बिहार चुनाव 2020: नोटबंदी से यूपी में पहुंची भाजपा, अब बिहार में कृषि बिल की आस
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इस बार किसानों का मुद्दा सामने है। लेकिन दृश्य ठीक वैसा ही है जो यूपी विधानसभा चुनाव से पहले नोटबंदी के मुद्दे को लेकर था।
मनीष श्रीवास्तव
नई दिल्ली: बीते रविवार को कृषि सुधार बिल को लेकर हंगामें के बाद से ही विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। विपक्ष का मानना है कि बिहार चुनाव से पहले आए इस बिल ने उनको मोदी सरकार को घेरने का मुद्दा दे दिया है। विपक्षी दलों के साथ विभिन्न किसान संगठनों के नेता भी सरकार के इन बिलों का विरोध कर रहे हैं। जबकि केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए इसको किसानों के लिए लाभकारी बता रहा है।
अब सवाल यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव से ऐन पहले आखिर मोदी सरकार ये बिल लायी क्यों, जबकि उसे भी मालूम था कि विपक्षी दल इस बिल के विरोध के जरिये उनके लिए परेशानियां खड़ी कर सकती है। राजनीति के जानकार इसे यूपी विधानसभा चुनाव से पहले लिए गए नोटबंदी के फैसले से जोड़ कर देख रहे हैं। उनका मानना है कि बिहार में संख्या में किसान मतदाता है और उसमे भी छोटे किसानों की संख्या ज्यादा है। ऐसे में भाजपा कृषि सुधार बिल को इन छोटे किसानों के लिए लाभदायक साबित करने में जुटेगी।
एक बार फिर PM मोदी के दम पर भाजपा
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फिलहाल बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इस बार किसानों का मुद्दा सामने है। लेकिन दृश्य ठीक वैसा ही है जो यूपी विधानसभा चुनाव से पहले नोटबंदी के मुद्दे को लेकर था। नोटबंदी की तरह ही सभी विपक्षी दल लामबंद हो कर सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे है और सामने है भाजपा की अगुवाई वाला राजग। विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विपक्षी दलों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे है। दरअसल, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अब भाजपा खुद ही नेरेटिव गढ़ती है और विपक्ष को उसी नेरेटिव पर लड़ने के लिए मजबूर कर देती है।
भाजपा का मानना है कि बिहार समेत पूरे देश में मौजूदा समय में नरेंद्र मोदी के कद का कोई नेता नहीं है और देश की जनता पर उनकी पकड़ अभी भी सबसे ज्यादा मजबूत है। भाजपा जानती है कि देश की अधिककांश जनता आज भी उसी नेरेटिव को सही मानती है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सेट किया जाता है। कोरोना काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई अपील पर पूरे देश में जलाये गए दियों और पीटी गई थाली को वह इसकी बानगी मानती है। भाजपा का मानना है कि विपक्षी दल चाहे जितना भी हो हल्ला मचा लें।
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लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब इस मुद्दे पर किसानों और लोगों को समझायेंगे तो लोग उसे ठीक उसी तरह समझेंगे जैसे कि वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान नोटबंदी के विपक्षी हंगामें को नजरअंदाज कर समझा था। यूपी के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत आसानी से यह समझानें में कामयाब हो गए थे कि नोटबंदी का फैसला देश और देश की जनता के लिए क्यों और कितना जरूरी था। इसी का नतीजा था कि नोटबंदी की तमाम तकलीफों को झेलनें के बावजूद यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता में पहुंची थी।
बिहार में नहीं कोई मजबूत विपक्षी नेता
इसके साथ ही बिहार में विपक्ष में कोई भी ऐसा मजबूत नेता नहीं है जो भाजपा के प्रचार तंत्र का सामना कर सकें। लालू यादव और रघुवंश प्रसाद जैसे जमीनी नेताओं के बगैर किसानों के इस मुद्दे को अपने पक्ष में धार देने और इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ने का जज्बा और कौशल यहां के किसी भी नेता में नहीं दिखाई देता है। बिहार भाजपा भी विपक्ष की इस कमजोरी को बहुत अच्छी तरह से जानती है। इसीलिए उसने अपने अधिकतर पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को मैदान में उतार कर इस बिल के लाभ बताने शुरू कर दिए हैं।
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कुल मिलाकर यूपी में तो प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भाजपा राज्य की जनता को यह समझाने में सफल हो गई थी कि नोटबंदी का फैसला देश और देश की जनता के लिए क्यों जरूरी था। लेकिन अब देखना यह है कि बिहार विधानसभा चुनाव में क्या एक बार फिर नरेंद्र मोदी की भाजपा, विपक्षी दलों के विरोध को दरकिनार कर बिहार के किसानों का भरोसा जीत पायेगी और फिर से नीतीश कुमार की ताजपोशी करवा पायेगी।