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मेट्रो के किराए में बढ़ोत्तरी को लेकर चिली में मचा बवाल
सैंटियागो: मेट्रो ट्रेन के किराए में बढ़ोतरी जैसी बात मामूली लग सकती है लेकिन इसी बात ने चिली को आग में झोंक दिया है। करीब महीने भर से बवाल जारी है, आगजनी, लूटपाट, और विरोध प्रदर्शनों का दौर खत्म होने की बजाए फैलता ही जा रहा है। अब मामला मेट्रो किराया नहीं बल्कि समाज में असमानता व महंगाई का मसला बन गया है। सरकार ने किराये में बढ़ोतरी का फैसला तो वापस ले लिया, इसके बावजूद प्रदर्शन नहीं थम रहे हैं।
शुरुआत में यह विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, जो बाद में सामाजिक नीतियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ हुई हिंसक झड़पों से व्यापक हो गया। यह विरोध प्रदर्शन छह अक्टूबर से शुरू हुआ था। हालात कंट्रोल करने के लिए की गई पुलिस कार्रवाई में दर्जन भर से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। सरकार ने प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए कई उपायों का प्रस्ताव रखा है, जिसमें सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए 1.2 अरब डॉलर का आवंटन करने का वादा किया गया है।
चिली लैटिन अमरीका के सबसे अमीर देशों में गिना जाता है, लेकिन यहां लोगों में भारी आर्थिक असमानता भी है। यानी चुनिंदा लोगों के पास बहुत ज़्यादा धन है और ज़्यादातर लोग आर्थिक तौर पर संघर्ष कर रहे हैं। 36 सदस्य देशों वाले इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन में चिली में आमदनी में समानता की स्थिति सबसे बुरी है।
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अब हालात ये हैं कि चर्चों को निशाना बनाया जा रहा है और उनमें तोडफ़ोड़ व लूटपाट की जा रही है। जबकि सुरक्षा के मद्देनजर राजधानी सैंटियागो में सेना को तैनात कर दिया गया है। सैंटियागो में फिलहाल इमरजेंसी लागू है, रात के वक्त कफ्र्यू लगा दिया जाता है। बीस हजार पुलिसकर्मी राजधानी की सड़कों पर गश्त करते हैं।
राष्ट्रपति सेबास्टियान पेन्येरा ने लोगों से इस बात के लिए माफी मांगी है कि उन्होंने सामाजिक असंतोष के पैमाने को न समझने की भूल की। उन्होंने कहा, 'समस्याएं सालों से जमा हो रही थी, हम सरकार में बैठे लोग उन्हें समझने में अक्षम थे।Ó राष्ट्रपति ने मेट्रो ट्रेन के किरायों में वृद्धि को वापस लेने की तो घोषणा कर ही दी थी, अब न्यूनतम पेंशन और वेतन बढ़ाने और दवाओं की कीमत कम करने के अलावा रईसों का टैक्स बढ़ाने और सांसदों और अधिकारियों का वेतन घटाने का एलान किया है।
सेबास्टियान पेन्येरा की सरकार ने असंतोष को मुजरिमों का काम बताया था और इमरजेंसी की घोषणा कर दी। 1990 में लोकतंत्र की बहाली के बाद से वहां कफ्र्यू नहीं लगा था और देश ने ऐसे कदमों को सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं के समय में देखा था, राजनीतिक विरोध प्रदर्शनों के दौरान नहीं। लेकिन ऐसे कदमों ने हालात को और खराब बना दिया और प्रदर्शनकारियों का गुस्सा ऐसा भड़का कि वो अभी तक शांत नहीं हुआ है।
चिली में 1970 से 1973 के बीच कम्युनिस्ट के झुकाव वाली साल्वोडोर आयेन्दे की सरकार थी। ऑगस्टो पिनोचे के नेतृत्व में हुए सैन्य विद्रोह के बाद इस सरकार का तख्तापलट हुआ। आयन्दे लोकलुभावन योजनाएं निकाल रहे थे लेकिन उनका भी अर्थव्यवस्था पर अधिक असर नहीं हो पाया। इस कारण उन्हें सत्ता से हटा दिया गया था। पिनोचे के दौरान दौरान आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई गई। उन्होंने ट्रेड यूनियन को बैन किया, स्थानीय व्यवसायों को टैक्स से मिलने वाली छूट को हटा दिया, सभी सरकारी इकाइयों का निजीकरण कर दिया गया। 1990 में पिनोचे की सत्ता खत्म हुई। इसके बाद कभी लोकतांत्रिक पार्टी सत्ता में रही तो कभी सोशलिस्ट पार्टी। दिलचस्प बात ये है कि देश में अब भी 1990 का वही संविधान लागू है जो पिनोचे के कार्यकाल में बनाया गया था। चूंकि ये संविधान सेना ने बनाया था सो सेना अपने अधिकार और काम की चीजें उसमें रख कर चली गई। इसमें आम नागरिकों वाली कोई बात नहीं है।