्मा का कहना है कि ऐसी स्थिति में जरूरी दवाएं काफी महंगी होती जा रही हैं।

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लदान और ढुलाई भी हुई महंगी

जानकारों का कहना है कि चीन की ओर से कीमतों में वृद्धि के साथ ही बदली परिस्थितियों में लदान और ढुलाई का काम भी काफी महंगा हो गया है। उद्यमियों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस समय देश में दवाओं की मांग बहुत ज्यादा है और एपीआई काफी कम।

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उद्यमियों की सरकार से मांग

उद्यमियों ने सरकार से मांग की है कि वह स्थानीय स्तर पर कीमतों पर नियंत्रण के साथी कच्चे माल की उपलब्धता भी सुनिश्चित करे। उनका कहना है कि इस समय पूरे देश में कोरोना का संकट गहराया हुआ है और वे चाहकर भी इन दवाओं की पूरी आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। चीन की चाल से इन दवाओं को बनाना काफी महंगा हो गया है। ऐसी स्थिति में सरकार को इस दिशा में ठोस कदम जरूर उठाना चाहिए।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

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