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लॉकडाउन लगाने में देरी से अमेरिका में इतनी ज्यादा मौतें, नई स्टडी में खुलासा
अमेरिका में कोरोना संकट के कारण हालात काफी गंभीर हैं। दुनिया भर में कोरोना वायरस से हुई सवा तीन लाख से अधिक मौतों में 95 हजार से अधिक मौतें सिर्फ अमेरिका में ही हुई हैं।
अंशुमान तिवारी
वाशिंगटन। दुनिया भर में छाए कोरोना संकट की सबसे ज्यादा तबाही अमेरिका में दिख रही है। यहां अब तक 16 लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और इस वायरस ने 95 हजार से अधिक लोगों की जान ले ली है। इस बीच एक अध्ययन में बताया गया है कि यदि अमेरिका में लॉकडाउन लगाने में दो हफ्ते की देरी न की गई होती तो वहां कोरोना से 83 फ़ीसदी कम मौतें होतीं। यह अध्ययन कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने किया है।
अमेरिका में गंभीर हालात
अमेरिका में कोरोना संकट के कारण हालात काफी गंभीर हैं। दुनिया भर में कोरोना वायरस से हुई सवा तीन लाख से अधिक मौतों में 95 हजार से अधिक मौतें सिर्फ अमेरिका में ही हुई हैं। इससे वहां स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है। अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए वहां कई राज्यों में लॉकडाउन को खोला भी जा चुका है। हालांकि कई जानकारों का कहना है कि यह कदम जल्दबाजी में उठाया गया है। इस बीच कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि अमेरिका में लॉकडाउन लगाने के फैसले में देरी के कारण इतनी ज्यादा मौतें हुई हैं।
बच सकती थी इतने लोगों की जान
शोधकर्ताओं ने तीन मई तक के कोरोना मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद नतीजे निकाले हैं। अध्ययन के मुताबिक अगर सरकार ने एक मार्च के पहले लॉकडाउन लगाया होता तो 11253 मौतें होतीं जबकि मौतों का आंकड़ा 3 मई तक 65307 था। इसका मतलब साफ है कि अगर लॉकडाउन को दो हफ्ते पहले लगाया गया होता 54 हजार से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
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फैसले में देरी की चुकानी पड़ी कीमत
शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि लॉकडाउन को एक हफ्ते पहले लगाया गया होता तो 36000 से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती थी। रिसर्च टीम के प्रमुख जेफरी शमन ने कहा कि यह मौतों के आंकड़ों का बड़ा अंतर है। उन्होंने कहा कि हमें कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए फैसले में की गई देरी के असर को समझना होगा। फैसले में एक-एक दिन की देरी की कीमत चुकानी पड़ती है और ऐसा ही अमेरिका के मामले में हुआ है।
अलग-अलग समय पर लॉकडाउन
अमेरिका में कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 16 मार्च को लॉकडाउन की अपील की थी। उन्होंने राज्यों से कहा था कि यह उन पर निर्भर है कि वे कितना लॉकडाउन रखना चाहते हैं। उन्होंने लोगों से कोरोना संकट के दिनों में घरों पर रहने और सीमित यात्राएं करने की अपील भी की थी। ट्रंप की अपील के बाद राज्यों ने अलग-अलग समय पर अपने यहां लॉकडाउन लगाया। कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा संक्रमित न्युयॉर्क में 22 मार्च को स्टे होम का आदेश दिया गया था। कोलंबिया यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि न्यूयार्क में एक हफ्ते पहले लॉकडाउन लगाया गया होता 3 मई तक 2838 मौतें होंती जबकि यहां 3 मई तक साढ़े 17000 से ज्यादा लोगों की जान गई।
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ट्रंप के खिलाफ नाराजगी बढ़ी
इस बीच कोरोना वायरस से निपटने के तरीकों को लेकर अमेरिकी लोगों की ट्रंप सरकार से नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। राष्ट्रपति ट्रंप के प्रति अपना विरोध जताने के लिए अमेरिकी लोगों ने व्हाइट हाउस के सामने डेड बॉडी के बैग रखकर अनोखा विरोध प्रदर्शन किया। इन बैगों पर पोस्टर भी लगाए गए थे जिनमें ट्रंप को इतनी ज्यादा मौतों का जिम्मेदार बताया गया था। विरोध जताने वालों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन कोरोना संकट का मुकाबला करने में पूरी तरह विफल रहा है। इसी कारण इतनी ज्यादा संख्या में अमेरिकी लोगों की मौत हुई है। हालांकि ट्रंप विरोधियों की इस दलील से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि उन्होंने समय से फैसले लेकर अमेरिका को भारी तबाही से बचा लिया है।
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