बिजली इंजीनियरों के फेडरेशन की मांग- केंद्र उठाए कोयला आयात की जिम्मेदारी, अतिरिक्त लागत भी खुद वहन करे
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार से कोयला आयात की जिम्मेदारी लेने की मांग की है। साथ ही, फेडरेशन ने कहा, इसे कोल इंडिया के मूल्य पर राज्यों को उपलब्ध कराया जाए।
Coal Crisis : ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने केंद्र सरकार से कोयला आयात की जिम्मेदारी लेने की मांग की है। साथ ही, फेडरेशन ने कहा, इसे कोल इंडिया के मूल्य पर राज्यों को उपलब्ध कराया जाए। साथ ही, फेडरेशन ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि, केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने घरेलू कोयले की कमी पूरा करने के लिए राज्यों को 10 प्रतिशत कोयला आयात करने के संबंधी बिजली मंत्रालय के निर्देश वापस लेने की मांग की है। बता दें, मंत्रालय ने ये निर्देश 28 अप्रैल को दिया था।
सरकार उठाए अतिरिक्त बोझ
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह को भेजे गए पत्र में फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा, 'अगर राज्यों को कोयले का आयात करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो भारत सरकार को इसका अतिरिक्त बोझ उठाना चाहिए।' इसके पीछे उनका तर्क है कि, पहले से ही आर्थिक रूप से संकटग्रस्त बिजली कंपनियों और आम उपभोक्ताओं पर इसका बोझ न पड़े। एआईपीईएफ ने सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता पर केंद्र सरकार के साथ उठाने की भी अपील की है।
बिजली मंत्रालय की विफलता
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को भेजे पत्र में फेडरेशन ने मांग की है, कि कोयला संकट के लिए राज्य की उत्पादन कंपनियां किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। उन्होंने कहा, यह बिजली मंत्रालय की विफलता का परिणाम है। इसलिए मंत्रालय को कोयले का आयात करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आयातित कोयला मौजूदा सीआईएल (कोल इंडिया) दरों पर राज्य के बिजली उत्पादन घरों को उपलब्ध कराया जाए।
राज्यों पर न डाला जाए वित्तीय बोझ शैलेंद्र दुबे आगे कहते हैं, केंद्र सरकार की नीतिगत चूकों का परिणाम कोयला संकट के रूप में सामने आया है। कोयले की कमी के लिए राज्यों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'बिजली मंत्रालय की ओर से नीतिगत चूक के लिए उच्च लागत वाले आयातित कोयले के लिए राज्यों पर वित्तीय बोझ नहीं डाला जाना चाहिए।'
दिया कानून का हवाला
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया है, कि कोयला आयात के मामले में केंद्र सरकार द्वारा इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा- 11 के तहत राज्यों को निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने बताया कि, धारा- 11 पढ़ने से यह निष्कर्ष निकलता है कि उक्त धारा को लागू करने में केंद्र सरकार का अधिकार-क्षेत्र ऐसी जनरेटिंग कंपनी तक ही सीमित है, जो उसके पूर्ण या आंशिक रूप से स्वामित्व में है। राज्य सरकार के स्वामित्व वाले उत्पादन घरों के मामले में, धारा- 11 को लागू करने के मामले में यह राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र है।
शैलेन्द्र दुबे ने मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है, 'मंत्रालय अब राज्यों को निषेधात्मक लागत पर कोयले के आयात में शामिल करने के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करने की मांग कर रहा है। ऐसे में मंत्रालय उन अंतर्निहित कारकों को नजरअंदाज नहीं कर सकता, जिनके कारण कोयले की कमी हुई है।
कोयले की कमी के कारण गिनाए --
-जब, सीआईएल ने 2016 में 35,000 रुपए के भंडार का निर्माण किया था। नई खदानों को खोलने और मौजूदा खानों को बढ़ाने के लिए, तब भारत सरकार ने इस अधिशेष धन को आम बजट की ओर मोड़ दिया। इस धनराशि का प्रयोग दीर्घकालिक आधार पर कोयले की कमी को दूर करने के लिए अत्यंत आवश्यक उपाय था।
- भारत सरकार ने सीआईएल को अपने कामकाज को उर्वरक क्षेत्र की ओर मोड़ने का निर्देश दिया, जो पूरी तरह असंगत था।
- सीआईएल और कंपनियों के सीएमडी तथा शीर्ष स्तर के पदों को वर्षों तक खाली रखने के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है।
- कोयले के अंतिम उपयोगकर्ता के रूप में, वैगन की कमी के निरंतर अभिशाप को दूर करने के लिए रेलवे के साथ समन्वय करने की, जिम्मेदारी बिजली मंत्रालय की थी।
- जब केंद्र सरकार द्वारा सीआईएल के अधिकारियों को स्वच्छ भारत के तहत शौचालयों के निर्माण का काम करने का आदेश दिया गया था, इस तरह कोयला खदानों के विकास के अपने प्राथमिक काम को छोड़ दिया गया था। तभी बिजली मंत्रालय को हस्तक्षेप करना चाहिए था।
- कोयले की कमी को दूर करने के लिए प्राथमिकता पर जोर देना चाहिए था।