Ayurvedic Farming: करें इन आयुर्वेदिक औषधियों की खेती, कमाए लाखों रुपए

Ayurvedic Farming: आयुर्वेदिक औषधियों की खेती करने के लिए केंद्र व राज्य सरकार लगातार बढ़ावा दे रही हैं। साथ ही, इसकी खेती करने वाले किसानों को अनुदान और सब्ससिडी भी प्रदान कर रही है।

Written By :  Viren Singh
Update:2022-11-12 15:36 IST

Ayurvedic Farming (सोशल मीडिया)

Ayurvedic Farming: विश्व में सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धित आयुर्वेद है। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धित की बढ़ी मांग के बीच कहीं यह खो सी गई थी, लेकिन दो साल पहले आई वैश्विक कोरोना महामारी ने इसे जीवंत कर दिया। इस दौरान लोगों ने कोरोना महामारी से बचने के लिए आयर्वेदिक औषधियों का खूब सहारा लिया। एक बार फिर से धीरे-धीरे देश में आयुर्वेदिक औषधियों की मांग बढ़ने लगी है और इसका बाजार भी बड़ा होता जा रहा है। मौजूदा समय कई नामी कंपनियां आयुर्वेदिक चीजों का उत्पादन कर रही हैं और इनमें से अधिकांश कंपनियां किसानों से आयुर्वेदिक औषधियों की खरीदारी कर रही हैं। इससे किसानों और कंपनियां दोनों लाभ कमा रही हैं।

सरकार देती है सब्सिडी

ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर एक आम किसान जिसके पास बहुत थोड़ी खेती है वह आयुर्वेदिक औषधियों की खेती कर कैसे लाभ उठा सकता है। तो आज हम इस लेख से जरिये उन आयुर्वेदिक औषधियों की खेती के बारे बात करने जा रहे हैं, जिससे खेतीहर अन्य खेती की तुलना में अधिक लाभ कमा सकते हैं। इसमें खास बात यह है कि अगर आपके पास आयुर्वेदिक औषधियों की खेती करने के लिये पैसा नहीं है तो सरकार की ओर से सब्सिडी और अनुदान भी मिलता है।

यह हैं पांच औषधी वाली खेती

तो आइये जानते हैं 5 आयुर्वेदिक औषधियों की खेती के बारे में। जिनको करके किसान लाखों रुपए महीना कमा सकते हैं। इसमें अकरकरा, अश्वगंधा, सहजन, लेमनग्रास और सतावर की खेती होती है। इन करके 6 महीने से लेकर एक साल तक के अंदर लाखों रुपए कमा सकते हैं।

अकरकरा

अकरकरा की पहचान औषधीय पौधे के रुप में होती है। इस पौधे का उपयोग आयुर्वेदिक दवा बनाने में किया जाता है। इस खेती में मेहनत कम होती है। यह खेती 6 से 8 महीने के लिए होती है। इसके लिए समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है। इसका उपयोग दंतमंजन दर्द निवारक दवाओं के निर्माण में किया जाता है। यह खेती मुख्य रूप से राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र में की जाती है।

अश्वगंधा

अश्वगंधा भी औषधीय पैधा है। इसकी अन्य जड़ी-बूटियों की तुलना में सबसे अधिक मांग होती है। अश्वगंधा की जड़, पत्ती, फल और बीज का उपयोग दवा बनाने के लिए होता है। इससे बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी दवाओं का उत्पादन किया जाता है। इसकी खेती से किसान अपनी लागत का तीन गुना लाभ कमा सकते हैं। अश्वगंधा की खेती करने के लिए जुलाई और सितंबर महीना सबसे उपयुक्त होता है।

सहजन

सहजन मांग पूरे साल रहती है,क्योंकि इसमें 90 तरह के मल्टी विटामिन्स, 45 तरह के एंटी ऑक्सीजडेंट गुण व 17 प्रकार के एमिनो एसिड मिलते हैं। इसकी खेती से 1 एकड़ भूमि से 10 महीने के अंदर एक लाख रुपए महीना तक कमा सकते हैं। सहजन का उपयोग खाना और दवाओं बनाने में होता है। वैसे तो इसकी पैदावारी सबसे अधिक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में होती है, लेकिन इसके अन्य राज्य वाले भी कर सकते हैं और लाख रुपए कमा सकते हैं।

लेमनग्रास

लेमनग्रास भी औषधीय खेती में काफी लाभदायक मानी गई है। इसको गांव में नींबू घास बोला जाता है। इससे निकलने वाले तेल की मांग काफी अधिक रहती है। साथ ही दाम भी अच्छा मिलता है। इस तेल की मांग कॉस्मेटिक्स, साबुन और तेल और दवाओं का निर्माण करने वाली कंपनियों के बीच में काफी अधिक रहती है। लेमनग्रास की खेती करने में छह महीने का समय लगता है। उसके बाद किसान इसके पौधे की कटाई कर बाजार और कंपनियों में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

सतावर

यह एक औषधी फसलों में से एक है। इसको गांवों में शतावरी भी कहते हैं। सतावर का उपयोग कई दवाओं के निर्माण होता है। सतावर की फसल के लिए सबसे अच्छा महीना जुलाई और सितंबर के बीच माना गया है। अगर किसान एक एकड़ में सतावर की खेती कर दे तो इसके तैयार होने के बाद 5 से लेकर 6 लाख रुपए तक कमा सकता है। हालांकि इसको तैयार होने में 1 साल या फिर उससे अधिक समय लगता है। इसकी खेती सबसे अधिक उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और राजस्थान में की जाती है।

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