आज इस मंत्र से करें देवी दुर्गा की उपासना, अंधकार को दूर करता है मां का ये स्वरूप

मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल फूल बहुत पसंद है।देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है।

Update:2020-10-20 07:33 IST
संपूर्ण ब्रह्मांड में इनका तेज परिव्याप्त है इनकी पूजा से भक्तजन तेज एवं शक्तिशाली महसूस करते है और अपने को महिमामंडित बनाने में भी सफल होते है।

जयपुर: शारदीय नवरात्रि में चौथे दिन देवी के रूप कूष्मांडा की पूजा की जाती है। ब्रह्मांड को जन्म देने के कारण इस देवी को कूष्मांडा कहा जाता है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदि स्वरूपा या आदि शक्ति भी कहा गया है।

इस देवी की आठ भुजाएं बताई गई है इसलिए इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। इनके आठों हाथों में भिन्न-भिन्न तरह के वस्तुएं बताई गई है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष-बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है इनके आठवें हाथ में सभी तरह की श्रद्धियां सिद्धियांदेने वाली जप की माला है। मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल फूल बहुत पसंद है।

 

कुम्हड़े को कुष्मांड

देवी की 8 भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा भी कहलाती हैं। इनके 7 हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं। 8वें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं। इसलिए देवी को कूष्मांडा कहा जाता है।

 

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इस मंत्र का उच्चारण

 

देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। कुष्मांडा देवी की उपासना इस मंत्र के उच्चारण से की जाती है..

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

 

सेवा-भक्ति से प्रसन्न होती है मां कूष्मांडा

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चतुर्थी के दिन मालपुएं का प्रसाद देवी को अर्पित किया जाए और फिर उसे योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाए तो इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाती है। मान्यता है कि माता की उपासना से मनुष्य को व्याधियों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य अपने जीवन के परेशानियों से दूर होकर सुख और समृद्धि की तरफ बढ़ता है। देवी सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही देवी कृपा का अनुभव होने लगता है।

 

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