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CAA पर बवाल कराने की फिराक में पाकिस्तान, ये देश दे रहा साथ

यूरोपियन यूनियन (EU) में इस कानून पर चर्चा के लिए प्रस्ताव आया, जिसपर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है। इस वैश्विक संगठन के अलावा भी मलेशिया, तुर्की समेत कई ऐसे देश हैं जिन्होंने इसका विरोध किया है, वहीं अमेरिका, फ्रांस जैसे बड़े देशों ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया है।

SK Gautam
Published on: 27 Jan 2020 3:43 AM GMT
CAA पर बवाल कराने की फिराक में पाकिस्तान, ये देश दे रहा साथ
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नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) को लेकर अब दुनिया भर के देशों में भी क्रिया-प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। गौरतलब है कि जब से यह कानून भारत सरकार द्वारा लागू किया गया है देश के कई हिस्सों में अभी भी इस क़ानून को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है। लेकिन अब सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के मोर्चे पर भी इस कानून को लेकर एक तीखी बहस छिड़ी है।

कुछ ने जताया है विरोध तो कुछ ने कहा भारत का आंतरिक मामला

बता दें कि अब यूरोपियन यूनियन (EU) में इस कानून पर चर्चा के लिए प्रस्ताव आया, जिसपर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है। इस वैश्विक संगठन के अलावा भी मलेशिया, तुर्की समेत कई ऐसे देश हैं जिन्होंने इसका विरोध किया है, वहीं अमेरिका, फ्रांस जैसे बड़े देशों ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया है।

भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान ने कड़ी आपत्ति जताई थी। अब नागरिकता संशोधन एक्ट लागू होने के बाद दुनियाभर में इसकी चर्चा तेज हो गयी है। इस मुद्दे पर किस देश का क्या रुख है, आईये एक नज़र डालते हैं।

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मलेशिया ने जताया है कड़ा विरोध

नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ अगर किसी देश ने मुखर रूप से इसका विरोध किया है तो वह मलेशिया है। मलेशिया इससे पहले अनुच्छेद 370 के मसले पर भी भारत की आलोचना कर चुका है। मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने भारत की नीति को अल्पसंख्यक विरोधी बताया, जिसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में असर भी पड़ा। भारत की ओर से मलेशिया से पाम ऑयल के आयात पर रोक लगाई गई है, इसके साथ ही अन्य सामानों पर भी सख्त रुख अपनाने का फैसला लिया गया है।

पाकिस्तान बुलाएगा इस्लामिक देशों की मीटिंग

भारत सरकार द्वारा लागू किये जाने वाले किसी भी बड़े फैसले का विरोध करने की पाकिस्तान की आदत बन चुकी है। पहले जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर पाकिस्तान ने दुनियाभर में ढिंढोरा पीटा, वहीं अब जब CAA लागू हुआ तो इसे भारत के मुसलमानों पर जुल्म बताया।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने विदेशी मीडिया में इंटरव्यू देकर इस कानून का विरोध किया, साथ ही PAK एक बैठक बुला रहा है जिसमें इस्लामिक देशों के प्रमुखों को बुलाया जाएगा। पाकिस्तान की ओर से अप्रैल में बुलाई गई इस बैठक में अनुच्छेद 370, सीएए पर चर्चा हो सकती है। PAK की ओर से इस बैठक में तुर्की, सऊदी अरब समेत अन्य देशों से शामिल होने की अपील की गई है।

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अमेरिका ने कहा था यह भारत का आंतरिक मामला

अमेरिका की ओर से भी नागरिकता संशोधन एक्ट के मसले पर बयान दिया गया था, जिसमें कहा गया कि वो इस मसले पर भारत में हो रहे प्रदर्शन पर नज़र बनाए हुए है। हालांकि, US का कहना था कि कोई कानून बनाना भारत का आंतरिक मामला है। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से भारत के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने का आग्रह करता है।

यूरोपियन यूनियन तक पहुंचा मामला

यूरोपियन संसद में नागरिकता संशोधन एक्ट के मसले पर प्रस्ताव पेश करने की तैयारी है, जिसपर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है। यूरोपियन संसद में 29 जनवरी को प्रस्ताव पेश किया जाएगा, वहीं इस प्रस्ताव पर 30 जनवरी को वोटिंग की जाएगी। EU के इस प्रस्ताव पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि ये मामला पूरी तरह से आंतरिक है, ऐसे में किसी अन्य को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। EU संसद के 751 सांसदों में से 626 सांसद कुल 6 प्रस्ताव नागरिकता कानून और जम्मू-कश्मीर के संबंध में लेकर आए हैं।

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बांग्लादेश पर CAA का गहरा असर

CAA का सीधा संबंध बांग्लादेशी नागरिकों से है, बंगाल की ओर से कई नागरिक वापस बांग्लादेश भी जाने लगे हैं। जब भारत ने ये प्रस्ताव पेश किया तो बांग्लादेश के कुछ मंत्रियों ने इसका विरोध जताने के लिए अपने दौरे को रद्द किया। हालांकि, बाद में बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना की ओर से इस कानून को भारत का आंतरिक मसला बताया गया था लेकिन साथ ही साथ उन्होंने ये भी कहा था कि ऐसे कानून की जरूरत नहीं थी। भारत में भी कई विपक्षी दलों ने भारत में इस कानून से पड़ोसी देशों से संबंध पर चिंता जताई थी।

अफगानिस्तान में कोई प्रताड़ित अल्पसंख्यक नहीं- हामिद करजई

इसी कानून के एक अहम हिस्से अफगानिस्तान ने खुले तौर पर इसके समर्थन या विरोध में तो कुछ नहीं कहा। लेकिन अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने बीते दिनों बयान दिया था कि अफगानिस्तान में कोई प्रताड़ित अल्पसंख्यक नहीं है, पूरा देश ही प्रताड़ित है। हम लंबे समय से युद्ध और संघर्ष में हैं। अफगानिस्तान में सभी धर्मों मुस्लिमों और हिंदुओं और सिखों- जो हमारे तीन मुख्य धर्म हैं, जो इसके शिकार रहे हैं।

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बता दें कि भारत में इस कानून का पुरजोर विरोध हो रहा है। पिछले एक महीने से कई प्रदर्शनकारी सड़कों पर इस कानून के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। इस कानून के तहत बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी धर्म के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। साथ ही नागरिकता मिलने से पहले जो 11 साल तक रुकना पड़ता था, अब सिर्फ 6 साल ही समय कर दिया गया है।

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