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तेल के बिजनेस में कोई दोस्ती नहीं, ईराक और सऊदी अरब बढ़ाते जा रहे दाम
इराक और सऊदी अरब लगातार क्रूड आयल के दाम बढ़ाते चले जा रहे हैं। ईराक का आलम तो ये है कि उसने अपने बसरा क्रूड आयल की भारतीय रिफाइनरी को सप्लाई 20 फीसदी तक घटा दी है।
नीलमणि लाल
लखनऊ। दुनिया में कच्चे तेल यानी क्रूड आयल के दाम और उसकी सप्लाई के मामले में कौन किसे दोस्त माने और किसे दुश्मन। दुनिया में जब भी कोई संकट आता है तब कच्चे तेल के दाम आसमान छूने लगते हैं। ऐसा नहीं कि संकट के समय तेल उत्पादक देशों का तेल खत्म या कम हो जाता है। उनके तेल भण्डार तो वैसे ही रहते हैं लेकिन अपनी जेब गर्म बनाये रखने के लिए ये देश सप्लाई कम करके दाम बढ़ा देते हैं।
इराक और सऊदी अरब बढ़ा रहे क्रूड आयल के दाम
अब मौजूदा हाल ही देखिये, इराक और सऊदी अरब लगातार क्रूड आयल के दाम बढ़ाते चले जा रहे हैं। ईराक का आलम तो ये है कि उसने अपने बसरा क्रूड आयल की भारतीय रिफाइनरी को सप्लाई 20 फीसदी तक घटा दी है। 2020 में ईराक भारत का टॉप सप्लायर था और 2021 में ये कटौती हैरान करने वाली है। ईराक का तो यहाँ तक कहना है कि वह क्रूड आयल के दाम 80 डालर प्रति बैरल तक पहुँचने की उम्मेद्द में है।
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लगातार भारत में पेट्रोल-डीजल के भाव में बढ़ोतरी
तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने कहा है कि 2021 में दुनियाभर में तेल की मांग उनके अनुमान से कम रफ्तार से बढ़ेगी। ओपेक ने कहा है कि इस साल तेल की मांग 57.9 लाख बैरल प्रतिदिन से बढ़कर 9.605 करोड़ पर पहुंच जाएगी। इस तरह से ओपेक ने 1.10 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती कर दी है। कमजोर अनुमान के चलते ओपेक और ओपेक प्लस को तेल उत्पादन में कटौती करने का फैसला करना पड़ा है। दूसरी ओर, मिडिल ईस्ट में तनाव के चलते भी तेल के दाम बढ़ रहे हैं।
सरकार की कमाई का बड़ा जरिया
तेल उत्पादक देश और ओपेक तो मनमानी कर ही रहे हैं लेकिन ये भी सच्चाई है कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर टैक्स, सरकार के लिए कमाई का बहुत बड़ा जरिया है। कोरोना की वजह से पिछले साल साधन कमजोर हुए हैं जबकि सरकार का ख़र्च इस दौरान काफी बढ़ा है। ऐसे में सरकार रेवेन्यू बढ़ाने और वित्तीय घाटे को बढ़ने से रोकने के लिए ईंधन पर टैक्स कम नहीं कर रही है। सरकार के लिए शराब और पेट्रोल, डीज़ल कमाई का एक सबसे बढ़िया ज़रिया हैं। ये जीएसटी के दायरे में नहीं आते हैं, ऐसे में इन पर टैक्स बढ़ाने के लिए सरकार को जीएसटी काउंसिल में नहीं जाना पड़ता है।
महामारी के दौरान क्रूड के दाम बहुत नीचे आए, फिर सस्ता नहीं हुआ फ्यूल
कोरोना महामारी के दौरान क्रूड के दाम बहुत नीचे आए। ऐसे में इसी हिसाब से पेट्रोल के दाम भी गिरने चाहिए थे, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया। निश्चित तौर पर सरकार के पास पेट्रोलियम उत्पादों के दाम घटाने के विकल्प हैं। इनमें कीमतों को डीरेगुलेट करने और इन पर टैक्स घटाने के विकल्प शामिल हैं। लेकिन, सरकार ऐसा करना ही नहीं चाहती है।
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पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर महंगाई पर पड़ता है और इससे डिमांड घटती है। माध्यम वर्ग और गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। 15 जून 2017 से देश में पेट्रोल, डीजल की कीमतें रोजाना आधार पर बदलना शुरू हो गई हैं। इससे पहले इनमें हर तिमाही बदलाव होता था।
पड़ोसी देशों में सस्ता
भारत के पड़ोसी देशों समेत दुनिया के कई देशों में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम हैं। श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, अफगानिस्तान और यहां तक कि आर्थिक रूप से मुश्किलों के भयंकर दौर में घिरे हुए पाकिस्तान में भी पेट्रोल सस्ता है। इसके बावजूद भारत में ईंधन की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं जबकि भारत में पेट्रोल, डीजल की कीमतें हमेशा से राजनीतिक तौर पर एक संवेदनशील मसला रही हैं। 2010 तक तेल के दाम बढ़ाना सरकारों के लिए एक मुश्किल फैसला होता था। लेकिन, सरकारी खजाने पर इसका बोझ बहुत ज्यादा था।