मिनिमम गवर्नमेंट पर आगे बढ़ती मोदी सरकार, जानें इसके बारे में
मुक्त बाजार व्यवस्था आने और आर्थिक सुधारों के सिलसिला चलने के बाद सरकारी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की संख्या कम होने लगी। सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश का सिलसिला शुरू हो गया।
लखनऊ: एक जमाना था जब हमारे देश में सरकार कोल्ड ड्रिंक्स, ब्रेड, घड़ी, जूता, साईकिल वगैरह तमाम चीजें बनाती थी। यानी गवर्नेंस के साथ साथ व्यापार भी। एक टिपिकल सोशलिस्ट व्यवस्था का लघु स्वरूप। लेकिन एक एक करके अनेक बिजनेस घाटे में तब्दील होते गए, बन्द होते गए। सरकारी दफ्तर की तरह चलते इन उद्यमों को प्रतिस्पर्धा के लिए न तैयार किया गया और न ऐसी मंशा रही। सरकार बिजनेस तो कर रही थी लेकिन मुनाफा कमाना पाप समान था।
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कांग्रेस सरकारों के समय में ही रूस जैसी व्यवस्था को अपनाया गया था
मुक्त बाजार व्यवस्था आने और आर्थिक सुधारों के सिलसिला चलने के बाद सरकारी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की संख्या कम होने लगी। सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश का सिलसिला शुरू हो गया। जहां एक समय एयरलाइन्स और बैंकों का सरकारीकरण हुआ था और अब निजीकरण की हवा चलने लगी। कांग्रेस सरकारों के समय में ही रूस जैसी व्यवस्था को अपनाया गया था जिसमें सरकार का ही सब कुछ होता था लेकिन उसी कांग्रेस सरकार को समय की मांग के अनुरूप व्यवस्था को बदलना पड़ा।
सरकार का काम कारोबार करना नहीं है
उदारीकरण की प्रक्रिया के तहत यह विचार सामने आया कि सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़े को ध्यान में रखकर काम नहीं करते इसलिए उनके कामकाज में मुनाफ़ा ज्यादा नहीं होता। फिर यह बात भी समझ में आई कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं है, देश चलाना है इसलिए सरकार को सार्वजनिक कंपनियों से विनिवेश करके उनसे अलग हट जाना चाहिए। ये समझ में आने के बाद भी सरकारी कंट्रोल को छोड़ा नहीं गया।
मोदी सरकार ने शुरू से मिनिमम गवर्नमेंट पर जोर दिया है। सरकार को नीतिनिर्धारण और प्रशासन का ही काम करना चाहिए, इस बात कोआगे बढ़ाया है। इस सोच को अपनाया है कि सरकार का हाथ हर किसी चीज में नहीं होना चाहिए।
बजट में भी यही मंशा और संकल्प साफ दिखाई दिया है
इस बार के बजट में भी यही मंशा और संकल्प साफ दिखाई दिया है। मोदी सरकार का स्पष्ट व्यक्त एजेंडा मिनिमम गवर्नमेंट का रहा है। इसी एजेंडा के तहत सरकार कमर्शियल सेक्टरों से बाहर निकलने पर जोर लगा रही है। इसी क्रम में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों में हिस्सेदारी बेच कर 1.75 करोड़ रुपये का राजस्व कमाने का लक्ष्य रखा है। वित्तमंत्री ने ये भी कहा है कि चार रणनीतिक क्षेत्रों की पब्लिक सेक्टर कंपनियों को छोड़ कर अन्य सेक्टरों की कंपनियों में विनिवेश किया जाएगा। वैसे पिछले बार के बजट में 2.14 लाख करोड़ का लक्ष्य रखा था सो इस बार वह घटा ही है।
