RK Shrivastava: बिहार के फेमस शिक्षक, आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक आंगन से ₹1 में पढ़कर बनते हैं इंजीनियर

RK Shrivastava: सिर्फ '₹1 गुरु दक्षिणा प्रोग्राम' के तहत सैकड़ों निर्धन स्टूडेंट्स को पढ़ाकर इंजीनियर बना चुके आर के श्रीवास्तव का नाम चर्चित शिक्षकों में शुमार है।

Newstrack :  Network
Update: 2022-05-25 16:58 GMT

मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव: Photo - Social Media  

Bihar Mathematics RK Srivastava: बिहार का एक ऐसा शिक्षक जिसके शैक्षणिक आंगन से ₹1 में पढ़कर इंजीनियर बनते हैं। हम बात कर रहे हैं बिहार के मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव (Mathematics Guru RK Srivastava) के बारे में। बिहार में एक कहावत है कि इंसानियत की मिसाल बनो तो मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव जैसा। हमेशा समाजहित में कार्य करने वाला एक व्यक्तित्व उभरा और देश ने उसे सहज स्वीकार किया। जिस तरह इतिहास घटता है, रचा नहीं जाता। उसी तरह शिक्षक प्रकृति प्रदत्त प्रसाद होता है। वह बनाया नहीं जाता बल्कि पैदा होता है। प्रकृति की ऐसी ही एक रचना का नाम है रजनीकांत श्रीवास्तव उर्फ आरके श्रीवास्तव (Rajinikanth Srivastava alias RK Srivastava)।

आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली की चारों ओर है चर्चा

बिहार, देश भर में अनूठे एकेडमिक्स के लिए आज भी चर्चित है। आरके श्रीवास्तव के पढ़ाने के तरीके ने ऐसी लकीर खींच दी है कि पूरी दुनिया उनके शैक्षणिक कार्यशैली को सलाम करती है। जिनके बारे में शायद ही कोई होगा जिन्हें जानकारी नहीं होगी। सिर्फ ₹1 गुरु दक्षिणा प्रोग्राम के तहत सैकड़ों निर्धन स्टूडेंट्स को पढ़ाकर इंजीनियर बना चुके आर के श्रीवास्तव का नाम वर्तमान के विश्व के चर्चित शिक्षकों में शुमार है। जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का सूत्रपात किया है। देश-विदेश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में इनके शैक्षणिक कार्यशैली (academic style) की चर्चा होती रहती है।

करीब 500 बच्चों को बनाया इंजीनियर

बिहार में एक ऐसे मैथमेटिक्स गुरु हैं जो गरीब बच्चों को महज 1 रुपए में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाते हैं। यही नहीं करीब 500 बच्चों को अब तक इंजीनियर भी बना चुके हैं। हम बात कर रहे हैं रोहतास जिले के विक्रमगंज निवासी आरके श्रीवास्तव की। वे गूगल बॉय नाम से प्रसिद्ध कौटिल्य को भी पढ़ाते हैं। महज 35 की उम्र में वे देश और दुनिया भर में प्रसिद्ध हो चुके हैं।

गूगल पर मैथमेटिक्स गुरु सर्च करने पर सबसे ऊपर

आरके श्रीवास्तव 2008 से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई करा रहे हैं। उन्होंने अपना नाम ऐसा बनाया कि गूगल पर मैथमेटिक्स गुरु सर्च करने पर सबसे ऊपर उनका नाम आता है। आरके अपना एक इंस्टीट्यूट बिक्रमगंज में ही '1 रुपए गुरु दक्षिणा प्रोग्राम' चलाते हैं। वहीं सैकड़ों गरीब बच्चे मात्र 1 रुपए देकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। उनके इस संस्थान में और भी शिक्षक हैं जिसे आरके श्रीवास्तव ने नौकरी पर रखा है।


1 रुपए से कैसे चलता है इनका परिवार?

