महामारी अभी खात्मे से बहुत-बहुत दूर

अमेरिका और यूरोप में कोविड-19 की नई लहर की शुरुआत दिखाई दे रही है। अमेरिका के 14 राज्यों में नए संक्रमणों की भरमार होने लगी है। भारत अभी पहली लहर से ही बुरी तरह जूझ रहा है।

Roshni Khan
Published on: 12 Jun 2020 10:58 AM GMT
महामारी अभी खात्मे से बहुत-बहुत दूर
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लखनऊ: अमेरिका और यूरोप में कोविड-19 की नई लहर की शुरुआत दिखाई दे रही है। अमेरिका के 14 राज्यों में नए संक्रमणों की भरमार होने लगी है। भारत अभी पहली लहर से ही बुरी तरह जूझ रहा है।

जिस तरह से अमेरिका, भारत और बाकी देशों में संक्रमण की तादाद बढ़ती जा रही उसके बारे में तर्क दिया जा रहा है कि टेस्टिंग की संख्या बढ्ने से नए केस पता लग रहे हैं। ये सही भी है। लेकिन इसके साथ कुछ एक्स्पर्ट्स का ये भी कहना है कि अमेरिका और कई देश सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के बारे में हाथ खड़े करने लगे हैं। इसकी वजह सार्वजनिक स्वास्थ्य इनफ्रास्ट्रक्चर पर पड़ा जबर्दस्त बोझ है। एक्स्पर्ट्स का कहना है कि अभी से हार मान लेना बहुत खतरनाक कदम साबित होगा। कोरोना वायरस की घातकता और महामारी की स्थिति रत्ती भर नहीं बदली है।

आने वाले हफ्तों, महीनों में मीडिया में चाहे जो बताया और दिखाया जाए, सच्चाई यही रहेगी। शिकागो यूनिवर्सिटी की संक्रामक रोग एक्सपेर्ट सारा कोबे का कहना है कि 6 महीने बाद भी स्थिति में कोई व्यापक बदलाव नहीं आने वाला है। हमारे बीच उच्च संक्रामकता वाला वायरस मौजूद रहेगा, एक बड़ी जनसंख्या वायरस के प्रति जोखिम में रहेगी। ये मानना पड़ेगा कि चंद महीने पहले की तुलना में आज की स्थिति काफी बदतर है। जैसे जैसे बन्दिशें ढीली होती जा रहीं हैं, अधिक से अधिक लोग जोखिम के प्रति एक्सपोज़ होते जा रहे हैं।

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तो क्या वजह है कि महामारी खत्म क्यों नहीं हो रही, किसी तरह कंट्रोल में क्यों नहीं आ रही? हमें क्यों हाथ खड़े नहीं करने चाहिए। जानिए इसके बारे में –

1. अनलॉक करने से ज्यादा संख्या में लोग जोखिम के प्रति एक्सपोज होंगे : फरवरी-मार्च में चिंताएँ थीं कि विदेश से लौटने वाले लोग संक्रमण फैला देंगे लेकिन अब तो जगह जगह, गाँव में कोरोना फ़ेल गया है। अगर कोरोना दावानल यानी जंगल की आग है तो हम इंसान ईंधन रूपी पेड़ हैं। मार्च-अप्रैल में जब लॉक डाउन चरम पर था तब लोग एक-दूसरे से दूर दूर थे। लेकिन अब अनलॉक की स्थिति में सरकारों ने लोगों को पास-पास आने की इजाजत दे दी है। सो आग एक पेड़ से दूसरे पेड़ में आसानी से लग सकती है।

2. अभी हर्ड इम्यूनिटी के करीब तक नहीं पहुंचे हम : महामारी को अपने आप शांत होने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों में इम्यूनिटी पैदा होना जरूरी है। इसे ही हर्ड इम्यूनिटी या झुंड प्रतिरक्षा कहते हैं। एक्स्पर्ट्स के अनुसार कोरोना वायरस के संबंध में हर्ड इम्यूनिटी के लिए जरूरी है कि 50 फीसदी जनसंख्या इम्यून हो जाए। कुछ एक्स्पर्ट्स इसे 65 फीसदी तक रखते हैं। यानी भारत के संदर्भ में कहें तो 60 से 70 करोड़ लोगों को इम्यून होना पड़ेगा। अमेरिका में 20 – 22 करोड़ लोगों को इम्यून होना चाहिए। अभी कोई देश, प्रदेश या मोहल्ला तक हर्ड इम्यूनिटी के आस पास नहीं है। एक्स्पर्ट्स के अनुसार जहां अभी तक कोविड-19 की लहर नहीं पहुंची है वो ज्यादा जोखिम में हैं।

