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Bangladesh: आंखें दिखा रहा बांग्लादेश, जिसके लिए भारतीयों ने दिया था ऐतिहासिक टैक्स
Bangladesh: बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार बदलने के बाद भारत के साथ उसके रिश्ते भी कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
Bangladesh: शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश के तेवर ही बदल गए हैं। जिस भारत ने उसकी स्थापना में बेइंतिहा मदद की अब उसी भारत को बांग्लादेश की केयरटेकर सरकार, वहां के नेता, रिटायर्ड फौजी वगैरह आंखें दिखा रहे हैं। जिस पाकिस्तान ने बेइंतहा जुल्म किये अब उसी पाकिस्तान से बांग्लादेश के नेता गले मिल कर दोस्ती कर रहे हैं। ये वही बांग्लादेश है जिसके एक करोड़ से ज्यादा शरणार्थियों को भारत ने शरण दी। इसी बांग्लादेश के लिए भारत ने अपने नागरिकों पर टैक्स लगाया था। ऐसा टैक्स जो दुनिया में आज तक किसी अन्य देश ने नहीं लगाया है।
अनूठा कदम
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से पहले और बाद में भारत सरकार ने शरणार्थियों की विशाल समस्या से निपटने के लिए एक अनूठा कदम उठाया था। हुआ ये कि अप्रैल 1971 से, तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सैन्य शासकों के दमन के चलते लाखों शरणार्थी भारत के सीमावर्ती राज्यों में आने लगे। देखते-देखते अक्टूबर 1971 तक शरणार्थियों की संख्या एक करोड़ हो गई थी। इतने लोगों के लिए न सिर्फ आवास की समस्या थी, बल्कि राहत और पुनर्वास के लिए भी भारी रकम की दरकार थी। जब इन शरणार्थियों की राहत के लिए मिलयी सभी अंतर्राष्ट्रीय सहायता पूरी तरह से नाकाफी पाई गई, तो भारत सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया और 15 नवंबर, 1971 से 5 पैसे का विशेष टैक्स लगा दिया गया। यह टैक्स लिफाफे से लेकर मनीऑर्डर और टेलीग्राम सहित सभी डाक वस्तुओं पर चुकाया जाना था। सिर्फ पोस्टकार्ड, रजिस्टर्ड अखबार, नेत्रहीनों के लिए साहित्य और जम्मू और कश्मीर राज्यों में पोस्ट किए गए आइटम्स को टैक्स के दायरे से छूट दी गई थी।
विशेष टिकट
पोस्टल आइटम्स पर रिफ्यूजी टैक्स के लिए गुलाबी रंग का एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया था जिसपर शरणार्थियों की सांकेतिक फोटो दी हुई थी।
अभूतपूर्व कदम
इससे पहले या बाद में कभी भी भारत में शरणार्थियों के किसी अन्य ग्रुप पर ऐसा टैक्स नहीं लगाया गया है, चाहे वो चीनी उत्पीड़न से बचकर भाग रहे तिब्बती शरणार्थी हों या श्रीलंका में गृहयुद्ध से बचकर भाग रहे तमिल शरणार्थी। पोस्टल आइटम पर लगाए गए टैक्स की खास बात यह थी कि इसके जरिये जमा किया गया पूरा पैसा शरणार्थी राहत कोष में चला जाता था और इसका कोई भी हिस्सा डाक और तार विभाग को नहीं दिया जाता था।
दस पैसे का एक अन्य टैक्स
पोस्टल आइटम्स पर पांच पैसे के अनिवार्य टैक्स के अलावा सरकार ने एक और टैक्स लगाया था। ये टैक्स दस पैसे का था जिसे उन सभी लेनदेन पर लगाया गया, जिनके लिए सामान्य रूप से स्टांप शुल्क का भुगतान करना जरूरी था। लगभग डेढ़ महीने की अवधि में, समय की मांग को पूरा करने के लिए टैक्स नीति में कई बदलाव किए गए। स्टाम्प ड्यूटी वाले दस्तावेजों पर लगने वाले रिफ्यूजी रिलीफ टैक्स के लिए सरकारी कार्यालय 'सर्विस' टिकटों का इस्तेमाल करते थे और इनकी सप्लाई राज्य के कोषागारों द्वारा की जाती थी।
खास इंतजाम
