TRENDING TAGS :
विश्वयुद्ध की चेतावनी, तुरंत रोक दें पानी की बर्बादी, हो जाएं सतर्क
दुनिया में जल की किल्लत देखते हुए करीब 32 साल पहले ही ये भविष्यवाणी कर दी गई थी कि अगर समय रहते इंसानों ने जल की महत्ता को नहीं समझा तो अगला विश्वयुद्ध जल को लेकर होगा। लोगों को समझना होगा कि पानी की किल्लत से निपटने में खुद सबको काम करना है।
नीलमणि लाल
नई दिल्ली: दुनियाभर के लोगों को पानी के महत्व को समझाने और स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। आज से कैच द रेन यानी वर्षा जल संचय अभियान देश भर में चलाया जाएगा। हर साल विश्व जल दिवस की एक थीम निर्धारित की जाती है। इस साल की थीम ‘वैल्यूइंग वॉटर’ है। इसका लक्ष्य लोगों को पानी के महत्व को समझाना है।
जल को लेकर विश्वयुद्ध होने की भविष्यवाणी
दुनिया में जल की किल्लत देखते हुए करीब 32 साल पहले ही ये भविष्यवाणी कर दी गई थी कि अगर समय रहते इंसानों ने जल की महत्ता को नहीं समझा तो अगला विश्वयुद्ध जल को लेकर होगा। ये भविष्यवाणी संयुक्त राष्ट्र के छठे महासचिव बुतरस घाली ने की थी।
उनके अलावा 1995 में वर्ल्ड बैंक के इस्माइल सेराग्लेडिन ने भी विश्व में पानी के संकट की भयावहता को देखते हुए कहा था कि इस शताब्दी में तेल के लिए युद्ध हुआ लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिए होगी। एक बार संबोधन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोगों को चेताते हुए कहा था कि ध्यान रहे कि आग पानी में भी लगती है और कहीं ऐसा न हो कि अगला विश्वयुद्ध पानी के मसले पर हो।
यह भी पढ़ें: कोरोना मौजूद इन जानवरों में, WHO का खुलासा, महामारी का सच आया सामने
(सांकेतिक फोटो- सोशल मीडिया)
पानी की किल्लत से निपटने के लिए खुद करना होगा काम
लोगों को समझना होगा कि पानी की किल्लत से निपटने में खुद सबको काम करना है। पानी की गंभीर किल्लत के बीच भारत सरकार ने माना है कि अपर्याप्त, अधूरे और बेतरतीब जल-प्रबंधन से बारिश का अधिकांश पानी बरबाद चला जाता है। सच्चाई तो ये है कि पिछले तीन साल से राज्यों में बरसाती पानी के संरक्षण का कोई डाटा भी नहीं है। हालत इतनी खराब है कि भारत के महानगरों सहित कई बड़े छोटे शहर पानी के संकट से जूझ रहे हैं।
बारिश के पानी को लेकर ठोस प्रबंधन का अभाव संकट की गंभीरता दिखाता है। घरेलू उपयोग के पानी की लीकेज या अत्यधिक इस्तेमाल के रूप में बर्बादी एक अलग बड़ा मसला है। राज्यसभा में एक लिखित जवाब में सरकार ने दावा किया है कि जल प्रबंधन के लिए देश में कई प्रणालियों का उपयोग हो रहा है, इसके बावजूद बड़ी मात्रा में पानी बहकर समंदर में चला जाता है।
जलवायु परिवर्तन का असर
हर साल भारत के भौगोलिक क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से के सूखाग्रस्त होने की आशंका बनी रहती है जबकि 12 प्रतिशत क्षेत्र में बाढ़ की आशंका रहती है। तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु परिवर्तन से बरसात, बर्फ के गलने और पानी की उपलब्धता पर असर पड़ने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पैनल के मुताबिक आने वाले वर्षों में अत्यधिक बरसात या बहुत ही कम बरसात जैसी घटनाएँ और बढ़ने का अनुमान है। कुछ इलाके और जलमग्न होंगे तो कुछ इलाके सूखे रह जाएंगे। बेतरतीब मॉनसून से वैसे ही फसल को नुकसान पहुंच रहा है।
(सांकेतिक फोटो- सोशल मीडिया)
पहाड़ों पर सूखा
पहाड़ी इलाकों, खासकर पहाड़ के शहरों जैसे कि शिमला, मसूरी, दार्जीलिंग, नैनीताल, रानीखेत और काठमांडु जैसे स्थलों पर पानी का गहरा संकट है। अब ये हालात स्थाई रूप ले चुके हैं। ‘वॉटर पॉलिसी’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक बांग्लादेश, नेपाल, भारत और पाकिस्तान के हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले आठ शहरों की जलापूर्ति में 20 से 70 प्रतिशत की गिरावट आई है।
