Bihar News: नीतीश के खिलाफ भाजपा का मिशन बिहार, इन तीन नेताओं के जरिए घेरेबंदी की तैयारी

Nitish Kumar: भाजपा ने नितीश कुमार के खिलाफ योजना तैयार कर ली है। जैसा कहा जाता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। भाजपा ने भी कुछ ऐसा ही किया है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2023-02-03 14:34 IST

Bihar Mission (Image: Social Media)

Bihar News: बिहार में दो बार झटका दे चुके सुशासन बाबू नीतीश कुमार को घेरने के लिए भाजपा ने एक बड़ी फुलप्रूफ़ योजना तैयार की है। इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसी योजना के शिकार हो गए हैं। इस योजना के तहत कभी नीतीश कुमार के आजू-बाज़ू रहने वाले ही उन पर हमलावर हैं। बिहार में कभी उनके ख़ास सिपहसालार रहे नेता, इन दिनों दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, के फार्मूले पर काम करते दिख भी रहे हैं। इनमें उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह के नाम शामिल हैं। हालांकि इसमें आने वाले समय में चिराग पासवान भी नज़र आएं तो कोई हैरत नहीं होनी चाहिए।आने वाले समय में जब केंद्र में मंत्रिमंडल का विस्तार होगा तो इनमें से कई नेताओं को पुरस्कार मिलने की उम्मीद से इनकार नहीं किया जा सकता है।

नीतीश को घेरने की भाजपा की तैयारी

नीतीश से बार-बार धोखा खाने वाली भाजपा के नेतृत्व को यह समझ में आ गया है कि एक बार नीतीश कुमार की मुकम्मल व्यवस्था करनी होगी। यह सबसे उपयुक्त समय इसलिए है क्योंकि लोकसभा चुनाव में एक बड़ा चेहरा बनने की नीतीश कुमार की ख्वाहिशें लगातार कुलाचें मार रही हैं। दूसरे नीतीश कुमार के यह कहने के बाद कि 2025 में जदयू व राजद गठबंधन का चेहरा तेजस्वी होंगे, नीतीश की पार्टी के नेताओं को दिक़्क़त का इसलिए एहसास होने लगा है क्योंकि उनकी पूरी राजनीति लालू परिवार के खिलाफ लड़ाई की देन है।

बिहार में कुर्मी-कोइरी का जो गठजोड़ नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को खड़ा करके अपने पक्ष में किया था, वह टूटता हुआ नजर आ रहा है। उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से पार्टी छोड़कर जाने की बात कहे जाने पर कुशवाहा ने कहा कि अपना हिस्सा छोड़कर ऐसे कैसे चले जाएं। बिहार में क़रीब छह फ़ीसदी कोइरी हैं। चार फ़ीसदी पासवान हैं जिनके चेहरा इन दिनों चिराग पासवान हैं। भाजपा ने चिराग,उपेंद्र और आरसीपी सिंह को इसलिए प्रमोट करने का मन बनाया है ताकि नीतीश की कलई खोलने के लिए भाजपा नेताओं को ज्यादा मशक्कत न करना पड़े।

चिराग पासवान

एनडीए की सहयोगी रही लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने 2020 विधानसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी। चिराग पासवान ने चुनाव के पहले से ही नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। नीतीश कुमार का नेतृत्व उन्हें कतई मंजूर नहीं था। चिराग पासवान के नीतीश के खिलाफ ताल ठोकने की मुख्य वजह नीतीश का 15 साल पुराना वो दांव रहा, जिसने बिहार में उनकी पार्टी (LJP) की राजनीति को हाशिए पर रख दिया था। आपको बता दें, बिहार में 16 प्रतिशत दलित मतदाता हैं। चिराग के पिता रामविलास पासवान इन्हीं दलितों के सहारे राजनीति खड़ी करना चाहते थे मगर नीतीश कुमार ने करीब 18 साल पहले यानी 2005 में सत्ता में आते ही 'महादलित' का दांव चला। नीतीश के इस दांव ने लोक जनशक्ति पार्टी की राजनीति को सीमित कर दिया। अभी तक पार्टी उससे नहीं निकल पाई है।

नीतीश ने 2005 में सत्ता में आते ही सबसे पहले 'महादलित योजना' का सूत्रपात किया था। दरअसल, नीतीश ने पासवान (दुसाध) जाति को छोड़कर दलित मानी जाने वाली अन्य 21 उपजातियों के लिए 'महादलित' कैटगरी बनाकर उन्हें कई सहूलियतें दीं। महादलित जातियों के कल्याण के लिए एक आयोग का भी गठन किया। साल 2018 में दुसाध समुदाय को भी नीतीश ने महादलित में शामिल किया। बिहार में अब 22 अलग-अलग जातियों के 'महादलित' हैं। महादलितों का कुल मतदाता 16 प्रतिशत है। इनमें 4 प्रतिशत के करीब दुसाध यानी पासवान समुदाय से है। चिराग पासवान और उनके पिता इसी समाज का नेतृत्व करते रहे हैं।

चुनावों में लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन

लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना 2003 में हुई थी। वह पहली बार 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ी थी। तब 178 में से 29 प्रत्याशी जीते थे। उस चुनाव में एलजेपी को 12.62 फीसदी प्रतिशत वोट मिला। यह एलजेपी का बेहतरीन प्रदर्शन रहा था। उसी वर्ष नवंबर में विधानसभा चुनाव में लोजपा को सिर्फ 10 सीटों पर जीत मिली थी। तब वोट प्रतिशत भी 11.10 प्रतिशत पर आ गया था। लोजपा 2010 का विधानसभा चुनाव राजद के साथ मिलकर लड़ी थी। इस चुनाव में वोट प्रतिशत 6.74 रहा। 2015 विधानसभा चुनाव पार्टी ने बीजेपी की साझेदारी में लड़ी। तब वोट प्रतिशत 4. 83 रहा। इस लिहाज से 2020 के चुनाव में अपने दम पर चिराग ने 5.66 फीसदी वोट हासिल किये थे। इसे चिराग की उपलब्धि माना गया।

