MSME: मतलब सुक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों को बढ़ावा देना

27 जून को अंतरराष्ट्रीय सुक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम दिवस (Micro Small Medium Size Enterprises DAY) मनाया जाता है।

Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-06-26 11:35 GMT

अंतरराष्ट्रीय सुक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम दिवस पर सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

MSME: 27 जून को अंतरराष्ट्रीय सुक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम दिवस (Micro Small Medium Size Enterprises DAY) मनाया जाता है। इसको मनाए जाने के पीछे का मकसद है- सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और सभी के लिए निवोन्मेषण एवं स्थायी कार्यों को बढ़ावा देने में सुक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों को बढ़ावा देना। हालांकि इसका इतिहास ज्यादा लंबा नहीं है। संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 6 अप्रैल 2017 को 27 जून को अंतरराष्ट्रीय सुक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम दिवस (एमएसएमई) मनाने की घोषणा की थी। यानी पहली बार एमएसएमई दिवस 27 जून, 2017 को मनाया गया था। इस बार 27 जून को पांचवां एमएसएमई दिवस मनाया जा रहा है।

गौरतलब है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में हमेशा अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मौजूदा समय में देश में सक्रिय लगभग 6.3 करोड़ एमएसएमई न सिर्फ देश की जीडीपी में बड़ा योगदान कर रहे हैं बल्कि एक बड़ी आबादी के लिये रोज़गार के अवसर मुहैया कराने में सहयोग कर रहे हैं। बताते चलें कि यह क्षेत्र लगभग 110 मिलियन रोज़गार उपलब्ध कराने के अलावा श्रमिक बाज़ार की स्थिरता में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। वहीं भारत सरकार की ओर से मौजूदा समय में आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देने से एमएसएमई की भूमिका और बढ़ गई हैंं

भारत सरकार की तरफ से एमएसएमई क्षेत्र के महत्त्व को देखते हुए वर्ष 2019 में अनुमान लगाया गया कि अगले पांच वर्षों में यह क्षेत्र भारत की आधी जीडीपी और करीब 50 मिलियन नए रोजगारों के सृजन करने में सफलता दिलाएगा।

एमएसएमई क्षेत्र की चुनौतियां

बताते चलें कि आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी और चीन की जीडीपी में एमएसएमई की भागीदारी क्रमशः 55 और 60 प्रतिशत है जो यह बताने के लिए काफी है कि भारत को इस क्षेत्र में अभी लंबा सफर करना है। वहीं एमएसएमई की प्रगति में कुछ बाधाएं हैं, जिनका जिक्र हम कर रहे हैं।

वित्तीय चुनौतियां

- भारत में एमएसएमई क्षेत्र में ऋण आपूर्ति की समस्या एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

- जानकारी के मुताबिक इस क्षेत्र में उपलब्ध औपचारिक ऋण 16 ट्रिलियन रुपए ही है, इसके चलते इस क्षेत्र में कुल व्यावहारिक ऋण की ज़रूरत (36 ट्रिलियन रुपए) के सापेक्ष अभी भी करीब 20 ट्रिलियन रुपए का अंतर कायम है।

- इतना ही नहीं बैंकिंग पहुंच की कमी के चलते भारत में एमएसएमई को अधिकांशतः 'गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों' या सूक्ष्‍म वित्‍तीय संस्‍थानों पर निर्भरता अभी भी बनी हुई है।

- सितंबर, 2018 से एनबीएफसी क्षेत्र में तरलता की कमी के चलते एमएसएमई की वित्तीय चुनौती को और बढ़ा दिया है।

औपचारीकरण की कमी

- एमएसएमई के बीच औपचारिकता की कमी इस क्षेत्र में क्रेडिट गैप का एक प्रमुख कारण है।

- देश में सक्रिय कुल एमएसएमई में से लगभग 86% का पंजीकरण नहीं हो पाया है।

- आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में भी देश के कुल 6.3 करोड़ एमएसएमई में से केवल 1.1 करोड़ ही 'वस्तु और सेवा कर' (GST) व्यवस्था के साथ पंजीकृत हो पाए हैं।

- इसके अलावा इन 1.1 करोड़ एमएसएमई में से आयकर दाखिल करने वालों की संख्या अभी भी काफी कम है।

तकनीकी बाधाएं

- भारत का एमएसएमई क्षेत्र बड़े स्तर पर अभी भी पुरानी और अप्रचलित प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जो इसकी उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है। 

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