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सनकी तानाशाह की ये महंगी कारें, बैन के बाद भी मिल जाती हैं इन्हें

संयुक्त राष्ट्र और बहुत से देशों ने नॉर्थ कोरिया पर कई तरह के बैन लगाए हुए हैं। जिसकी वजह से दूसरे देशों से वहां कोई सामान नहीं पहुंच सकता है। यहां सिर्फ दवाओं या बहुत जरूरी सामान ही पंहुच पाते हैं।

Vidushi Mishra
Published on: 22 April 2020 1:12 PM GMT
सनकी तानाशाह की ये महंगी कारें, बैन के बाद भी मिल जाती हैं इन्हें
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सनकी तानाशाह की ये महंगी कारें, बैन के बाद भी मिल जाती हैं इन्हें

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र और बहुत से देशों ने नॉर्थ कोरिया पर कई तरह के बैन लगाए हुए हैं। जिसकी वजह से दूसरे देशों से वहां कोई सामान नहीं पहुंच सकता है। यहां सिर्फ दवाओं या बहुत जरूरी सामान ही पंहुच पाते हैं। और इन सामानों को भी संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में भेजा जाता है। साथ ही नॉर्थ कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन हर 2-3 महीनें में महंगी लग्जरी कारें बदलता रहता है। लेकिन फिर ये सब दुनियाभर के आइटम कैसे पहुंच पाते है उसके पास।

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मर्सिडीज़ और महंगी से महंगी गाड़ियां

बीते दिनों एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ था कि आखिर ये काम होता कैसे है। ये रिपोर्ट इसलिए खास है, क्योंकि उसमें बताया गया है कि किस सीक्रेट रूट से बडे़ आराम से किम के पास मर्सिडीज़ और महंगी से महंगी गाड़ियां पहुंचती रहती हैं।

तानाशाह किम को ज्यादातर अपने सुरक्षा गार्डों के समूह के साथ मर्सिडीज़ मेबैच S600 पुलमैन गार्ड जैसी ग्लैमर गाड़ियों में देखा जाता है।

इतनी रोकों के बाद भी मर्सिडीज़ बनाने वाली कंपनी डैमलर क्रिसलर साफ कहती रही है कि वह नॉर्थ कोरिया के साथ कोई व्यापार नहीं करती। डैमलर क्रिसलर ने ये भी कहा था कि जब तक अमेरिका और यूएन के प्रतिबंध जारी रहेंगे, कारोबार नहीं किया जाएगा।

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किस रूट से ये लग्ज़री गाड़ियां

इस राज का पता लगाने के लिए सेंटर फॉर एडवांस्ड डिफेंस स्टडीज़ के शोधकर्ताओं लूकस कुओ और जेसन आर्टरबर्न ने महीनों तक जरूरी कागज और डेटा जुटाकर ये जानने की कोशिश की कि ​कोरियाई तानाशाह तक किस रूट से ये लग्ज़री गाड़ियां पहुंचती हैं।

इसके बाद दोनों शोधकर्ताओं ने एक ताज़ा रिपोर्ट जारी करते हुए इस सीक्रेट और डार्क रूट का खुलासा किया है, जिसे दुनिया भर के मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है। आप भी इस सीक्रेट रूट के ज़रिए किम की ताकत और रणनीति के बारे में जानें।

सेंटर फॉर एडवांस्ड डिफेंस स्टडीज़ की रिपोर्ट के अनुसार, पांच लाख डॉलर यानी करीब 3 करोड़ 44 लाख रुपये प्रति कार कीमत वाली दो मर्सिडीज़ मेबाक S600 पुलमैन गार्ड लग्ज़री गाड़ियां 14 जून 2018 को नीदरलैंड्स के रॉटरडैम से जहाज़ में लोड की गई थीं।

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किस रास्ते से

एक रिपोर्ट के अनुसार, जहाज़ के ज़रिये ये कारें उत्तरी चीन के डालियन पोर्ट पर पहुंचीं। साथ ही एनवायटी ने भी इस बारे में शोध किया कि आखिर ये गाड़ियां किम तक पहुंच किस रास्ते से रही हैं।

इसके बाद 31 जुलाई तक दोनों लग्जरी कारें डालियन पहुंच चुकी थीं और 26 अगस्त को चीन से ये कारें जापान के ओसाका पोर्ट के लिए चलीं।

रिपोर्ट के अनुसार, ओसाका से ये दोनों कारें साउथ कोरिया के बुसान पहुंचीं। अब डैमलर क्रिसलर कंपनी का कहना है कि कंपनी अपने एक्सपोर्ट पर नियंत्रण रखती है लेकिन खरीदार के पास कार पहुंचने के बाद वो उसका क्या करता है, कंपनी का इस पर कोई ज़ोर नहीं है।

लेकिन साउथ कोरिया से ये दोनों कारें रूस के नैकहोदका पहुंचीं। जिस जहाज़ में पहुंचीं, वो मार्शल द्वीप में रजिस्टर्ड डू यंग शिपिंग कंपनी का था।

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तस्करी या प्रतिबंधों से बचने के लिए

इन सबमें रोमांचक बात हुई। बुसान से रूस के लिए निकलने के 18 दिन बाद ये जहाज़ ट्रैकर की रेंज से गायब हो गया था। इस पर एनवायटी का कहना है कि तस्करी या प्रतिबंधों से बचने के लिए ये तरीका अपनाया जाता है।

जब ये जहाज़ दक्षिण कोरियाई समुद्री सीमा में दोबारा दिखा तो सेंटर फॉर एडवांस्ड डिफेंस स्टडीज़ की रिपोर्ट के अनुसार ये जहाज़ नैकहोदका से कोयला ट्रांसपोर्ट कर रहा था।

साउथ कोरिया से चला जहाज़ ट्रैकर की रेंज से गायब हुआ था, संभव है कि डायरेक्ट नॉर्थ कोरिया तक उसी दौरान कारें डिलीवर की गई हों। लेकिन, इस समुद्री सफर का कोई रिकॉर्ड नहीं है इसलिए इसे सीक्रेट या 'डार्क वोयेज' का नाम दिया जा रहा है।

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पूरी हिस्ट्री जुटाकर ही सौदा

सेंटर फॉर एडवांस्ड डिफेंस स्टडीज़ की रिपोर्ट के अनुसार, मर्सिडीज़ निर्माता कंपनी डैमलर क्रिसलर का साफ कहना है कि वह ऐसी गाड़ियों के खरीदारों के बारे में पूरी हिस्ट्री जुटाकर ही सौदा करती है और देशों के प्रमुखों या प्रमुख लोगों को ही ये कारें बेची जाती हैं।

ये ऐसा इसलिए है क्योंकि मर्सिडीज़ मेबाक S600 पुलमैन गार्ड लग्ज़री गाड़ियों में लैमिनेटेड शीशे होते हैं। पूरी कार बुलट प्रूफ होती है, इसमें राइफल्स और कुछ विस्फोटकों का भी इंतज़ाम होता है।

आगे कंपनी का कहना है कि ये कारें अपराधियों के हाथ न लगें इसलिए कंपनी खरीदार का बैकग्राउंड चेक करती है।

Vidushi Mishra

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