जेसीबी साहित्य पुरस्कार को लेकर 100 लेखकों का खुला पत्र, कहा- भारत, फलस्तीन में लोगों के घरों के विनाश में मुख्य भूमिका

जेसीबी साहित्य पुरस्कार से पहले लेखकों का खुला पत्र, पुरस्कार को बताया पाखंड, 23 नवंबर को होना है पुरस्कारों का ऐलान

Newstrack :  Network
Update:2024-11-21 17:36 IST

23 नवंबर को ‘जेसीबी साहित्य पुरस्कार’ के विजेता की घोषणा से दो दिन पहले बृहस्पतिवार को देश के सौ से ज्यादा लेखकों, अनुवादकों और प्रकाशकों ने एक खुला पत्र जारी कर ‘जेसीबी साहित्य पुरस्कार’ को कंपनी का पाखंड करार दिया और उसकी कड़ी आलोचना की। लेखकों ने कहा कि पुरस्कार को फंड करने वाली वाली ब्रिटिश बुलडोज़र निर्माता कंपनी ने भारत और फिलिस्तीन में घरों के "भयानक विनाश" में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

लेखकों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने विभिन्न राज्यों में मुसलमानों के घरों, दुकानों और पूजा स्थलों को ध्वस्त करने के लिए जेसीबी के बुलडोजरों का इस्तेमाल किया है, जिसे एक व्यवस्थित अभियान के तहत अंजाम दिया गया। इस अभियान को ‘बुलडोजर जस्टिस’ का नाम दिया गया है, जो बेहद चिंताजनक और परेशान करने वाला है।

खुले पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कवि एवं प्रकाशक असद जैदी, कवि एवं उपन्यासकार मीना कंडासामी, कवि एवं आलोचक के. सच्चिदानंदन,कवि सिंथिया स्टीफन और कवयित्री जेसिंता करकेट्टा ने कहा कि जेसबी (इंडिया) ब्रिटेन की निर्माण उपकरण निर्माता कंपनी जेसी बामफोर्ड एक्स्कावेटर्स लिमिटेड (जेसीबी) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है जो ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी के सबसे ज्यादा फंडिंग देने वाली कंपनी रही है। इसी से जोड़कर लेखकों ने कहा, भारत में दक्षिणपंथी हिंदू सुप्रीमेसी परियोजनाओं में जेसीबी उपकरणों का उपयोग इस संदर्भ में कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

पत्र में लेखको ने आगे लिखा, जेसीबी के एजेंट और इजराइली रक्षा मंत्रालय के बीच हुए अनुबंध की वजह से जेसीबी बुलडोजर फिलिस्तीन के कब्जे वाले क्षेत्र में घरों को ध्वस्त करने और बस्तियों के विस्तार के लिए भी जिम्मेदार हैं। इस प्रकार इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों की जातीय नरसंहार और कश्मीर में ध्वस्तीकरण के निरंतर प्रयासों में जेसीबी के बुलडोजर प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।"

जेसीबी ने एक साहित्य पुरस्कार स्थापित किया है जो 'पीड़ित और विविध लेखकों' को जेसीबी ने एक साहित्य पुरस्कार स्थापित किया है जो 'पीड़ित और विविध लेखकों' को टारेगट करता है। लेकिन अपनी मशीन के जरिये लोगों के जिंदगी और रोजगार को नष्ट भी कर रहा है। हम सब लेखक के रूप में साहित्य समाज के समर्थन के ऐसे कपटी दावों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह पुरस्कार जेसीबी के हाथों पर लगे खून को धो नहीं सकता। भारत के उभरते हुए लेखकों को इससे बेहतर पुरस्कार के योग्य हैं।

पत्र में हस्ताक्षर करने वालों में अरब जगत से जुड़े कई साहित्यकार रहे जिनमें कवि रफीफ ज़ियादाह, उपन्यासकार सीनान एंटून और उमर रॉबर्ट हैमिल्टन और फिलिस्तीनी उपन्यासकार इसाबेला हम्मद रहे। पत्र में भारत को लेकर आगे कहा गया कि यह कितनी विडंबना से भरी बात है कि जेसीबी शब्द हिंदुस्तान में उस मशीन के रूप में ज्यादा प्रचलित है जिसने देश के कुछ राज्यों में नागरिकों के घरों को जमींदोज करने में मदद की है।

यह कितना विडंबनापूर्ण है कि जेसीबी शब्द भारत में उस मशीन के रूप में अधिक लोकप्रिय है जिसने भारत के कुछ राज्यों में आम नागरिकों के सैकड़ों हजारों घरों को ध्वस्त करने में मदद की है। इसे भारतीय साहित्य के 'प्रतिष्ठित' साहित्यिक पुरस्कार से जोड़ते हुए देखना अवास्तविक है। भारी पृथ्वी निर्माण उपकरण एक चाकू की तरह होता है। इसे मानव सुख के लिए बुनियादी ढांचा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन हाल के सालों में इसे गरीबों और हाशिए पर रहे लोगों के जिंदगी को बर्बाद करने के लिए काफी ज्यादा इस्तेमाल किया गया है। हम कंपनी और पुरस्कार का संचालन करने वालों द्वारा किए जाने वाले पाखंड की निंदा करते हैं।

आखिर में लेखक और पत्रकार जिया उस सलाम ने कहा, "जेसीबी मोदी के भारत में राज्य समर्थित नफरत और अल्पसंख्यकों और हाशिए पर रहे समूहों का उत्पीड़न का प्रतीक बन गया है। यह साहित्य पुरस्कार के साथ वैधता प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है। इसका मुक्त भाषण, विविधता और बहुलवाद को बढ़ावा देने से कोई संबंध नहीं है। लेखकों के रूप में, यह हमारे लिए आवश्यक है कि हम मानवाधिकारों का इस खुले उल्लंघन के खिलाफ आवाज़ उठाएं।"

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