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अनुमान बदलाः आधी हो जाएगी इन देशों की आबादी, चीन बनेगा सुपर पावर
दुनिया की आबादी फिलहाल 7.8 अरब है। एक अनुमान के अनुसार 2064 तक यह बढ़ कर रिकॉर्ड 9.7 अरब हो जाएगी लेकिन इसके बाद यह कम होने लगेगी और साल 2100 तक यह गिर कर 8.8 अरब हो जाएगी।
नई दिल्ली: दुनिया की आबादी फिलहाल 7.8 अरब है। एक अनुमान के अनुसार 2064 तक यह बढ़ कर रिकॉर्ड 9.7 अरब हो जाएगी लेकिन इसके बाद यह कम होने लगेगी और साल 2100 तक यह गिर कर 8.8 अरब हो जाएगी। 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने जो रिपोर्ट प्रकाशित की थी उसके अनुसार साल 2100 तक आबादी के 10.9 अरब पहुंच जाने का अनुमान था। यानी यह मौजूदा अनुमान से दो अरब ज्यादा था। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की इस नई रिपोर्ट में रिसर्चरों ने संयुक्त राष्ट्र के अनुमान को गलत बताया है। रिसर्चरों के अनुसार साल 2100 तक 195 में से 183 देशों की जनसंख्या में कमी आएगी। 23 देशों की आबादी तो आधी हो जाएगी और 34 अन्य देशों की जनसंख्या में 25 से 50 फीसदी की कमी आएगी।
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23 देशों की आबादी आधी रह जाएगी
प्रसिद्ध साइंस जर्नल लैंसेट में छपी ताजा रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने अपने आकलन में गिरते प्रजनन दर और वृद्ध आबादी को ध्यान में जरूर रखा था लेकिन नीतियों से जुड़े कुछ अन्य पैमानों को नजरंअदाज कर दिया। रिसर्चरों के अनुसार एक बार अगर आबादी गिरने लगे तो उसे रोकना नामुमकिन हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप दुनिया में सत्ता के लिहाज से बड़े बदलाव भी देखे जाएंगे। जिन 23 देशों की जनसंख्या आधी हो जाने की बात कही गई है, उनमें जापान, स्पेन, इटली, थाईलैंड, पुर्तगाल, दक्षिण कोरिया और पोलैंड शामिल हैं।
चीन बनेगा सुपर पावर
रिपोर्ट के अनुसार 2035 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन जाएगा और वह अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा। लेकिन चीन की जनसंख्या में गिरावट के बाद अमेरिका फिर से अपनी जगह हासिल करने में कामयाब रहेगा। फिलहाल चीन की जनसंख्या 1.4 अरब है। अगले अस्सी सालों में यह 73 करोड़ ही रह जाएगी। इसी दौरान अफ्रीकी देशों में जनसंख्या वृद्धि देखी जाएगी। उप सहारा अफ्रीका में आबादी तीन गुना बढ़ कर तीन अरब हो सकती है। अकेले नाइजीरिया की ही आबादी 80 करोड़ हो जाएगी।
भारत की जीडीपी
साल 2100 तक नाइजीरिया भारत के बाद जनसंख्या के लिहाज से दूसरे स्थान पर होगा। अर्थव्यवस्था और सत्ता के लिहाज से अमेरिका, चीन, नाइजीरिया और भारत दुनिया के चार अहम देश होंगे। अनुमान के अनुसार भारत की जनसंख्या में बहुत बड़े बदलाव नहीं देखे जाएंगे. और जीडीपी के लिहाज से भारत तीसरे पायदान पर होगा। जापान, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन दुनिया की दस महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में बने रहेंगे।
इस रिसर्च के मुख्य लेखक क्रिस्टोफर मुरे ने इस बारे में कहा है की ये पूर्वानुमान पर्यावरण के लिए अच्छी खबर है। खाद्य उत्पादन प्रणालियों पर दबाव कम होगा, कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा और उप सहारा अफ्रीका के हिस्सों में अहम आर्थिक मौके पैदा होंगे। हालांकि अफ्रीका के बाहर ज्यादातर देशों में आबादी घटेगी, वर्कफोर्स कम हो जाएगी और अर्थव्यवस्था पर इसका काफी बुरा असर होगा।