जंगल की आग के लिए ऐसे इलाके बढ़िया ईंधन की तरह मौजूद हैं। दुखद पहलू ये है कि व्यापक तकलीफों और मौतों के बगैर हर्ड इम्यूनिटी हासिल नहीं की जा सकती। भारत जैसे देश में यदि प्रति 200 लोगों में एक मौत हुई तो ये संख्या बहुत डरावनी होगी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम ने पिछले महीने एक मॉडेल तैयार किया था कि सभी एहतियात बरते जाएँ और अस्पताल की व्यवस्था मजबूत बनी रहे तब अमेरिका में हर्ड इम्यूनिटी कितने दिन में बन जाएगी। अनुमान निकल कर आया कि 2022 तक इसे पाया जा सकता है लेकिन इसके लिए भी सोशल डिस्टेन्सिंग का सख्ती से पालन जरूरी होगा।

3. अंतहीन लॉक डाउन या बड़े पैमाने पर मौतों के बगैर भी हो सकता है स्थिति पर कंट्रोल : महामारी को समाप्त करने के लिए हर्ड इम्यूनिटी ही एकलौता विकल्प नहीं है। आक्रामक तरीके से टेस्टिंग और संक्रमित लोगों के संपर्कों की ट्रेसिंग के जरिये महामारी को सीमित दायरे में घेर कर कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन इसमें दिक्कत ये है कि लोगों को पता भी नहीं चलता कि वे बीमार हैं और ऐसे में वो वायरस फैलाते रहते हैं। इसका भी उपाय है। टेस्टिंग और ट्रेसिंग के अलावा लोग मास्क पहनें और फिजिकल डिस्टेन्सिंग के साथ हाइजीन का सख्ती से पालन करें तो बात बन सकती है। साउथ कोरिया इस मामले में सबसे बढ़िया उदाहरण है। अगर टेस्टिंग और ट्रेसिंग भी नहीं हो सकती तो लोगों को खुद ज़िम्मेदारी से काम करना होगा। हर व्यक्ति मास्क पहने, भीड़ में न जाये, बंद जगहों में न जाये, फिजिकल डिस्टेन्सिंग का पालन करे।

4. सुरक्षा की गलतफहमी में डाल दे कोरोना वायरस : कोविड-19 से संक्रमित होने के औसतन 5 दिन बाद किसी व्यक्ति में लक्षण सामने आते हैं। लेकिन किसी किसी में 14 दिन तक लग जाते हैं। संक्रमण के बाद टेस्टिंग और फिर रिजल्ट आने में समय अलग लगता है। बहुत से लोग टेस्ट ही नहीं कराते और उनकी गिनती तब होती है जब वे अस्पताल पहुँचते हैं। संक्रमित व्यक्ति इतने दिन तक दूसरों को वायरस देता रहता है। इसका मतलब ये है कि जब तक आंकड़ों में नए केस दर्ज होते हैं उससे पहले संक्रमणों की नई लहर चलना शुरू हो चुकी होती है।

5. वैक्सीन से समाप्त हो सकती है महामारी लेकिन उसका समय तय नहीं : कोविड-19 से लोगों को बचाने के लिए कोई वैक्सीन अभी नहीं आई है। जब वैक्सीन आ भी जाएगी तो तत्काल महामारी खत्म नहीं हो जाएगी। हो सकता है वैक्सीन पूरी तरह प्रभावी ही न हो। या फिर इतनी वैक्सीन ही न हो कि सबको लगाई जा सके। जान लीजिये इन्सानों ने अभी तक सिर्फ दो बीमारियों को वैक्सीन से समाप्त किया है-चेचक और पशुओं की रिंडरपेस्ट नामक बीमारी। दोनों ही मामलों में बड़े पैमाने पर ग्लोबल प्रयास किए गए थे। सो ये न समझिए कि कोरोना को मिटाना इतना आसान होगा।

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दुर्भाग्य से लड़ाई लंबी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमें हथियार डाल देने चाहिए। बिना व्यापक उपाए किए हड़बड़ी में अनलॉक करने से स्थिति बहुत बिगड़ सकती है। इसलिए बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी टेस्टिंग, ट्रेसिंग, आइसोलेशन, मास्किंग, फिजिकल डिस्टेन्सिंग-ये सब हर हाल में सिस्टम में डालना होगा। ध्यान रहे, सबसे ज्यादा खतरे में वो स्थान हैं जो अब तक वायरस से बचे हुये हैं और जिन्होने बचाव की पुख्ता तैयारी नहीं की है। सुरक्षा का सबसे मजबूत हथियार है सोशल डिस्टेन्सिंग और अगर यही हथियार नीचे कर दिया तो फिर अपने आप को आग में झोंकने जैसा होगा।

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