मंडल के मसीहा वीपी सिंह को भारत रत्न देने की मांग अचानक क्यों उठी?

Bharat Ratna for VP Singh: अब बरसों बाद पिछड़े समाज और क्षत्रिय समाज की ओर से वीपी सिंह को भारत रत्न की मांग जोर पकड़ रही है। सोशल मीडिया पर लोगों की यह मांग ट्रेंड पर है।

Written By :  Raj Kumar Singh
Update:2024-12-23 14:10 IST

Vishwanath Pratap Singh (File Photo: Social Media)

Former PM VP Singh: मंडल के मसीहा और पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह अचानक से चर्चा में हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें भारत रत्न देने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। एक्स पर तो हाल ही में यह टाप ट्रेंड में रहा था। आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक से विश्वनाथ प्रताप सिंह जिन्हें लोग वीपी सिंह भी कहते हैं सुर्खियों में आ गए।

लोकसभा चुनाव से मुद्दा लगातार संविधान और आरक्षण है

थोड़ा पीछे चलते हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा संविधान बदलने की आशंका का रहा। विपक्ष ने खासतौर से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि यदि बीजेपी सत्ता में लौटी तो यह संविधान बदल देगी। कहने का अर्थ आरक्षण पर संकट आ जाएगा। राहुल गांधी पूरे चुनाव भर और अब उसके बाद भी संविधान की एक प्रति दिखाते हुए चले आ रहे हैं। कांग्रेस के अलावा उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव ने भी इसी मुद्दे को उठाया, थोड़ा फेरबदल करके। यूपी में अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नया एजेंडा प्रस्तुत किया और उनका यह एजेंडा सफल भी रहा। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन ने यूपी में सबसे अधिक सीटें जीतीं।

चुनाव के बाद बीजेपी सत्ता में आई, लेकिन पार्टी पूर्ण बहुमत से थोड़ा पीछे रह गई। हालांकि उनका एनडीए गठबंधन पूर्ण बहुमत पाने में सफल रहा। चुनाव के बाद से बीजेपी ने अब तक अपनी पूरी ऊर्जा यह साबित करने में लगाई है कि संविधान को बदलने की बात कांग्रेस की अफवाह थी, जिसे एक साजिश के तहत फैलाया गया।



भारतीय राजनीत के केंद्र में साल भर से दलित-पिछड़े हैं

हाल ही में संसद में गृह मंत्री अमित शाह के बाबा साहब भीमराव अंबेडकर पर दिए गए एक बयान को लेकर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष उन पर हमलावार है। ऐसे में ये साफ है कि बीते साल भर से देश में सबसे बड़ा मुद्दा दलितों और पिछड़ों से ही जुड़ा हुआ है। चाहे वह संविधान बदलने का मुद्दा हो, पीडीए हो या फिर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को लेकर दिए गए बयान हों।

टीवी डिबेट से शुरू हुई वीपी सिंह पर बहस अब काफी आगे बढ़ चुकी है

इसी बीच एक टीवी डिबेट में बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने राजा मांडा पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह पर एक ऐसी टिप्पणी कर दी जिसे लेकर बवाल मच गया। डिबेट में ही राष्ट्रीय जनता दल की तेज तर्रार प्रवक्ता प्रियंका भारती ने सुधांशु त्रिवेदी को आड़े हाथों ले लिया। और कहा कि मंडल के मसीहा वीपी सिंह को देश के दलित और पिछड़े कभी नहीं भूल सकते। यहां उल्लेखनीय है कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न भी वीपी सिंह की सरकार ने ही दिया था।

स्वतंत्रता के बाद देश में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक बदलाव के सबसे प्रतीक हैं वीपी सिंह

इसमें कोई शक नहीं है देश में आजादी के बाद समाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव के सबसे बड़े प्रतीक विश्वनाथ प्रताप सिंह हैं। मंडल कमीशन की सिफारिशों को उन्होंने ही लागू किया। और इसके बाद देश के पिछड़े तबके की सरकारी नौकरियों में पकड़ सर्वाधिक मजबूत हुई। इसका असर उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा, वृहत राजनीतिक चेतना और समृद्ध आर्थिक स्थिति में देखने को मिल रहा है।



ओबीसी नेताओं ने वीपी सिंह को हाशिए पर करने का प्रयास किया, ब्राह्मण तो वैसे भी ख़फा थे

यह बात और है कि पिछड़े वर्ग के लिए मसीहा बनकर आने वाले वीपी सिंह को पिछड़े समाज से आने वाले नेताओं ने बिसरा दिया। मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव जैसे नेताओं ने उनके लिए भारत रत्न की मांग नहीं की, राजनीतिक रूप से भी इन लोगों ने वीपी सिंह को हाशिए पर रखने का प्रयास किया। धीरे धीरे ओबीसी वर्ग ने भी वीपी सिंह को भुलाना शुरू कर दिया। सवर्ण विशेष रूप से ब्राह्मण तो पहले से ही अपने अधिकारों पर हमले के लिए वीपी सिंह से खार खाए बैठे थे, सो उन्होंने वीपी सिंह को माफ नहीं किया। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि देश के कद्दावर नेता रामविलास पासवान हमेशा वीपी सिंह को दलितों का मसीहा कहते रहे और उनको सम्मान देते रहे। 

जेपी के बाद कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका वीपी ने ही दिया

1975 में जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस के खिलाफ देश भर में माहौल बनाया था। इससे नाराज होकर इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी थी, जिसका आक्षेप आज तक कांग्रेस झेल रही है। इसके बाद कांग्रेस की सत्ता भी चली गई थी।

कुछ इसी तरह का माहौल 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बनाया था। बोफोर्स तोप की खरीद में कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे से शुरू हुई उनकी मुहिम जनता दल की सफलता और कांग्रेस की पराजय से ही थमी। 1989 से ही गैर कांग्रेसी क्षेत्रीय दलों की सरकारों का भी उत्थान हुआ और ओबीसी नेता भी मजबूत होकर उभरे।



वीपी को भारत रत्न की मांग पर केंद्र सरकार के लिए निर्णय लेना आसान नहीं

हालांकि अब बरसों बाद पिछड़े समाज और क्षत्रिय समाज की ओर से वीपी सिंह को भारत रत्न की मांग जोर पकड़ रही है। अब देखना है कि बीजेपी सरकार इस पर क्या रुख अख्तियार करती है क्योंकि एक ओर दलित और पिछड़े हैं तो दूसरी ओर ब्राह्मण। बीजेपी के लिए वीपी सिंह को लेकर कोई फैसला करना आसान नहीं होगा। देखना होगा कि मंडल के मसीहा वीपी सिंह अपनी ही लिखी इस कविता की पीड़ा से मुक्त हो पाएंगे या नहीं-

लिफाफा,

पैगाम तुम्हारा

और पता उनका

दोनों के बीच

फाड़ा मैं ही जाऊंगा।

(विश्वनाथ प्रताप सिंह)

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