Bhagavad Geeta: नाशवान् पदार्थों से प्रीति निरर्थक

Bhagavad Geeta: लोग प्राय: विचार ही नहीं करते कि इन नाशवान पदार्थों का आश्रय कितने दिन टिकेगा ? ये कब तक साथ देंगे ?

Newstrack :  Network
Update:2024-07-02 15:03 IST

Bhagavad Geeta

Bhagavad Geeta: यदि ‘है’की प्राप्ति कठिन है तो क्या ‘नहीं ‘ की प्राप्ति सरल है ? कर्तव्य पालन कठिन है तो क्या अकर्तव्य पालन सरल है ? भगवान का भजन ध्यान कठिन है तो क्या झूठ , कपट, छल , चोरी सरल है ? ‘सत्’ही को प्राप्त नहीं कर सकते तो क्या असत् को प्राप्त करेंगे ? यह कितनी विचित्र बात है कि सीधे एवं सुगम कार्य को तो कठिन मान रहे हैं, किंतु कठिन एवं अस्वाभाविक कार्य को सहज बतला रहे हैं ?लोग प्राय: विचार ही नहीं करते कि इन नाशवान पदार्थों का आश्रय कितने दिन टिकेगा ? ये कब तक साथ देंगे ? धन बैंकों में रह जाएगा, पत्नी , पुत्र , मकान पीछे छूट जाएंगे एवं हर शरीर चिता में जलकर राख हो जाएगा ।

किंतु इसका संग्रह करने में जो झूठ कपट पाप किए हैं , वह अंतःकरण में जमा होकर साथ चलेंगे । फिर नरको में भीषण यम यातना प्राप्त होगी। अतएव समय रहते ही सावधान हो जाएं । अंतकाल आने पर रोने - चिल्लाने अथवा पैर पटकने से कोई बचा नहीं पाएगा । सब के सब चले जाएंगे, सब साथ छोड़ देंगें।

“देखते ही छिप जायेंगे , ज्यो तारा परभात ।"जब तक यह दो नेत्र टिमटिमा रहे हैं , सांस रूपी धौकनी चल रही है , तभी तक लोग आशा लगाए बैठे हैं।

सांस थकां सब आस करै, जब सांस गया सब काडो रे काडो।

धरती को धन बताय दियो, अब नाक समेत बांधो रे गाढो ॥

अड़ोस- पड़ोस के आय खड़े, कोई न कहै अब राखों रे ठाडो।

मसान की मंजिल पहुंचा दियो, अब रह गई जान , चलो गयो लाडो॥

( कल्याण पत्रिका के 096 अंक से साभार ।)

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