बिहार ने सुपर पावर अमेरिका को इस मामले में छोड़ा पीछे, कर दिखाया ये कमाल
बिहार अमेरिका से आगे निकला है। बिहार के सात ज़िलों ने मक्का के उत्पादन में अमेरिका के उन इलाक़े को पीछे छोड़ दिया है...
पटना: सभी बिहारियों और भारतवासियों के लिए बेहद गर्व की बात है कि उसने अमेरिका को छोड़ दिया, लेकिन ये सच है। तो आइए आपको बताते हैं ऐसा क्या हुआ जिसमें बिहार अमेरिका से आगे निकला है। बिहार के सात ज़िलों ने मक्का के उत्पादन में अमेरिका के उन इलाक़े को पीछे छोड़ दिया है जो अभी तक विश्व में सबसे अधिक मक्का का उत्पादन करते थे, अभी तक अमेरिका के उन एरिया में सबसे ज्यादा 48 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन होता था लेकिन बिहार के सात ज़िले में उत्पादन 50 क्विंटल प्रति एकड़ हो गई है जो एक नया विश्व रिकार्ड है।
बिहार के जिन इलाकों में हुआ उत्पादन पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपूरा,सहरसा, ख़गड़िया और समस्तीपुर है। 2016 में ही बिहार को मक्के के सर्वश्रेष्ठ उत्पादक राज्य के रूप में कृषि कर्मण पुरस्कार मिल चुका है।
बिहार जैसे राज्य के लिए ये ख़बर बेहद उत्साह बढ़ाने वाली है। बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने बातचीत में कहा है कि ये ख़बर बिहार के किसानों की तक़दीर बदलने वाली है। बिहार सरकार ने बड़ी तैयारी कर रखी है मक्के के उत्पादन से लेकर बाज़ार तक के लिए। उन्होंने कहा कि बिहार में 55 लाख मैट्रिक टन उत्पादन मक्के का होता है। तमिलनाडु के बाद बिहार देश में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है मक्के का है, लेकिन ये बिहार का दुर्भाग्य है की मक्का का बड़ा बाज़ार होने के बावजूद भी बिहार के लगभग 92 प्रतिशत मक्का बिहार के बाहर चला जाता है और ये इसकी कुछ खास वजह है...
- बिहार में मक्के का प्रोसेसिंग प्लांट का नहीं होना।
- बिहार में मक्के का कोई इनवेस्टेर का नहीं होना।
- बिहार में बाज़ार का नहीं होना जिसकी वजह से किसान जो रेट बाज़ार में मिलता है उसी रेट में बेच देता है मक्का का रेट फ़िलहाल 2200 रुपया प्रति क्विंटल है।
लेकिन बिहार में मक्के के उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी होने के बाद बिहार के कृषि मंत्री कहते है कि, 'अब ऐसा नहीं होगा। बहुत जल्द बिहार के मक्का किसानों के लिए कई बड़े फ़ैसले लेने की तैयारी में बिहार सरकार है, बिहार सरकार की पूरी कोशिश है की केंद्र सरकार से आग्रह कर मक्के का भी एमएसपी रेट तय कराया जाए, ताकि किसानो को एमएसपी रेट पर मक्का बिक सके और बाज़ार का भाव भी। बढ़ सके ताकि किसान अच्छे रेट पर अपने मक्के को बेच सके ।'