बहुत से लोगों में मन में सवाल आता होगा कि ​​​​​​शिक्षक श्रीवास्तव का परिवार और जीवनयापन उस 1 रुपए में कैसे चलता है। जब मीडिया ने उनसे बातचीत की और इस बारे में जाना तो शिक्षक ने बताया कि वे गरीब बच्चों को 1 रुपए में पढ़ाने के साथ देश भर के सम्मानित संस्थाओं में भी गेस्ट फैकल्टी के तौर पर पढ़ाते हैं। उसी से उन्हें पैसे मिलते हैं,

-गूगल ब्वॉय कौटिल्य पंडित हैं इनके शिष्य

-1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर 540 स्टूडेंट्स को बना चुके हैं अब तक इंजीनियर

हमने सोचा भी नहीं था कि एकदिन गांव की दहलीज से निकलकर कोई देश-दुनिया के लिए खुद एक संदेश बन जाएगा। लेकिन ऐसा अक्सर देखा जाता है कि जो अभाव में रहते हैं, वही दुनिया के मानचित्र पर अपनी विद्वता के बूते कृति खींचने में कामयाब साबित होते हैं। ऐसे ही एक आम लड़के या यों कहें ऑटो चालक से गणितज्ञ बनने का सफर तय किया जो आगे चलकर एक इतिहास पुरुष बन जाएंगे ये किसे पता था। पर, ऐसा ही हुआ युवा गणितज्ञ आर के श्रीवास्तव के साथ। कल तक जो गांव की पगडंडियों तक सिमटे हुए थे वो एकदिन दुनिया के मानचित्र पर छा जाएंगे ये किसी को पता नहीं था।

आर के श्रीवास्तव की, जो खुद मुफलिसी में जिंदगी को गुजारते हुए गरीब और असहाय स्टूडेंट्स को 1 रूपया गुरु दक्षिणा लेकर इंजीनियर बना रहे हैं। आर के श्रीवास्तव अबतक 540 स्टूडेंट्स को बना चुके है इंजीनियर और यह कारवां निरंतर जारी है। जिंदगी के कई पहलुओं को बहुत करीब से आरके श्रीवास्तव को देखने का मौका मिला है। इन्होंने अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं।

आरके श्रीवास्तव ने मुफलिसी के दौर में ऑटो भी चलाया

मगर किसी भी परिस्थिति से हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य पर चलते हुए एक दिन अपने मुकाम को पाने में कामयाब हुए। राष्ट्रपति से सम्मानित हो चुके मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव ने अपने घर को चलाने के लिए ऑटो रिक्शा तक चलाया। दरअसल, इनके घर की माली हालत बहुत बूरी थी। बाल्यावस्था में ही इनके पिता का निधन हो गया। बड़े भाई ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली, तब आरके बहुत छोटे थे। जब बड़े हुए तो पढ़ाई करना और बड़े भाई जब थक हारकर आते थे तो आरके ऑटो लेकर सड़कों पर कमाने निकल जाते थे। घर कि स्थिति में थोड़ी सुधार होने लगी। मगर आरके ने अपनी पढ़ाई के आगे कभी हार नहीं मानी। जिस क्लास में पढ़ते थे उसी क्लास के लड़कों को मैथेमैटिक्स पढ़ाने लगे। जब आमदनी होने लगी तो परिवार चलाने में सपोर्टिव साबित हुई।

आरके श्रीवास्तव के बड़े भाई का असमय निधन

मगर क्या बताउं होनी को कुछ और ही मंजूर था। जब घर की जिम्मेदारी पटरी पर लौटने लगी तो आरके श्रीवास्तव के बड़े भाई का असमय निधन हो गया। घर पर विपत्ति का पहाड़ टूट गया। सारी उम्मीदों पर पल में पानी फिर गया। बिखरते परिवार पर जब नजर पड़ी आरके की तो उन्होंने हिम्मत बांधते हुए घर की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर आगे निकल पड़े। इस बूरे दौर में उनकी पढ़ाई ही इनके लिए वरदान साबित हुई। यहां से आरके श्रीवास्तव उभरकर निकले मैथेमैटिक्स गुरु के रुप में।

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