Bihar politics: सियासी पिच पर पहले भी हुई है चाचा-भतीजे की जंग, अखिलेश से लेकर दुष्यंत तक ने किया संघर्ष

पहले भी ऐसे कई मौके आए जब चाचा और भतीजा ने एक-दूसरे को पटखनी देने की कोशिश की है। देश की सियासत में चाचा और भतीजे की जंग का दिलचस्प इतिहास रहा है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2021-06-16 13:00 IST

Bihar politics: बिहार की सियासत में इन दिनों चाचा और भतीजे के बीच जबर्दस्त जंग शुरू हो गई है। लोक जनशक्ति पार्टी के पांच सांसदों ने पार्टी के मुखिया चिराग पासवान के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है और चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नया नेता चुन लिया है। दूसरी ओर चिराग ने इन सभी पार्टी सांसदों को पार्टी से बाहर करके अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है।

वैसे देश की सियासत में यह पहला मौका नहीं है जब चाचा और भतीजा आमने-सामने आए हैं। पहले भी ऐसे कई मौके आए जब चाचा और भतीजा ने एक-दूसरे को पटखनी देने की कोशिश की है। देश की सियासत में चाचा और भतीजे की जंग का दिलचस्प इतिहास रहा है।

पशुपति पारस-चिराग पासवान

लोक जनशक्ति पार्टी में इन दिनों चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच जबर्दस्त खींचतान का दौर चल रहा है। पशुपति पारस ने पार्टी के पांच सांसदों को तोड़कर चिराग पासवान को करारा झटका दिया है। चाचा के इस कदम के बाद चिराग पासवान लोजपा में पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं।

हालांकि उन्होंने पांचों सांसदों को पार्टी से निकालने का ऐलान किया है। दूसरी ओर लोजपा के पारस गुट ने चिराग पासवान को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल कर दिया है। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने पारस को लोजपा संसदीय दल के नए नेता के रूप में मान्यता भी दे दी है। अब चाचा और भतीजे के बीच पार्टी पर प्रभुत्व स्थापित करने की तीखी जंग शुरू हो चुकी है।

अखिलेश यादव-शिवपाल यादव: फोटो- सोशल मीडिया  

अखिलेश यादव-शिवपाल यादव

उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी एक बड़ी ताकत रही है मगर इस पार्टी में चाचा और भतीजे के बीच शुरू हुई लड़ाई ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया। 2012 के विधानसभा चुनावों में सपा को बहुमत मिलने के बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई शिवपाल यादव की जगह अपने बेटे अखिलेश यादव को तरजीह दी। मुलायम के इस बड़े फैसले के बाद मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव की ताजपोशी हुई। बाद के दिनों में अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच भीतर ही भीतर टकराव शुरू हो गया।

चाचा और भतीजे की यह जंग 2017 में चरम पर पहुंच गई और सपा पर अपनी मजबूत पकड़ स्थापित कर चुके भतीजे अखिलेश यादव ने चाचा को पार्टी से बाहर कर दिया। इसके बाद शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से एक नया दल बना लिया। हालांकि दोनों एक-दूसरे पर सीधा हमला करने से बचते रहे हैं मगर भीतर ही भीतर चाचा और भतीजा एक-दूसरे को पटखनी देने की कोशिश भी करते रहे हैं।

शरद पवार-अजित पवार

चाचा और भतीजे के बीच सियासी जंग का नजारा महाराष्ट्र की सियासत में भी दिख चुका है। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद भतीजे अजित पवार ने भाजपा के साथ मिलकर बड़ा सियासी खेल खेला था और रातों-रात डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली थी। एनसीपी के मुखिया शरद पवार को भतीजे के सियासी खेल की भनक तक नहीं मिल सकी थी। अजित पवार के इस कदम के बाद शरद पवार का कहना था कि यह उनका व्यक्तिगत फैसला है और इसे पार्टी स्वीकार नहीं कर सकती।

