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कावन की कानूनी जंगः 35 साल की यातना से मुक्ति, मिली आजादी
तानाशाह जिया उल हक को तोहफे में मिले कावन के पाकिस्तान पहुंचने के बाद कभी उसकी ठीक से देखभाल नहीं हुई। इस्लामाबाद के चिड़ियाघर में उपेक्षित और लावारिस की तरह डाल दिया गया।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: कावन एक मासूम सा हाथी का शावक था जिसे 1985 में श्रीलंका सरकार ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति और तानाशाह जनरल जिया उल हक को भेंट किया था वह उस समय मात्र एक साल का था। मित्रता का तोहफा बने कावन को ये नहीं पता था कि ये उसकी यातना व जिल्लत भरी जिंदगी की शुरुआत हो रही है। कावन अपने भाग्य को कोसता हुआ। लोहे की मोटी जंजीरों में जकड़ा हुआ। चारे पानी और देखभाल के अभाव में अंतिम दिन गिनता हुआ अधमरा हुआ जा रहा था। लेकिन आज वह कंबोडिया में है। उसके सुख के दिन लौट आए हैं। आइए बताते हैं कैसे हुआ ये परिवर्तन।
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तानाशाह जिया उल हक को तोहफे में मिले कावन के पाकिस्तान पहुंचने के बाद कभी उसकी ठीक से देखभाल नहीं हुई। इस्लामाबाद के चिड़ियाघर में उपेक्षित और लावारिस की तरह डाल दिया गया। यहां बीतते वक्त के साथ उसकी मुलाकात सहेली नाम की हथिनी से हुई। दोनो एक दूसरे के सुख दुख के साझीदार बन गए। लेकिन किस्मत को ये भी रास नहीं आया।
2012 में सहेली नाम की इस हथिनी की मौत हो गई
2012 में सहेली नाम की इस हथिनी की मौत हो गई। इससे कावन को गहरा आघात लगा और उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। नतीजतन वह गुस्सैल व आक्रामक हो गया। उसे काबू में करने के लिए बेहोशी के इंजेक्शन दिये जाने लगे।
लेकिन इसी बीच 2016 में उसकी जिंदगी में अमेरिका गायिका चेर आई जिसे कावन की हालत ने व्यथित कर दिया और उसने आस्ट्रिया की राजधानी वियेना की अंतरराष्ट्रीय पशुरक्षक संस्था फीवर फॉटन, फोर पॉज के साथ कावन को बचाने का अभियान छेड़ दिया। गायिका चेर ने कावन को बचाने के मुकदमा कर दिया।
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पाकिस्तान में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंततः इस्लामाबाद की अदालत ने कावन के पक्ष में फैसला सुनाया। और उसकी आजादी का रास्ता साफ हुआ।
29 नवंबर कावन के लिए बड़े परिवर्तन का दिन साबित हुआ। उसे कंबोडिया के लिए अंततः रवाना कर दिया गया। कंबोडिया के एक अभयारण्य में उसे रखा जाएगा। यहां उसे तीन हथिनियों दीपलोह, अरुण रेआ और सराई मिया का साथ मिलेगा। गायिका चेर कावन के साथ तब भी रहेंगी। जबतक उसकी जिंदगी पूरी तरह खुशहाल नहीं हो जाती।
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