रिफ्यूजी टैक्स के क्रियान्वयन के लिए डाक विभाग ने भी अभूतपूर्व कदम उठाए। सबसे पहले, इस टैक्स के कारण टिकटों की अचानक बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए, उस समय प्रचलन में रहे पांच पैसे के 'परिवार नियोजन' टिकट पर नासिक में सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस में अंग्रेजी और हिंदी में "शरणार्थी राहत" शब्द छपवाए गए। दूसरे, टैक्स एकत्र करने के लिए विशेष रूप से एक यूनीक डिजाइन वाले एक अलग टिकट की योजना बनाई गई थी, लेकिन चूंकि इसमें समय लगता इसलिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में टिकटों की छपाई करवाने के लिए इमरजेंसी उपाय किए गए। अंततः 1 दिसंबर, 1971 को 5 पैसे का नया टिकट जारी किया गया जिसमें एक शरणार्थी परिवार की फोटो दी गई थी।
नायाब उपाय
नए शरणार्थी टिकटों को देश भर में डाकघरों के पूरे नेटवर्क में वितरित करने का काम बेहद मुश्किल था सो इसका प्रयास भी नहीं किया गया। ऐसे में एक नया आईडिया आया और डाक अधिकारियों ने एक सामान्य आदेश में सभी पोस्टमास्टरों को अपनी तरफ से "शरणार्थी राहत" शब्दों के साथ मुहर तैयार करने की अनुमति दी, जिसे 'परिवार नियोजन' टिकट पर लगाया जा सकता था। कुछ पोस्टऑफिसों में, 'परिवार नियोजन' टिकट की कम सप्लाई के कारण, अन्य टिकटों को ओवरप्रिंट किया गया। इसी क्रम में रबर की स्पेशल मुहरें भी बनवाई गईं जिसका जिम्मा अलीगढ़ स्थित यूनिट को सौंपा गया था।
इतने साल चला टैक्स
1973 की शुरुआत में महानिदेशक, पी.एण्ड.टी. दिल्ली द्वारा सभी सर्किल प्रमुखों को लिखे गए एक पत्र में, 1 अप्रैल, 1973 से रिफ्यूजी रिलीफ टैक्स (आरआरटी) को निरस्त कर दिया गया। इस आदेश में कहा गया था कि सभी आरआरटी डाक टिकट और अन्य टिकट के बचे स्टॉक, डाक स्टेशनरी आदि को 30 सितंबर, 1973 तक स्थानीय कार्यालयों और कोषागारों में एक्सचेंज किया जा सकेगा। ये रिफ्यूजी रिलीफ टैक्स 15 नवंबर 1971 से 31 मार्च 1973 तक लगा रहा।
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अर्थव्यवस्था पर बढ़ाव
1971-72 की घटनाएँ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण थीं और इनका 1971-72 तथा 1972-73, दोनों में बजटीय विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा। 1971-72 के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बजटीय लेन-देन के संयुक्त संशोधित अनुमानों से पता चलता है कि कुल व्यय और चालू राजस्व के बीच का अंतर 2192 करोड़ रुपये की मूल बजट अपेक्षा की तुलना में 2839 करोड़ रुपये का निकला।
- अक्टूबर 1971 तक विभिन्न शरणार्थी शिविरों में लाखों लोगों के बोझ का सामना करते हुए, भारत सरकार ने अपनी टैक्स नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए, और कम से कम लागत के एक हिस्से की भरपाई करने और शरणार्थियों को और अधिक सहायता प्रदान करने के लिए नए टैक्स को पेश किया।
- डाक वस्तुओं पर टैक्स अध्यादेश 1971 के तहत, भारत सरकार ने पूरे देश में आरआरटी लागू किया जो 15 नवंबर, 1971 को लागू हुआ। हालाँकि आरआरटी का उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर करने का इरादा था, लेकिन कई परिस्थितियाँ ऐसी थीं जिनमें टैक्स से छूट दी गई थी।
इतिहास में दर्ज
1971 के अकल्पनीय मानवीय संकट और बांग्लादेश के अतीत को समझने के लिए आरआरटी वास्तव में एक विशेष विषय है। भारत का आरआरटी संभवतः डाक टिकट की दुनिया में यूनीक है। ये रिफ्यूजी रिलीफ टिकट एकीकृत पाकिस्तान के अंतिम दिनों, तीसरे भारत-पाक युद्ध और एक नए देश के उदय को दर्शाता है। यह उस अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य का प्रमाण भी है जिसने बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने में मदद की।