आईडीबीआई बैंक,भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉर्पोरेशन, कंटेनर कार्पोरेशन और नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड में विनिवेश इसी वित्त वर्ष में हो जाना है। यही नहीं, नीति आयोग से कहा गया है कि वो विनिवेश के लिए नई लिस्ट भी तैयार करे।
सरकार के पास अपने असेट्स यानी परिसंपत्तियों में एक सबसे बड़ा हिस्सा ज़मीनों का है
सरकार के पास अपने असेट्स यानी परिसंपत्तियों में एक सबसे बड़ा हिस्सा ज़मीनों का है। राजस्व कमाने के एक और उपाय के रूप में सरकार इन्हीं जमीनों को टारगेट कर रही है। एक अनुमान है कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों के पास 5 लाख एकड़ से ज्यादा लैंड होल्डिंग है। सरकार के पास पैसे जुटाने का ये एक बहुत बड़ा स्रोत है। पिछले साल ही दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कमर्शियल डेवलपमेंट के लिए एक करोड़ वर्ग फुट जमीन दी थी। ये अब तक की ऐसी सबसे बड़ी कार्रवाई है।
रेलवे की ढेरों जमीनें बेकार पड़ी हैं। इनको कमर्शियल इस्तेमाल में लाने की बातें कई साल से हो रही है। अब रेलवे के अलावा अन्य विभागों की जमीनों और इंफ्रास्ट्रक्चर के कमर्शियल उपयोग की बात की गई है।
विनिवेश की प्रक्रिया
एक बार ये भी समझना जरूरी है कि विनिवेश है क्या? दरअसल, विनिवेश प्रकिया में निवेश का उलटा होता है। निवेश यानी किसी कारोबार में, किसी संस्था में, किसी परियोजना में रकम लगाना और विनिवेश यानी उस रकम को वापस निकालना। सरकार को निवेश करने से तमाम कंपनियों में शेयर हासिल होते हैं। सरकार या तो पूरी मिलकियत अपने पास रखती है या कुछ 51 फीसदी यानी मेजोरिटी हिस्सेदारी रखती है तभी वह कंपनी सरकारी कही जाती है।
यह भी समझना ज़रूरी है कि निजीकरण और विनिवेश में अंतर है, निजीकरण में सरकार अपने 51 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेच देती है जबकि विनिवेश की प्रक्रिया में वह अपना कुछ हिस्सा निकालती है लेकिन उसकी मिल्कियत बनी रहती है। यानी कहा जा सकता है कि विनिवेश किसी कंपनी का आंशिक निजीकरण होता है।
विनिवेश का एक उद्देश्य कंपनी का बेहतर प्रबंधन भी होता है
विनिवेश प्रक्रिया के जरिए सरकार अपने शेयर किसी और पक्ष को बेचकर संबंधित कंपनी की मिल्कियत से भी छुटकारा पा जाती है और उसे दूसरी योजनाओं पर ख़र्च करने के लिए धन भी मिल जाता है। विनिवेश का एक उद्देश्य कंपनी का बेहतर प्रबंधन भी होता है।
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विनिवेश या तो किसी निजी कंपनी के हाथ किया जा सकता है या फिर उनके शेयर पब्लिक में जारी किए जा सकते हैं। उद्देश्य यही होता है कि सरकार उस कंपनी से अपने हाथ खींच ले और अपना पैसा बाहर निकाल ले। भारत में विनिवेश भारी राजनीतिक विवादों के विषय रहे हैं, क्योंकि विनिवेश में घपले-घोटाले की आशंकाएं होती हैं। आरोप लगते हैं कि सस्ते में शेयर बेच दिए, मुनाफे वाले उपक्रम बेच दिए, अपने किसी ख़ास को संपत्ति बेच दी आदि। राजनीतिक असर का प्रयोग करके शेयर कहीं सस्ते में तो नहीं बेच दिए गए या किसी अपने खास आदमी या समूह को ही तो नहीं दे दे दिए गए। इस तरह के विवाद विनिवेश में अक्सर आते रहते हैं।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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