KBC Winner Sushil Kumar: एक सफल इंसान के बारे में क्यों फैलाई जा रही गलत खबर, देखें कैसे सुशील कुमार बने युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा
KBC Winner Sushil Kumar: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' (केबीसी) में पांच करोड़ रुपये जीतकर देश में अपना नाम रोशन करने वाले सुशील कुमार अब अपने गृह क्षेत्र चंपारण की पुरानी पहचान लौटाने में जुटे हैं
KBC Winner Sushil Kumar: आखिर किसी सफल ,शिक्षित और ईमानदार इंसान के बारे में मीडिया को गलत खबर लिखने से क्या मिलता है। आज हम बात कर रहे है "कौन बनेगा करोड़पति" टीवी शो के पहले 5 करोड़ जितने वाले बिहार के सुशील कुमार के बारे में। आपको बताते चले की सुशील कुमार जितने सरल इंसान है उससे कही अधिक विलक्षण प्रतिभा के धनी है, उनकी जीवनी युवा पीढियों को काफी कुछ सीखा रही है।
सुशील कुमार के द्वारा गरीब स्टूडेंट्स को हर संभव आर्थिक एवं शैक्षणिक मदद कर शिक्षित किया जा रहा है, जो समाज और रास्ट्र के दृष्टी से काफी प्रेरणादायक है, इसके अलावा पर्यावरण के क्षेत्र में भी उनके द्वारा अद्भूत कार्य किये जा रहे है, जिसमें गौरया पक्षी के संरक्षण में उनके द्वारा किया जा रहा कार्य हमें यह सीखा रहा है की जब ईश्वर के द्वारा दिये गये अनमोल रत्न में से एक पशु-पक्षी सुरक्षित रहेंगे , तभी मानव जीवन भी खुशहाल होगा।
ऐसे अद्भूत समाज के रियल हीरो को हम सभी को सलाम करना चाहिये, लेकिन कुछ चंद न्यूज़पोर्टल और मीडिया के द्वारा छापी गई गलत खबरे किसी भी प्रतिभा के मनोबल को गिरा सकता है, लेकिन फिर भी सुशील कुमार बिना इसके परवाह किये अपने मिशन में लगे हुये है, यानी गरीब स्टूडेंट्स के लिये नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करना और पर्यावरण के लिये बेहतर कार्य करना उनके जीवनशैली में बन चूका है। ऐसे लोगो को समाज सलाम करता है।
आईये जानते है रियल हीरो के द्वारा किये जा रहे अद्भूत कार्य के बारे में
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' (केबीसी) में पांच करोड़ रुपये जीतकर देश में अपना नाम रोशन करने वाले सुशील कुमार अब अपने गृह क्षेत्र चंपारण की पुरानी पहचान लौटाने में जुटे हैं , जिसमें वे काफी हद तक सफल हो चुके है।दरअसल सुशील आज चंपारण की खोई हुई पुरानी पहचान वापस दिलाने के लिए 'चंपा से चंपारण' अभियान चला रहे हैं।
जिसके तहत वह चम्पारण के चप्पे चप्पे पर चंपा का पौधा लगाते हुए दिख रहे हैं. सुशील का दावा है कि उन्होंने अब तक 70 हजार चंपा के पौधे लगवाए दिए हैं।
सुशील का कहना है कि चंपारण का असली नाम 'चंपाकारण्य' है। इसकी पहचान यहां के चंपा के पेड़ से होती थी. लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता गया, यहां से चंपा के पेड़ समाप्त होते चले गए, आज चंपारण में चंपा का एक भी पेड़ नहीं है।
सुशील ने बातचीत में कहा कि यह अभियान वह पिछले कुछ वर्षो से चला रहे हैं, उन्होंने कहा, 'मेरा यह अभियान विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर 22 अप्रैल, 2018 से शुरू हुआ था' इसके तहत अब तक 70 हजार चंपा के पौधे चंपाराण में लगाए जा चुके हैं.'।
उन्होंने कहा कि शुरुआत में इस अभियान में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब लोग खुद 'चंपा से चंपारण' अभियान से जुड़ रहे हैं. सुशील कहते हैं कि चंपारण जिले के गांव से लेकर शहर और कस्बों के घरों को इस अभियान से जोड़ा जा रहा है।
इस अभियान के तहत लोग घरों में पहुंचकर उस घर के लोगों से ही चंपा का पौधरोपण करवाते हैं। उन्होंने आगे बताया कि महीने में एक बार लगाए गए पौधे की गिनती की जाती है,गिनती की प्रक्रिया के दौरान अगर पौधा किसी वजह से सूखा या नष्ट पाया जाता है, तब फिर उस जगह पर एक और पौधा लगा दिया जाता है।
'करोड़पति' के रूप में अपने क्षेत्र में पहचान बना चुके सुशील की पहचान अब चंपा और पीपल वाले के रूप में हो गई है। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं कि सिर्फ चंपा के ही पौधे लगाए जा रहे हैं,खुले स्थानों जैसे मंदिर, स्कूल परिसरों, पंचायत भवनों, और अस्पताल परिसरों में पीपल और बरगद के भी पौधे लगाए जा रहे हैं।
पीपल और बरगद के पौधे भी लगाए
उन्होंने कहा कि कुछ महीने में अनेको पीपल और बरगद के पौधे लगाए गए हैं, इस कार्य में स्थानीय लोगो की भी मदद ली जाती है। शुरुआत में उन्होंने अपने पैसे लगाकर चंपा के पौधे खरीदकर घर-घर जाकर लगवाए, लेकिन फिर बाद में सामाजिक लोग मदद के लिए सामने आए. उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति ने तो कई हजार चंपा के पौधे उपलब्ध करवाए।
सुशील पौधा लगाने की तस्वीर भी वे अपने फेसबुक वॉल पर डाल देते हैं, महात्मा गांधी ने चंपारण से ही सत्याग्रह की शुरुआत की थी,बाद में चंपारण क्षेत्र दो जिलों में बंट गया जो अब पूर्वी चंपाारण और पश्चिमी चंपारण के नाम से जाना जाता है। सुशील पूर्वी चंपारण के जिला मुख्यालय मोतीहारी में रहते हैं। सुशील मोतिहारी के ही एक नर्सरी से पौधे लेते हैं।
सुशील का कहना है की हमारा मकसद चंपारण को न केवल पुरानी पहचान दिलवाना है, बल्कि आने वाली पीढ़ी को यह बताना भी है कि इस क्षेत्र का चंपारण नाम क्यों पड़ा.' उन्होंने कहा कि आज पेड़ को बचाकर ही पर्यावरण को संतुलित किया जा सकता है और मानव जीवन को बचाया जा सकता है।