Bihar Politics: आरिफ मोहम्मद खान की बिहार में तैनाती के क्या हैं कारण, क्यों माना जा रहा भाजपा का सियासी दांव

Bihar Politics: आरिफ मोहम्मद खान को मुस्लिम समाज का प्रगतिशील चेहरा माना जाता रहा है और इसके साथ ही वे राष्ट्रवाद की राजनीति का खुलकर समर्थन करते रहे हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-12-25 14:14 IST

आरिफ मोहम्मद खान बिहार के नए राज्यपाल  (फोटो: सोशल मीडिया )

Bihar Politics: मंगलवार को किए गए फेरबदल में आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का नया राज्यपाल बनाया गया है जबकि बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को उनकी जगह केरल भेजा गया है। बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले किया गया यह फेरबदल सियासी नजरिए से भी काफी अहम माना जा रहा है।

आरिफ मोहम्मद खान को मुस्लिम समाज का प्रगतिशील चेहरा माना जाता रहा है और इसके साथ ही वे राष्ट्रवाद की राजनीति का खुलकर समर्थन करते रहे हैं। इसी कारण केरल में सत्तारूढ़ वाम सरकार से उनकी हमेशा खींचतान बनी रही। यही कारण है कि आरिफ मोहम्मद खान को केरल से बिहार ले जाने पर राज्य की सियासत गरमा गई है।

बिहार को 26 साल बाद मिला मुस्लिम राज्यपाल

बिहार को आरिफ मोहम्मद खान के रूप में 26 साल बाद मुस्लिम राज्यपाल मिला है। उनसे पहले 1998 तक एआर किदवई बिहार के राज्यपाल थे। अपने बयानों को लेकर आरिफ मोहम्मद खान हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। खान कट्टरपंथी इस्लाम के घोर विरोधी रहे हैं और मुसलमानों के मुख्य धारा में लौटने का समर्थन करते रहे हैं। मुस्लिम चेहरा होने के बावजूद उनकी राष्ट्रवादी छवि रही है।

आरिफ मोहम्मद खान ने फरवरी में बिहार का दौरा किया था। दरभंगा के दौरे के समय आरिफ मोहम्मद खान को मखाने की माला, पाग और मधुबनी पेंटिंग से सम्मानित किया गया था। खान के दौरे से कुछ समय पूर्व ही 22 जनवरी को अयोध्या के भव्य मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम की वजह से पूरे देश में उत्सव और खुशी का माहौल है। अयोध्या की कल्पना मिथिला के बगैर कभी नहीं की जा सकती।

योगी के बयान और वक्फ बिल का समर्थन

हाल में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के दौरान जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बंटोगे तो कटोगे का नारा दिया था तो आरिफ़ मोहम्मद खान ने योगी के उस बयान का समर्थन किया था। उनका कहना था कि इस नारे में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि एकता का भाव देश में सभी के भीतर होना चाहिए। इससे पहले शाहबानो प्रकरण से लेकर अन्य प्रगतिशील मुद्दों पर भी वह अपनी राय खुलकर जताते रहे हैं।

मोदी सरकार की ओर से ले गए वक्फ संशोधन बिल पर भी उन्होंने अपनी राय खुल कर रखी थी। उनका कहना था कि इस कानून में संशोधन की जरूरत है। उनका कहना था कि वक्फ विभाग उनके पास कुछ समय के लिए रहा है और उन्हें इस बात की बखूबी जानकारी है कि इसमें बदलाव की जरूरत है। कोई एक भी वक्फ ऐसा नहीं है जिसमें मुकदमेबाजी न हो।

एनडीए को ताकत मिलने की संभावना

राष्ट्रवादी विचारों के कारण ही आरिफ मोहम्मद खान पर विपक्ष की ओर से निशाना साधा जाता रहा है और उन पर संघ की सोच वाले व्यक्ति होने का आरोप लगाता रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि आरिफ को बिहार का राज्यपाल बनाए जाने के पीछे न केवल भाजपा के विस्तार की रणनीति है बल्कि इससे एनडीए में शामिल अन्य दलों जदयू, लोजपा, हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को भी ताकत मिलेगी।

प्रगतिशील मुसलमानों को साधने का प्रयास

जानकारों का कहना है कि भाजपा ने जदयू की राह आसान बनाने के लिए आरिफ मोहम्मद खान की बिहार में तैनाती की है। जदयू के कई नेताओं को मुस्लिम वोट बैंक के कटने का दर्द सताता रहा है। ऐसे में प्रगतिशील मुसलमान के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि भाजपा और जदयू सही मायने में उनके हिमायती हैं।

जानकारों के मुताबिक भाजपा ने एक उदारवादी मुस्लिम चेहरे को आगे करके प्रगतिशील मुसलमानों को साधने का प्रयास किया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि मोदी सरकार की ओर से उठाया गया यह कदम कितना असरकारक साबित होता है।

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