खत्म होने को है आर्थिक मंदी, यहां पढ़ें रिपोर्ट

आर्थिक रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि भारतीय बैंकों को ऋण प्रदान करने और खाते की व्यवस्था के लिए वित्त वर्ष 2020-21 तक सात अरब डॉलर (950,000 करोड़) की अतिरिक्त पूंजी की जरूरत होगी। फिच रेटिंग्स ने कहा है कि आर्थिक विकास में बढ़ रही सुस्ती से बैंकिंग सेक्टर की परेशानी बढ़ सकती है।

Update:2019-12-04 14:21 IST

नई दिल्ली: विश्व की अग्रणी निवेश बैंकिंग और निवेश प्रबंधन कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने कहा है कि भारत में जनवरी 2018 में शुरू हुई मंदी जल्द खत्म होने की उम्मीद है। चूंकि वैश्विक हालात सुधरने को हैं सो भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2020 में फिर आगे बढ़ेगी। गोल्डमैन सैक्स ने संकेत दिया कि अब भारत के विकास की रफ्तार बढऩे की संभावना है।

गोल्डमैन सैक्स इकोनॉमिक्स रिसर्च की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हम वित्तीय वर्ष 2020 में भारत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान 5.3 फीसदी और वित्त वर्ष 2021 में 6.6 फीसदी लगाते हैं। ये अनुमान पहले के अनुमानों से कम है। सितंबर 2019 में समाप्त तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि 4.5 फीसदी रही, जो छह वर्षों में सबसे कम थी। गोल्डमैन सैक्स ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही पहली तिमाही की तुलना में कमजोर है फिर भी अगली कई तिमाहियों के दौरान क्रमिक विकास की उम्मीद की जाती है।

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भारत के बारे में एक अपेक्षाकृत आशावादी दृष्टिकोण कारण ये उम्मीद है कि वैश्विक विकास अगले कुछ तिमाहियों में आगे बढ़ेगा। साथ ही उच्च खपत, निवेश और निर्यात में बढ़ोतरी का भी सार्थक योगदान होने की संभावना है। गोलडमैन सैक्स का ये भी मानना है कि आर्थिक स्थायित्व के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं। पर्सनल लोन में मजबूत विकास जारी है, बीते छह महीनों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 23 फीसदी बढ़ा है।

बैंकों को चाहिए 7 अरब डालर

आर्थिक रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि भारतीय बैंकों को ऋण प्रदान करने और खाते की व्यवस्था के लिए वित्त वर्ष 2020-21 तक सात अरब डॉलर (950,000 करोड़) की अतिरिक्त पूंजी की जरूरत होगी। फिच रेटिंग्स ने कहा है कि आर्थिक विकास में बढ़ रही सुस्ती से बैंकिंग सेक्टर की परेशानी बढ़ सकती है।

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फिच ने अपने एशिया पैसेफिक इमर्जिंग मार्केट बैंक्स के 2020 आउटलुक में इंडियन बैंकों के लिए आउटलुक नेगेटिव रखा है। रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि आर्थिक विकास में सुस्ती बढऩे से खासतौर पर सरकारी बैंकों के लोन की क्वॉलिटी में गिरावट आने के आसार बढ़ रहे हैं। बैंकों को अपनी बैलेंसशीट को कमजोर होने से बचाने और लोन ग्रोथ बनाए रखने के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत होगी।

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