एनसीपी पर शरद पवार की मजबूत पकड़ के कारण अजित पवार के सियासी मंसूबे पूरे नहीं हो सके क्योंकि वे पार्टी के विधायकों में तोड़फोड़ कराने में कामयाब नहीं हो सके। अजित पवार की इस विफलता के कारण मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले फडणवीस बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सके और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। बाद में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर महाविकास अघाड़ी सरकार का गठन किया और मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे की ताजपोशी हुई। दिलचस्प बात यह है कि बाद में अजित पवार की एनसीपी में वापसी हो गई और वे उद्धव ठाकरे सरकार में भी डिप्टी सीएम बन गए।


बाल ठाकरे-राज ठाकरे: फोटो- सोशल मीडिया  

बाल ठाकरे-राज ठाकरे 

बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना को बड़ी ताकत बनाने में कामयाबी हासिल की थी। शुरुआती दिनों में उनके बेटे उद्धव ठाकरे सियासत में दिलचस्पी नहीं लिया करते थे जबकि बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। ऐसे में माना जा रहा था कि बाल ठाकरे के बाद राज ठाकरे ही शिवसेना की कमान संभालेंगे मगर बाल ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपकर हर किसी को चौंका दिया।

बाल ठाकरे का यह फैसला भतीजे राज ठाकरे को काफी नागवार गुजरा और उन्होंने शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। हालांकि राज ठाकरे अपनी सियासी पार्टी के जरिए कोई बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर सके। महाराष्ट्र में रहने वाले उत्तर भारतीयों के खिलाफ उन्होंने लगातार अभियान छेड़ा और इसे लेकर उन्हें काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा।

अभय चौटाला-दुष्यंत चौटाला

हरियाणा की सियासत में चौटाला परिवार को भी काफी ताकतवर माना जाता रहा है। ओमप्रकाश चौटाला के बाद उनके दो बेटे अभय और अजय चौटाला भी सियासी पिच पर बैटिंग करने के लिए उतरे और हरियाणा की सियासत में अपनी ताकत दिखाई। ओमप्रकाश चौटाला के लिए हरियाणा का शिक्षक भर्ती घोटाला काफी महंगा साबित हुआ और इस मामले में उन्हें और उनके बेटे अजय चौटाला को जेल की सजा हुई।


अभय चौटाला-दुष्यंत चौटाला: फोटो- सोशल मीडिया  

इस प्रकरण के बाद अभय चौटाला सियासी मैदान में ज्यादा सक्रिय हो गए और उन्होंने खुद को नए सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया मगर उनकी राह में चट्टान बनकर खड़े हो गए भतीजे दुष्यंत चौटाला।

दुष्यंत चौटाला ने नई राजनीतिक पार्टी जननायक जनता पार्टी का गठन किया और मेहनत करके उसे राज्य में सियासी रूप से काफी मजबूत बना दिया। विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के बाद उन्होंने सरकार गठन के लिए भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला लिया। मौजूदा समय में वे मनोहर लाल खट्टर सरकार में डिप्टी सीएम के तौर पर काम कर रहे हैं।

प्रकाश बादल-मनप्रीत बादल

पंजाब की सियासत में भी चाचा और भतीजे के बीच अतीत में जंग दिख चुकी है। शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल ने जब अपने बेटे सुखबीर सिंह बादल को सियासी मैदान में बढ़ाना शुरू किया तो उनका यह कदम भतीजे मनप्रीत बादल को पसंद नहीं आया। चाचा से नाराज मनप्रीत बादल ने पंजाब पीपल्स पार्टी का गठन कर डाला। हालांकि वे इस पार्टी को सियासी मजबूती नहीं दे सके।

सियासी मैदान में विफलता के बाद उन्होंने 2016 में अपनी इस पार्टी का कांग्रेस में विलय करा दिया था। दूसरी ओर शिरोमणि अकाली दल अभी भी पंजाब में बड़ी ताकत बना हुआ है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को चुनौती देने के लिए सुखबीर बादल ने बसपा से हाथ मिला लिया है।

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