NITI Aayog Ki Report: डॉक्टर न स्टाफ, नीति आयोग ने खोली बिहार की पोल

NITI Aayog Ki Report: नीति आयोग ने देश के जिला अस्पतालों की हालत पर एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट ने बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था पोल खोल दी। आइए जानते है नीति आयोग की इस नई रिपोर्ट के बारे में...

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-10-06 07:49 GMT

नीति आयोग-अस्पताल- नीतीश कुमार (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

NITI Aayog Ki Report: नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के जिला अस्पतालों में प्रति एक लाख की आबादी पर महज छह बेड हैं, जो देशभर में सबसे कम हैं। नीति आयोग ने देश के जिला अस्पतालों की हालत पर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था कीं बदहाली को उजागर कर दिया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में बिहार कई मानकों पर पिछड़ा हुआ है। सरकारी जिला अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के संबंध में जारी सूची में प्रति एक लाख की आबादी पर 222 बेड के साथ पुड्डुचेरी सबसे ऊपर तथा छह बेड के साथ बिहार सबसे नीचे है। बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में यह संख्या नौ है। इन आंकड़ों का खास महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह अध्ययन कोरोना महामारी के फैलने के ठीक पहले किया गया था। इससे यह जाहिर होता है कि जिस समय देश इस महामारी से जूझ रहा था, उस समय खासकर जिला अस्पतालों में पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर्याप्त नहीं था। कोरोना की दोनों लहरों के बीच लोगों को खासकर अस्पतालों में बेड की समस्या से काफी जूझना पड़ा था।

देश में एक लाख पर 24 बेड

देश में एक लाख की आबादी पर औसतन बेड की संख्या 24 है । जबकि इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के मानक के अनुसार प्रति एक लाख की जनसंख्या पर जिला अस्पतालों में कम से कम 22 बेड अवश्य होने चाहिए। इसी मानक के अनुसार बिहार के 36 सरकारी जिला अस्पतालों में महज तीन में ही चिकित्सक उपलब्ध हैं। मानक के अनुरूप केवल छह अस्पतालों में स्टॉफ नर्सें हैं । जबकि मात्र 19 अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ हैं। प्रदेश के बाकी अस्पतालों में मानक के अनुसार न तो डॉक्टर हैं, न स्टाफ नर्स और न पैरामेडिकल स्टाफ।

डॉक्टर-बेड (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

क्या है मानक

मानक के अनुसार, सौ बेड के एक अस्पताल में 29 चिकित्सक, 45 स्टाफ नर्स और 31 पैरामेडिकल स्टाफ अवश्य होने चाहिए। लेकिन देश के कुल 742 जिलों में से सिर्फ 101 जिलों के सरकारी अस्पताल में ही सभी 14 तरह के विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध हैं। इसी तरह सिर्फ 217 जिला अस्पतालों में ही प्रति एक लाख की आबादी पर 22 बेड पाए गए हैं।

नीति आयोग द्वारा तय मुख्य परफॉर्मेंस इंडिकेटर पर स्थिति का आकलन करें तो प्रति एक लाख की आबादी पर सबसे अधिक एक्टिव बेड सहरसा जिला अस्पताल में हैं। देश में जहां लगभग 1,500 की आबादी पर एक चिकित्सक मौजूद है, वहीं बिहार में 28 हजार से अधिक की आबादी पर एक डॉक्टर है जबकि डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए।

नीति आयोग (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

इसका एक अन्य पहलू यह भी है कि सरकार को डॉक्टर ही नहीं मिल रहे है। बिहार तकनीकी सेवा आयोग द्वारा की जा रही नियुक्ति में कई विभागों में अभ्यर्थी ही नहीं मिले थे। माइक्रोबायोलॉजी, रेडियोलॉजी, पैथोलॉजी तथा साइकियाट्रिक व एनेस्थीसिया समेत कुछ अन्य विभागों में 1,243 वैकेंसी थीं, किंतु सरकार को सिर्फ 159 विशेषज्ञ चिकित्सक ही मिल सके।

नीतीश नाराज

नीति योग की रिपोर्ट से नीतीश कुमार नाराज हैं। उनका कहना है कि बिहार को लेकर नीति आयोग ईमानदार नहीं है। उनका तर्क है कि बिहार की तुलना विकसित तथा कम जनसंख्या वाले राज्यों से नहीं की जा सकती है। क्योंकि बिहार जनसंख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर पर है। यहां प्रति वर्गमीटर जितनी आबादी है, उतनी देश में कहीं नहीं है।

वैसे, अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम की ओर से राज्यों में स्वास्थ्य असमानता पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार सरकार ने हाल के वर्षों में स्वास्थ्य सुविधाओं की संरचना विकसित करने पर जीडीपी का दो फीसद खर्च किया है। असम में 2.6 प्रतिशत के बाद यह देश में सबसे अधिक है।

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