मुरे का कहना है कि अगर उच्च आय वाले देश चाहते हैं कि ऐसा ना हो, तो जनसंख्या स्तर को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि वे प्रवासियों को ले कर बेहतर नीतियां बनाएं और ऐसे परिवारों को आर्थिक सहयोग दें जो बच्चे चाहते हैं। लेकिन उन्हें डर है कि मौजूदा दौर में कई देश इसके ठीक विपरीत नीतियां बना रहे हैं, जिनके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
साइबेरिया में 600 गुना बढ़ गई गर्मी
साइबेरिया दुनिया के सबसे सर्द इलाकों में से एक है।लेकिन इस साल वहां रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी है। गर्मी की यह लहर जलवायु परिवर्तन के मौसम पर पड़ रहे खतरनाक असर को साफ साफ दिखा रही है। एक ताजा शोध में पाया गया है कि ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण साइबेरिया में गर्मी की संभावना कम से कम 600 गुना बढ़ गई है। रिसर्चरों की टीम ने जनवरी से जून 2020 तक साइबेरिया के मौसम का डेटा जमा किया। उन्होंने पाया कि इस दौरान एक दिन ऐसा भी था जब तापमान रिकॉर्ड 38 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। साइबेरिया में आम तौर पर साल का अधिकतम तापमान 10 से 17 डिग्री के बीच ही पहुंच पाता है।
ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, नीदरलैंड्स, जर्मनी और स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने 70 अलग अलग मॉडलों का इस्तेमाल कर के पता लगाने की कोशिश की कि अगर कोयला, तेल और गैस जलाने जैसी इंसानी गतिविधियां ना होतीं, तो क्या ग्लोबल वॉर्मिंग का इतना बुरा असर पड़ सकता था? उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण साइबेरिया के तापमान में जिस तरह का बदलाव आया है, ऐसा 80,000 सालों में एक बार होता है। इस शोध के प्रमुख लेखक और ब्रिट्रेन के मौसम विभाग के वैज्ञानिक एंड्रयू सियावरेला का कहना है कि ऐसा इंसानी हस्तक्षेप के बिना नहीं हुआ होता। वहीं, ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के एन्वायरनमेंटल चेंज इंस्टीट्यूट के निदेशक फ्रीडेरीके ऑटो का कहना है कि शोधकर्ताओं ने कई इलाकों पर रिसर्च की लेकिन 2020 में साइबेरिया जैसे हाल और कहीं भी देखे नहीं गए। रिसर्चरों ने साइबेरिया में साल के पहले छह महीनों में औसत तापमान पर ध्यान दिया। उन्होंने तापमान सामान्य से 9 डिग्री ज्यादा पाया। इसी तरह उन्होंने जून में रूसी शहर वेरखोयस्क में भी तापमान में वृद्धि देखी। वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन को जलाने से वातावरण में ऐसी गैसें फंसीं, जिन्होंने अतिरिक्त गर्मी फैलाई। इसके अलावा जंगलों की आग, कीटों के प्रकोप और पर्माफ्रॉस्ट ने भी स्थिति खराब की।
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इतनी गर्मी क्यों है?
पर्माफ्रॉस्ट यानी भीषण पाला पड़ने के कारण एक तरफ तेल रिसाव हुए क्योंकि सर्दी में तेल की पाइपें फटीं, तो दूसरी ओर पाले की बर्फ जब पिघलती है, तो उसके नीचे की जमीन अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसें छोड़ने लगती है। इस तरह से यह ग्लोबल वॉर्मिंग को और बढ़ा देता है।
वैज्ञानिक जगत में इस शोध को बेहद विश्वसनीय बताया जा रहा है। फ्रांस की वैज्ञानिक वैलेरी मेसन डेलमोटे का कहना है कि इस तरह के शोध लोगों और दुनिया के नेताओं को एक मौका देते हैं कि वे बिंदुओं को जोड़ें और मौसम में बदलाव की घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के साथ जोड़ कर समझ सकें। पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी डेविड टिटले का कहना है कि यह शोध दिखाता है कि भविष्य का मौसम कितना अलग हुआ करेगा, "हमें या तो खुद को बदलना होगा या फिर पछताना होगा।"
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