यह भी पढ़ें: पृथ्वी के पास से गुजरी मुसीबत, टला बड़ा हादसा, जानें Asteroid 2001 FO32 के बारे में
विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि मौजूदा हिसाब से वर्ष 2050 तक मांग और आपूर्ति का अंतर बहुत अधिक बढ़कर दोगुना हो सकता है। पहले ही चेताया गया है कि वर्ष 2050 तक तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के चलते आधे से ज्यादा भारतीय या अनुमानित 80 करोड़ लोग शहरों में रह रहे होंगे। यानी शहरों पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा और संसाधनों की जबरदस्त मांग होगी।
पानी का बंटवारा
भारत के पास दुनिया के अक्षय जल संसाधन का सिर्फ करीब चार प्रतिशत हिस्सा आता है, जबकि दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी हमारे देश में रहती है। भारत में औसतन हर साल बरसात से चार हजार अरब घन मीटर पानी आता है जो देश में ताजा पानी का प्रमुख स्रोत भी है। लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में बारिश की दर अलग अलग है। भारत में करीब 20 रिवर बेसिन हैं। घरेलू, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए अधिकांश रिवर बेसिन सूख रहे हैं।
(सांकेतिक फोटो- सोशल मीडिया)
देश के विभिन्न हिस्सों में पानी की मांग भी एक जैसी नहीं है। कृषि कार्य में सबसे ज्यादा पानी (85 फीसदी) की खपत होती है। भारतीय जल संकट का एक पहलू राज्यों के अधिकारों और पानी के बंटवारे से भी जुड़ा है। कावेरी नदी का सदियों पुराना विवाद जारी है। आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच पानी के अधिकार को लेकर कोई सर्वसम्मत फॉर्मूला नहीं निकल पाया है।
यह भी पढ़ें: ट्रंप की वापसीः सोशल मीडिया पर फिर दिखेंगे एक बार, हो रही ये तैयारी
पंजाब और हरियाणा के बीच रावी ब्यास नदी को लेकर टकराव होता रहा है। हरियाणा और दिल्ली भी पानी को लेकर टकराते रहे हैं। नदियों को जोड़ने की परियोजना से एक नदी बेसिन से दूसरे में पानी भेजने की बड़े पैमाने पर व्यवस्था रखी गई है लेकिन इसका जोर सप्लाई बहाल रखने पर है। पानी को संरक्षित और उसके उपभोग में कटौती पर कोई योजना नहीं है। नदियों से अवैध खनन ने भी जलसंकट को तीव्र किया है।
केंद्र का जल शक्ति मिशन
पानी यूं तो राज्य का विषय है लेकिन केंद्र सरकार की ओर से भी कई योजनाओं और कार्यक्रमों के जरिए तकनीकी और वित्तीय सहयोग दिया जाता है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने 2019 में राष्ट्रीय जल अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत जलसंकट से ग्रस्त देश के 256 जिलों के 2,836 ब्लॉकों में से 1,592 में ये अभियान चलाया गया था। इसी कड़ी में पिछले साल ‘कैच द रेन’ अभियान भी शुरू किया गया।
भूजल के आर्टिफिशियल रीचार्ज के मास्टर प्लान के तहत एक व्यापक कार्ययोजना पर विचार किया जा रहा है जिसके तहत 185 अरब घन मीटर पानी को उपयोगी बनाया जाएगा। इस मिशन में मॉनसून शुरू होने से पहले रेन वॉटर हारवेस्टिंग स्ट्रकचर (आरडब्लूएचएस) बनाए जाएंगें जो जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के अनुकूल होंगे और लोगों की सक्रिय भागीदारी से बरसाती पानी से भरे जाएंगे।
यह भी पढ़ें: युद्ध होगा भयानक: तैयार महाशक्तिशाली ताइवान मिसाइल, अब क्या करेगा चीन
दोस्तों देश और दुनिया की खबरों को तेजी से जानने के लिए बने रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।