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पाकिस्तान में आज भी चलता है कबीलाई सिस्टम
इस्लामाबाद। अफगानिस्तान से सटे पाकिस्तान के सीमांत इलाके आज भी सैकड़ों वर्ष पुरानी व्यवस्था में पड़े हुए हैं। यहां न तो पुलिस की चलती है और न सरकार की। सब कुछ कबीलाई यानी ट्राइबल प्रमुखों की मनमर्जी से चलता है। उनके ही नियम-कायदे सबको मानने पड़ते हैं। भले ही पाकिस्तान ने उत्तर पश्चिम सीमांत इलाकों का पूर्ण रूप से पाकिस्तान में विलय कर लिया हो लेकिन आज भी तालिबानी और कबीलाई कानून लोगों को मानने पड़ते हैं।
पाकिस्तान के ट्राइबल इलाके में ७ जिले आते हैं जिसमें ५० लाख लोग रहते हैं और इस जनसंख्या में ९७ फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों की है। अफगानिस्तान की सीमा से लगे इन सात जिलों को पाकिस्तान फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया (फाटा) कहा जाता है जहां १९४७ से २०१८ तक पाकिस्तानी कानून लागू नहीं होता था बल्कि फ्रंटियर क्राइम्स रेग्यूलेशन चलता था। चूंकि फाटा में पाकिस्तानी कानून लागू नहीं होते थे सो प्रवर्तन एजेंसियां इस क्षेत्र में काम नहीं कर पाती थीं और बरसों तक यहां हिंसा व हथियारबंद ग्रुपों का बोलबाला रहा।
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२००७ में पाकिस्तान सरकार ने ट्राइबल इलाकों से तहरीक - ए - तालिबान और उसके सहायक गुटों का कंट्रोल खत्म करने के लिए कई सैन्य कार्रवाइयां कीं जिसमें हजारों सशस्त्र लड़ाके और सैकड़ों सैनिक मारे गए। मई २०१८ में पाकिस्तान सरकार ने ट्राइबल इलाकों का पड़ोसी खैबर पख्तूनवा के साथ विलय करने का फैसला किया। खैबर पख्तूनवा पाकिस्तान के कंट्रोल वाला इलाका है। इस विलय का बाजौर, मोहमंद, खैबर, ओरकजई, कुर्रम, नॉर्थ वजीरिस्तान और साउथ वजीरिस्तान के लोगों का लंबे समय से इंतजार था क्योंकि उन्हें लगता था कि पाकिस्तान का पूर्ण नागरिक बन जाने से उनके जीवन में सुधार आ जाएगा। लेकिन दुर्भाग्य से लोगों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया।
सन् ४७ में आजादी के बाद पाकिस्तान की उत्तर पश्चिमी सीमा से लगे २७,२०० वर्ग किमी पहाड़ी इलाके में सब कुछ बाकी पाकिस्तान से अलग-थलग था। १९वीं सदी में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा एक विशेष प्रशासनिक ढांचा बनाया गया था जिसे फ्रंटियर क्राइम्स रेग्यूलेशन (एफसीआर) कहा जाता था। इसके तहत पश्तून ट्राइब को अपने क्षेत्र में स्वतंत्र नियंत्रण का अधिकार मिला हुआ था। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि ब्रिटिश हुकूमत के प्रति विरोध को दबाया जा सके। अंग्रेज एफसीआर के जरिए पश्तूनवाली (ट्राइबल आचार संहिता) को अपने लायदे में इस्तेमाल करना चाहते थे। अंग्रेजों का सिस्टम राजनीतिक एजेंटों के जरिए चलता था जिन्हें व्यापक वैधानिक, प्रशासनिक व राजनीतिक अधिकार मिले हुए थे। इस सिस्ïटम में फाटा के निवासियों को वैधानिक प्रतिनिधित्व और अपील का अधिकार नहीं था। एफसीआर के जरिए सामूहिक न्याय की व्यवस्था लागू की गई जिसमें किसी एक व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध की सजा समूचे समुदाय को दी जाती थी।
पाकिस्तान की आजादी के बाद फाटा में एफसीआर चलता रहा। संविधान में भी लिख दिया गया कि फाटा को संसदीय कानूनों से पृथक रखा जाएगा। राष्ट्रपति को भी इतना अधिकार था कि वह ट्राइबल प्रमुखों से सलाह मशविरा करके फाटा के बारे में कोई निर्णय ले सकेंगे।
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पाकिस्तान ने सिस्टम की इन खामियों का अपने हक में फायदा भी उठाया। अस्सी के दशक में पाकिस्तान के सैन्य शासन ने अमेरिका के समर्थन से अफगान तालिबान का गठन किया जिससे कि अफगानिस्तान में सोवियत संघ को चुनौती दी जा सके। तालिबान लड़ाकों को फाटा में ट्रेनिंग दी जाती थी। इसके अलावा विद्रोही सोवियत सेनाओं पर हमले करके फाटा में छिप जाते थे।
११ सितम्बर २०११ को वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद स्थितियां और खराब हो गईं। फाटा के कुछ इलाके तहरीक-ए-तालिबान और अल कायदा के कंट्रोल में आ गए और वहां इन गुटों के लड़ाकों का गढ़ बन गया। ये गुट डरा-धमका कर, घूस देकर, धार्मिक प्रचार करके और हिंसा फैला कर ताकतवार बनते चले गए। जिन ट्राइबल प्रमुखों ने इन गुटों को चुनौती दी उनकी हत्या कर दी गई। इन गुटों ने शिक्षा संस्थानों को नष्टï कर दिया, एनजीओ पर प्रतिबंध लगा दिए, विकास कार्य पूरी तरह ठप करा दिए और ऐसा करके फाटा के निवासियों को बाकी पाकिस्तान से और भी अलग-थलग कर दिया। हालत ये हो गए कि फाटा में सरकार की मौजूदगी नाममात्र को रह गई। फाटा इलाका-ए-गैर यानी अनजाना क्षेत्र हो गया।
अगस्त २०१६ में पाकिस्तान सरकार ने फाटा को खैबर पख्तूनवा में मिलाने का प्रस्ताव किया। २४ मई २०१८ में फाटा सुधार कमेटी बिल पर संसद में मतदान हुआ और ये सर्वसम्मति से पास हो गया। अगले ही दिन सीनेट ने बिल को मंजूरी दे दी और एक दिन बाद खैबर पख्तूनवा प्रांतीय असेम्बली ने इसे पास कर दिया। विलय के बाद एफसीआर समेत 'फाटा ' के सभी सिस्टम खत्म कर दिए गए। लेकिन संट ये पैदा हो गया कि पुराने कानून खत्म हो गए जबकि नए कानूनों को लागू करवाने का कोई सिस्टम बन नहीं पाया। पुलिस, अभियोजक, कोर्ट व जज की व्यवस्था नदारद थी। मूल योजना थी कि विलय की प्रक्रिया पांच साल में लागू की जाएगी ताकि नया सिस्टम साथ साथ बनता रहे। लेकिन कोई सिस्टम बनाए बगैर ही विलय पूरा कर लिया गया। इस पेचीदा हालत में सरकार ने एक अंतरिम गवर्नेंस कानून बना दिया जिसमें फाटा के पुराने नियम ही थे। यानी घूम फिर कर फाटा के लोगों की जिंदगी उसी पुराने ढर्रे पर चल रही है।