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राहत की खबर: प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज पूरी तरह सम्भव नहीं, फिर भी...

कोरोना वायरस से ग्रसित गंभीर मरीजों को ठीक करने में प्लाज्मा थैरेपी उतना सफल नहीं हो रहा है, एक नई स्टडी में चीन के शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि यहां के रिसर्चर्स का कहना है कि गंभीर मरीजों को ठीक करने के लिए प्लाज्मा थैरेपी पूरी तरह से सही नहीं है।

suman
Published on: 5 Jun 2020 4:30 AM GMT
राहत की खबर: प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज पूरी तरह सम्भव नहीं, फिर भी...
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नई दिल्ली : कोरोना वायरस से ग्रसित गंभीर मरीजों को ठीक करने में प्लाज्मा थैरेपी उतना सफल नहीं हो रहा है, एक नई स्टडी में चीन के शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि यहां के रिसर्चर्स का कहना है कि गंभीर मरीजों को ठीक करने के लिए प्लाज्मा थैरेपी पूरी तरह से सही नहीं है। इसके लिए कुछ और तरीका खोजना होगा चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज और पेकिंग यूनियन मेडिकल कॉलेज के रिसर्चर्स ने कहा कि प्लाज्मा थैरेपी की वजह से कोरोना मरीजों के मृत्युदर या ठीक होने के दर में ज्यादा अंतर नहीं आया है।

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कोरोना मरीज को आईसीयू की जरूरत नहीं

रिसर्चर्स ने कहा कि जो मरीज सामान्य तरीके से इलाज करा रहे हैं उनकी रिकवरी का दर या मृत्यु दर प्लाज्मा थैरेपी से इलाज करा रहे मरीजों से ज्यादा अलग नहीं है। इसमें एक अच्छी खबर है कि 28 दिनों तक शोध करने के बाद चीन के शोधकर्ताओं ने पाया कि प्लाज्मा थैरेपी की वजह से अत्यधिक गंभीर रूप से बीमार कोरोना मरीज को आईसीयू में नहीं डालना पड़ा। साथ ही वह सामान्य ट्रीटमेंट वाले मरीजों से औसत 5 दिन पहले अस्पताल से ठीक होकर गये।

यहां शोधकर्ताओं ने बताया कि प्लाज्मा थैरेपी से ठीक होने वालों का दर 91 फीसदी है। जबकि, सामान्य स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट कराने वाले मरीजों के ठीक होने का दर 68 फीसदी है। यह स्टडी जामा मैगजीन में प्रकाशित हुई है। चीन के शोधकर्ताओं ने 14 फरवरी से 1 अप्रैल तक 101 मरीजों पर यह शोध किया। ये सभी मरीज वुहान के सात अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों में भर्ती थे। इनमें से आधे मरीज सीवियर रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस या हाइपोक्सीमिया यानी शरीर में कम ऑक्सीजन स्तर से पीड़ित थे। वहीं, बाकी के आधे मरीज ऑर्गन फेल्योर से जूझ रहे थे और उन्हें वेंटीलेटर्स की जरूरत थी।

कोवैलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी

कोवैलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी की वजह से उन मरीजों को ज्यादा फायदा हुआ, जो आईसीयू में जाने लायक नहीं थे। गंभीर रूप से बीमार मरीजों में से 20.7 फीसदी ही प्लाज्मा थैरेपी से ठीक हुए। जबकि, सामान्य इलाज की प्रक्रिया से 24.1 फीसदी मरीज ठीक हुए हैं। असल में कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट चिकित्सा विज्ञान की बेहद बेसिक टेक्नीक है।

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100 साल पुरानी तकनीक

100 सालों से इसका उपयोग पूरी दुनिया कर रही है। इससे लाभ होता है और कोरोना वायरस के मरीजों में यह लाभ दिखाई दे रहा है। इंसान के खून में आमतौर पर 55 फीसदी प्लाज्मा, 45 फीसदी लाल रक्त कोशिकाएं और 1 फीसदी सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं। प्लाज्मा थैरेपी से फायदा ये है कि बिना किसी वैक्सीन के ही मरीज किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है इससे वैक्सीन बनाने का समय भी मिलता है। प्लाज्मा शरीर के अंदर एंटीबॉडीज बनाता है। साथ ही उसे अपने अंदर स्टोर भी करता है। जब यह दूसरे व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है तब वहां जाकर एंटीबॉडी बना देता है। ऐसा करके कई शख्स किसी भी वायरस के हमले से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट सार्स और मर्स जैसी महामारियों में भी कारगर साबित हुआ था। इस तकनीक से कई बीमारियों को हराया गया है। कई बीमारियों को जड़ से खत्म कर दिया गया है।

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