क्या है सूर्य ग्रहणः जानिये आप पर कितना पड़ता है असर, जुड़े हैं गहरे राज
वैसे तो ग्रहण के शुभ अशुभ प्रभाव ज्योतिष में राशियों के आधार पर बताए जाते हैं लेकिन एक बात तय है कि ग्रहण काल में जप तप अनुष्ठान और हवन आदि का शुभ प्रभाव होता है। जैसे ग्रहण का काल मंत्र दीक्षा का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
पं. रामकृष्ण वाजपेयी
21 जून को पड़ने वाले सूर्य ग्रहण का प्रभाव ज्योतिषियों की नजर में बहुत शुभ नहीं है। बावजूद इसके तमाम ज्योतिषियों का मत है कि कोरोना का काल है सूर्य ग्रहण। आइए जानते हैं सूर्य ग्रहण के बारे में सब कुछ।
ग्रहण का नाम सुनते ही लोगों के दिलों की धड़कन बढ़ जाती है। आम बोलचाल में लोग यदा कदा इसका इस्तेमाल भी करते हैं। अमुक जिंदगी में ग्रहण बनकर आ गया। या अमुक तो जिंदगी में ग्रहण बन गया है। या ग्रहण है। वस्तुतः ये शब्द बहुत शालीन है इसीलिए पाणिग्रहण संस्कार भी होता है।
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हम आपस में एक दूसरे से चीजें ग्रहण भी करते रहते हैं। फिर इस ग्रहण और उस ग्रहण में क्या फर्क है। मेरी दृष्टि में मोटे तौर पर कोई फर्क नहीं हैं। ग्रहण अंग्रेजी में एसम्पशन या एक्सेपटेंस को कहते हैं। इसी तरह गृह घर को कहते हैं गृहिणी घर की स्वामिनी, मालकिन पत्नी या भार्या को कहते हैं।
हमारे पहले वैज्ञानिक अत्रि ऋषि
जिस तरह हमारे जीवन में ग्रहण का अर्थ है उसी तरह से खगोल विज्ञान में ग्रहण का अर्थ है। खगोल विज्ञान में जब कोई उल्कापिंड या ग्रह किसी प्रकाश स्रोत के बीच में आ जाते हैं जिससे कुछ देर के लिए वह प्रकाश अवरुद्ध हो जाए तो उसे ग्रहण कहते हैं।
ग्रहण विज्ञान को ऋग्वेद के अनुसार सबसे पहले अत्रि ऋषि ने समझा था। ऋषि जो हमारे वैज्ञानिक थे उन्होंने काफी पहले ही ग्रह नक्षत्रों की दुनिया में ग्रहण के बारे में पहले ही जानकारी हासिल कर ली थी। यानी उस समय से हमारे यहां ग्रहण पर अध्ययन मनन होता आया है।
ऊर्जा का एकमात्र स्रोत सूर्य
एक बात हम सब जानते हैं कि पृथ्वी पर प्रकाश का एकमात्र स्रोत सूर्य है। सूर्य के जरिये चंद्रमा भी प्रकाशवान हो जाता है हालांकि उसकी भी एक निश्चित गति है। इसीलिए 15 – 15 दिन के दो पक्ष हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। खैर पृथ्वी पर हम दो तरह के ग्रहण झेलते हैं एक चंद्र ग्रहण और दूसरा सूर्य ग्रहण।
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चंद्र ग्रहण में सूरज और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है। यानी चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश पड़ना बंद हो जाता है और उस पर पृथ्वी की छाया पड़ने लगती है। ऐसी स्थिति पूर्णिमा के दिन होती है। जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे अधिक करीब होता है।
सूर्य ग्रहण
सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूरज चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं। पृथ्वी और सूर्य के बीच में होने से चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है। ऐसा अमावस्या के दिन होता है।
पूर्ण या आंशिक ग्रहण
अब जब ये ग्रहण होता है तो जब सूरज का प्रकाश या रोशनी थोड़ा बहुत अवरुद्ध हो तो आंशिक ग्रहण होता है और जब ये प्रकाश पूरी तरह से पृथ्वी तक न पहुंचे तो पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है।
कब कब और कितने सूर्य ग्रहण
अगर खगोलशास्त्रियों की गणनाओं पर गौर करें तो 18 वर्ष 18 दिन की अवधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चंद्र ग्रहण होते हैं। एक वर्ष में पांच सूर्य ग्रहण और दो चंद्रग्रहण भी हो सकते हैं। यानी ये एक सच्चाई है कि सूर्य ग्रहण हमेशा चंद्र ग्रहण से ज्यादा होंगे।