बिहार के जमुई से सांसद और लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान इन दिनों पार्टी की जड़ें मजबूत करने में जुटे हुए हैं। दरअसल, बिहार में हुए राजनीतिक उलटफेर के बाद सभी पार्टियां हरकत में है। बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद चिराग, नीतीश कुमार पर हमला बोलने से ज्यादा विरासत में मिली अपने पिता की पार्टी को मजबूत करने में जुटे हैं। बीजेपी के साथ उनकी नजदीकियां भी बढ़ रही हैं।

उपेंद्र कुशवाहा

उपेंद्र कुशवाहा बिहार के कुशवाहा (कोइरी) समाज से आते हैं। बिहार में कुशवाहा आबादी 6-7 प्रतिशत है। आपको बता दें ये नीतीश कुमार के कुर्मी वोट बैंक से करीब दोगुनी है। बिहार में पिछड़े समुदाय की राजनीति में यादवों के बाद कुशवाहा या कोइरी दूसरी सबसे बड़ी ताकत मानी जाती रही है। यही वजह है कि नीतीश कुमार ने जब अति पिछड़े समुदाय को अपने पक्ष में जोड़ा था, तब 'कुशवाहा फैक्टर' ने ही उन्हें लालू के मुक़ाबले लाने का काम किया था।

चुनावी गणित के लिहाज से देखें तो बिहार की 243 विधानसभा सीटों में करीब 63 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कुशवाहा समुदाय के मतों की संख्या 30 हज़ार से अधिक है। किसी भी विधानसभा में 30 हजार वोटर बहुत अहम माने जाते हैं। इसके अलावा बाक़ी विधानसभा सीटों पर भी कुशवाहा मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। अगर उपेंद्र कुशवाहा केवल आधे कुशवाहा वोटर को भी अपने साथ जोड़ पाते हैं तो भी ये करीब तीन प्रतिशत के आसपास बैठता है। उपेंद्र कुशवाहा का पलड़ा यही मज़बूत बना सकता है।

आरसीपी सिंह

आरसीपी सिंह नौकरशाही से सियासत में आए। रामचंद्र प्रसाद सिंह (RCP Singh) नीतीश कुमार की उंगली पकड़कर राजनीति में आगे बढ़े। धीरे-धीरे जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की कमान संभाली। केंद्र में मंत्री भी बने। अब उसी आरसीपी सिंह पर गंभीर आरोप लगे। उन पर बीजेपी से मिलकर जेडीयू तोड़ने की साजिश के चलते नीतीश कुमार ने पार्टी से बाहर कर दिया।

आपको बता दें, आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार एक ही जिले नालंदा से आते हैं। दोनों की जाति भी एक ही है। दोनों कुर्मी समुदाय से आते हैं। ऐसे में दोनों ही नेताओं की दोस्ती गहरी होती चली गई। आरसीपी देखते ही देखते नीतीश के आंख, नाक और कान तक बन गए। एक वक़्त ऐसा आया जब आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के बाद जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखने वाले नेता बन गए। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। लेकिन नीतीश कुमार की तरह आरसीपी सिंह न तो लोकप्रिय हो पाए और न कुर्मी समाज के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो पाए।

आरसीपी सिंह को सियासत में सीएम नीतीश ही लेकर आए। वर्ष 2010 में आरसीपी ने आईएएस पद से इस्तीफा दिया। नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। साल 2016 में वे पार्टी की ओर से दोबारा राज्यसभा भेजे गए। साथ ही, शरद यादव की जगह उच्च सदन में नेता मनोनीत हुए। नीतीश ने जब जेडीयू की कमान छोड़ी तो आरसीपी ने उसे थामा। इस तरह नीतीश के वरदहस्त से आरसीपी का सियासी भविष्य संवरता गया। हालांकि आरसीपी सिंह के साथ दिक्कत हमेशा रही कि पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं में वे बहुत लोकप्रिय नहीं रहे। इसलिए शायद वे नीतीश को चुनौती नहीं दे पाए। यह बात जरूर रही कि जब तक आरसीपी सिंह बिहार में रहे, जेडीयू में उनके समर्थकों का एक जत्था भी तैयार हो गया।

मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद उन्होंने खुद को स्थापित करने की कोशिश की। इस बात की भनक लगते ही नीतीश कुमार ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली। आरसीपी को पार्टी से बाहर नहीं निकाला। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर नोटिस जारी किया। इस तरह आरसीपी सिंह की छवि को धूमिल और विधायकों से उनके संपर्क को ख़त्म करने की रणनीति पर काम किया।

जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष रहते आरसीपी सिंह ने 2019 लोकसभा चुनाव से पहले अति पिछड़ों को पार्टी से जोड़ने की कवायद के तहत हर जिले में सम्मेलन करवाया मगर, ये पूरी तरह असफल रहा। हाजीपुर और मधुबनी की जनसभा में तो कुर्सियां खाली रहीं। इससे साबित हो गया कि आरसीपी जननेता नहीं हैं। उनका जनाधार नहीं है। इसके बाद उनके अध्यक्ष रहते ही 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू का परिणाम बेहद निराशाजनक रहा।

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