TRENDING TAGS :
बदहाल ही हुआ पाकिस्तान, कमर बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने पर घिरे इमरान
इस्लामाबाद। इमरान खान ने 18 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। तब कई पाकिस्तानियों ने उन्हें मौजूद विकल्पों में सबसे बेहतर माना था। इमरान की जीत को पाकिस्तान के दक्षिणपंथी और संपन्न शहरी मध्य वर्ग की जीत माना गया। उनको मनोवैज्ञानिक रूप से न्यायपालिका और राजनीतिक रूप से ताकतवर सेना का भी साथ मिला। इमरान के समर्थकों को भरोसा था कि उनके नेता देश की अर्थव्यवस्था की कमजोरी को दूर करने की हैसियत रखते हैं। देश के भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र व सामाजिक समस्याओं के समाधान की गहरी उम्मीद थी। लेकिन अब तक इमरान ऐसा करने में नाकाम रहे हैं। पाकिस्तान में लोगों की मुश्किलें दूर होने की बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय फलक पर साथी दिखाई पड़ नहीं रहे और अर्थव्यवस्था बुरी हालत में है।
यह भी पढ़ें : आतंकी की बीवी पाकिस्तानी हिरासत में, आग बबूला हुआ अल कायदा
2018 में पाकिस्तान की जनता के लिए 'नया पाकिस्तान' का नारा इमरान ने दिया था। इसे भ्रष्टाचार मुक्त अर्थव्यवस्था और सही तरीके से काम करने वाली सरकार के रूप में देखा गया था। जुलाई 2018 में हुए आम चुनावों में गड़बड़ी के आरोप लगे लेकिन फिर भी पाकिस्तान के लोग और दूसरी पार्टियों ने इमरान खान को एक मौका दिया। विपक्षी पार्टियों की मजबूरी ये थी कि अगर वो इस चुनाव के नतीजों को नहीं मानते तो आशंका थी कि कहीं यह पाकिस्तान में लोकतंत्र के अंत और फिर से फौजी हुक्मरानों के सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की वजह न बन जाए। इमरान खान की तरफ अधिकांश शक्तिशाली संगठन थे। विपक्ष एकदम निष्क्रिय था और बाजार और मीडिया के साथ पाकिस्तान के पूरे मध्यम वर्ग को इमरान खान एक ऐसे नेता की तरह लग रहे थे जो उन्हें बचा सकेगा और उनका उद्धार करेगा।
अब लगता है कि अर्थव्यवस्था को ठीक करने के इमरान के वादे हवा हवाई हैं। अर्थव्यवस्था आगे बढऩे के बजाए और भी पीछे पहुंच गई है। इमरान की पार्टी का देश से भ्रष्टाचार मिटाने और आर्थिक कर्ज खत्म करने का वादा उम्मीद से जल्दी धराशायी हो गया। आईएमएफ के साथ देरी से हुए समझौते ने न सिर्फ इमरान खान की सरकार पर अतिरिक्त दबाव बनाया बल्कि आईएमएफ को पाकिस्तान की आर्थिक नीति पर अधिक नियंत्रण दे दिया। देश का विकास रुक गया है, रुपये की कीमत लगातार कम होती जा रही है। बाजार ने अपना भरोसा खो दिया है। बिजली के बढ़ते दामों के साथ-साथ बढ़ती महंगाई ने आम लोगों का जीवन दुष्कर कर दिया है। लोगों की आमदनी कम होने से उनके सामने और भी मुश्किलें आ रही हैं। इस आर्थिक मंदी की वजह से बेरोजगारी और गरीबी लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले पांच साल में नवाज शरीफ की सरकार ने जितना कर्ज लिया उसका दो तिहाई कर्ज इमरान खान की सरकार महज एक साल में ले चुकी है।
विदेश नीति फेल
इमरान की सरकार चीन और अमेरिका के साथ अपने संबंधों में सामंजस्य बिठाने में असफल रही है।चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना अभी अधर में है। अमेरिका भी पाकिस्तान को अफगान शांति वार्ता में उसके मुताबिक काम नहीं करने पर कोई भी मदद देने को तैयार नहीं है। अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की कोशिश में पिछले एक साल में सऊदी अरब और यूएई को लुभाने के लिए झुकना, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिरता के लिए बहुत थोड़ी ही राहत ला सका है।
पाकिस्तान आर्मी प्रमुख जनरल कमर बाजवा के कार्यकाल को बढ़ाए जाने के फैसले पर भी इमरान खान घिरे हुए हैं। कहा जा रहा है कि इससे दुनिया में संदेश जाएगा कि पाकिस्तानी सेना एक या दो व्यक्तियों पर निर्भर है। विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पीएमएल-एन ने बाजवा के कार्यकाल बढ़ाए जाने के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
कमर बाजवा की नियुक्ति पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नवंबर 2016 में की थी। 58 वर्षीय जनरल कमर बाजवा का तीन साल का कार्यकाल नवंबर महीने में पूरा होने वाला था लेकिन इमरान खान ने उनका कार्यकाल तीन साल बढ़ाने का फैसला किया। तर्क दिया कि ऐसा क्षेत्रीय सुरक्षा की स्थिति को देखते हुए किया गया है।
सेना के आलोचकों का कहना है कि पाकिस्तानी सेना ने ही 2018 में इमरान खान को चुनाव जीतने में मदद की थी और पाकिस्तान की राजनीति में एक नई ताकत का जन्म हुआ. यही वजह है कि विपक्षी दल के नेता इमरान खान को सेना द्वारा चुना हुआ कहकर बुलाते हैं। इमरान खान के एक साल के कार्यकाल में सरकार और सैन्य नेतृत्व में सामंजस्य भी देखने को मिला है। हाल ही में, बाजवा ने इमरान खान द्वारा लिए गए कड़े आर्थिक फैसले का बचाव किया था और साथ ही सेना खर्च में कटौती का ऐलान किया था।