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लेकिन ये जान लेना भी जरूरी है कि किसी साल यदि दो ही ग्रहण पड़ रहे हैं तो ये दोनो सूर्य ग्रहण होना तय है। वैसे एक साल में पांच सूर्य ग्रहण और दो चंद्रग्रहण हो सकते हैं। लेकिन एक साल में सात ग्रहण कम ही देखने को मिलते हैं।
ये भी जानें
चन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है किन्तु सूर्यग्रहण अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लम्बे और 250 किलोमीटर चौडे क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। सम्पूर्ण सूर्यग्रहण की वास्तविक अवधि अधिक से अधिक 11 मिनट ही हो सकती है उससे अधिक नहीं।
इसलिए पड़ता है सूर्य ग्रहण का प्रभाव
ये बात वैज्ञानिक भी मानते हैं कि संसार के समस्त पदार्थों सूर्य की ऊष्मा और रश्मियों की देन हैं। इसीलिए उनकी कोशिश है कि यदि सही प्रकार से सूर्य के प्रभावों को समझ लिया जाए तो आश्चर्यजनक नतीजे देखने को मिल सकते हैं।
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सूर्य की असंख्य रश्मियों में प्रत्येक रश्मि विशेष अणु का प्रतिनिधित्व करती है और ये बात हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक पदार्थ किसी विशेष परमाणु से ही निर्मित होता है। अब यदि सूर्य की रश्मियों एक विशेष बिन्दु पर ले आया जाए तो पदार्थ परिवर्तन की क्रिया भी संभव हो सकती है। इसके चमत्कारिक नतीजे हो सकते हैं।
इसी तरह से ग्रहण के दौरान सूर्य की कुछ रश्मियां अवरुद्ध होती हैं जिससे रश्मियों का संतुलन प्रभावित होता है ऐसे में जो रश्मियां आती हैं उनकी क्रिया की प्रतिक्रिया में सकारात्मक और नकारात्मक दोनो ही तरह के नतीजे आते हैं।
ऋषियों का क्या रहा मत
इसी कारण हमारे ऋषियों ने ग्रहण के दौरान भोजन करने से मना किया था क्योंकि उनका मानना था ग्रहण के दौरान तमाम वायरस और बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। इसीलिए ग्रहण के पश्चात, घरों को धुलकर, खुद नहाकर घरों में इस्तेमाल किये जाने वाले बर्तनों को मांजकर पुनः प्रयोग करने की परंपरा रही है।
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इस बार कंकण सूर्य ग्रहण आषाढ़ मास की अमावस्या 21 जून को पड़ रहा है। सूर्य ग्रहण सुबह में 10 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 1 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगा। जबकि ग्रहण का परमग्रास दोपहर में 12 बजकर 02 मिनट पर है।
इस तरह सूर्य ग्रहण की अवधि 3 घंटे 19 मिनट तक है। यह ग्रहण भारत, नेपाल, सऊदी अरब, यूएई, पाकिस्तान, चीन और ताइवान में दिखाई देगा। भारत में 20 तारीख की रात 9 बजकर 56 मिनट से ग्रहण का सूतक मान्य होगा। दिन में 2 बजकर 28 मिनट पर पूरे देश से ग्रहण का सूतक समाप्त हो जाएगा।
ग्रहण के शुभ प्रभाव
वैसे तो ग्रहण के शुभ अशुभ प्रभाव ज्योतिष में राशियों के आधार पर बताए जाते हैं लेकिन एक बात तय है कि ग्रहण काल में जप तप अनुष्ठान और हवन आदि का शुभ प्रभाव होता है। जैसे ग्रहण का काल मंत्र दीक्षा का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
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ग्रहण के समय मन का कारक चंद्रमा, आत्मा का कारक सूर्य, पंचतत्व से बने शरीर का कारक पृथ्वी तीनों एक ही सीध पर एक ही लय में होते हैं। अतएव जो ब्रह्माण्ड में है सो पिण्ड में है सिद्धांत के अनुसार ग्रहण के समय ध्यान में लगाने से इष्ट मंत्र जप करने से सफलता व सिद्धि शीघ्र मिलती है। इस से सुख शांत व समृद्धि आती है।