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अमेरिका के रिसर्चर का खुलासा, जिनको लगी ई-सिगरेट की लत, उनकी भी हो रही है मौत
सिगरेट नहीं, ई-सिगरेट पीने से होने वाली फेफड़े की बीमारियों से अमेरिका में कई लोगों ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। वहां के अधिकारियों ने बताया कि सैकड़ों लोग अन्य फेफड़े की बीमारी से जूझ रहे हैं। न्यूयॉर्क के टेस्टर ने बताया कि ये एक गांजा से बनी ई-सिगरेट जिसमें विटामिन ई- ऑयल होता है। एक रिसर्च में पता चला है कि इसमें वही विषाक्त रासायनिक पदार्थ होते हैं जो तम्बाकू के धुएं में पाए जाते हैं. इससे फेफड़ों का जीवाणु रोधी रक्षा तंत्र बाधित होता है।
जयपुर: सिगरेट नहीं, ई-सिगरेट पीने से होने वाली फेफड़े की बीमारियों से अमेरिका में कई लोगों ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। वहां के अधिकारियों ने बताया कि सैकड़ों लोग अन्य फेफड़े की बीमारी से जूझ रहे हैं। न्यूयॉर्क के टेस्टर ने बताया कि ये एक गांजा से बनी ई-सिगरेट जिसमें विटामिन ई- ऑयल होता है। एक रिसर्च में पता चला है कि इसमें वही विषाक्त रासायनिक पदार्थ होते हैं जो तम्बाकू के धुएं में पाए जाते हैं। इससे फेफड़ों का जीवाणु रोधी रक्षा तंत्र बाधित होता है।
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अमेरिका के रिसर्चर ने बताया कि सिगरेट के धुएं में पाए जाने वाले जहरीले एल्डिहाइड की तरह ही ई - सिगरेट में मौजूद रसायनिक पदार्थ सिन्नामेल्डिहाइड का उपयोग सामान्य कोशिका को नुकसान पहुंचाता है। इससे सांस संबंधी बीमारियां विकसित तथा जटिल हो सकती है।
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रिसर्च में बताया गया कि सिन्नामेल्डिहाइड मनुष्य के शरीर में सांस के जरिए सामान्य हवा के श्वसन की क्रिया को बाधित करती है। जिससे यह पता चलता है कि ई - सिगरेट में उपयोग होने वाला एक सामान्य फ्लेवर फेफड़ों के महत्वपूर्ण एंटी - बैक्टीरियल रक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। अमेरिका में 2006 से ई-सिगरेट उपलब्ध है और कई बार पारंपरिक धूम्रपान छोड़ने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका में 2018 में 36 लाख माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक कक्षा के छात्र ई-सिगरेट का इस्तेमाल करते हैं। सिन्नामेल्डिहाइड एक ऐसा रसायन है जिसमें दालचीनी जैसा स्वाद और गंध होती है। ई - सिगरेट पारंपरिक सिगरेट के मुकाबले सुरक्षित विकल्प के रूप में उभरा है क्योंकि इसमें तम्बाकू के बिना ही धूम्रपान करने जैसा एहसास होता है।
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