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तबाही लाई सुअरों की भूख, नहीं लगा ब्रेक तो दुनिया का हो जाएगा विनाश
स्टडीज का एक अनुमान के मुताबिक इस दशक तक दुनिया का आधा चारा चीन के सुअर खा जाएंगे। चीन की यह भूख वाकई सबको खाने पर तुली है। एक रिपोर्ट मुताबिक, दुनिया में पोर्क (सुअर के मांस) की आधी खपत केवल चीन में है।
नई दिल्ली: पिछले चार दशकों से तेजी से आगे बढ़ते चीन को सबने देखा। चीन ने खुद को इतने तेजी से विकसित किया है कि उसका अंजाम आज पूरी दुनिया को भोगना पड़ रहा है। चीन के बढ़ते विकास के पीछे पोर्क इंडस्ट्री का बड़ा हाथ है। जी हां, एक तरफ चीन के सुअरों की भूख ने दुनिया को तबाह करने पर तुली हुई है, तो वहीं चीन पोर्क इंडस्ट्री के जरिए आद्यौगिक क्षेत्र में तेजी से उड़ान भर रहा है। हैरत की बात यह कि एक तरफ जहां पूरी दुनिया चीनी वायरस कोरोना महामारी के साथ-साथ डगमगाई अर्थव्यवस्था विषम परिस्थितियों से जुझ रही है, तो वहीं इस स्थिति में भी चीन की अर्थव्यवस्था अपनी रफ्तार भर रही है।
चीन में होती है पोर्क की आधी खपत
एक रिपोर्ट मुताबिक, दुनिया में पोर्क (सुअर के मांस) की आधी खपत केवल चीन में है। चीन में ना केवल सुअरों को खाया जाता है बल्कि इसका बड़ी मात्रा में प्रोडक्शन भी किया जाता है। पोर्क के प्रोडक्शन के मामले चीन तीसरे नंबर पर है जबकि पहले और दूसरे नंबर पर अमेरिका और यूरोपीय यूनियन है। जानकारी के मुताबिक, पिछले साल सितंबर में जब अफ्रीकन स्वाइन फीवर और कोरोना के ख़तरे का सामना कर रहा था, उसी बीच चीन से विश्व के सबसे बड़े पिग फार्म का मामले की तस्वीर सामने आई। चीन ने उपभोग और प्रोडक्शन का ऐसा खाका तैयार कर लिया है कि अगर कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक परिस्थिति सामने आए, तो उस स्थित में भी उसके पास चारों तरफ से मुनाफा ही मुनाफा रहेगा, जैसे सुअर के बाड़े में पानी।
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सुअरों के लिए जरूरी है सोयाबीन
चीन के इस पोर्क इंडस्ट्री को अगर गहराई से समझे तो बता दें कि सुअरों के द्वारा मुनाफा कमाने के लिए ज़रूरत है सुअरों को भरपूर प्रोटीन देना,जिससे उनसे मोटा मांस मिल सके। आपको जानकर हैरानी होगी कि चीन ने इन्हीं सुअरों के पालन पोषण के लिए अमेज़न के जंगलों को साफ़ कर दिया है और वहां सोयाबीन की खेती कर रहा है। पहले चीन सोयाबीन की आयात अमेरिका से करता था लेकिन बदलते हालात और बिगड़ते रिश्तों को देखते हुए चीन ने ब्राजील में विकल्प देखना शुरू कर दिया।
सोयाबीन के लिए 1500 टन पानी की जरूरत
जानकारी के मुताबिक, सोयाबीन की खेती के लिए ना सिर्फ जमीन की जरूरत होती है बल्कि करीब 1500 टन पानी की आवश्यकता होती है। अगर चीन ज़मीन का जुगाड़ कर भी लेता है, तो पानी का इंतज़ाम करना उसके लिए मुश्किल है। ऐसे में आप यह अंदाजा लगा सकते है कि चीन की कमजोरी सोयाबीन से बढ़कर कुछ नहीं हो सकती है, चीनी पोर्क इंडस्ट्री की सबसे लगातार आगे बढ़ाने के लिए उसे सोयाबीन की जरूरत पड़ती है। अमेरिका से रिश्ता खराब होने के उसने सोयाबीन का आयाक करने के लिए ब्राजील का हाथ थामा है।
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चीन की यह है खतरनाक भूख
बताते चलें कि स्टडीज का एक अनुमान के मुताबिक इस दशक तक दुनिया का आधा चारा चीन के सुअर खा जाएंगे। चीन की यह भूख वाकई सबको खाने पर तुली है।
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