ब्लैक फंगस पर भारत में सिर्फ अटकलें, रिसर्च और स्टडी नदारद, जानिए क्या कहता है अमेरिका का सीडीसी

देश में कोरोना के साथ साथ खतरनाक फंगल संक्रमण का प्रकोप फैल गया है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-05-23 12:10 GMT

ब्लैक फंगस की सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

लखनऊ। देश में कोरोना के साथ साथ खतरनाक फंगल संक्रमण का प्रकोप फैल गया है। अचानक ये नई आफत क्यों आई, इसकी क्या वजह है, कोई कैसे बचे, इन सब बातों पर सिर्फ अटकलबाजी चल रही है। जिनको स्थिति साफ करनी चाहिए जैसे कि इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और स्वास्थ्य मंत्रालय, वो चुप्पी साधे हैं।

ऐसे में अलग—अलग डॉक्टर और एक्सपर्ट्स तरह तरह की राय और तर्क दे रहे हैं। इनमें मरीजों को ज्यादा स्टेरॉयड देने, गलत तरीके से ऑक्सीजन देने, इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन देने, ऑक्सीजन पाइप में नमी और गंदगी आने, अनियंत्रित ब्लड शुगर होने, गन्दा मास्क लगाने जैसे ढेरों तर्क शामिल हैं। ये बातें किसी रिसर्च या स्टडी पर आधारित नहीं बल्कि अटकलें ज्यादा हैं। अभी तक किसी स्टडी, रिसर्च या डेटा आधारित जानकारी की बात सरकार, वैज्ञानिक संस्थान या किसी भी अस्पताल के हवाले से नहीं आई है।

क्या कहता है सीडीसी

कोरोना काल में अमेरिका का सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल यानी सीडीसी जानकारी का सबसे भरोसेमंद स्रोत साबित हुआ है। वैसे तो सीडीसी अमेरिका के बारे में सिफारिशें, सूचनाएं और जानकारियां देता है लेकिन तमाम देशों की सरकारें अमूमन वही कर रहीं हैं जो सीडीसी की गाइड लाइन होती है।

बहरहाल, सीडीसी के अनुसार, फंगस या फफूंदी हमारे चारों ओर मौजूद रहती है। मिट्टी, पेड़ पौधे, मिट्टी, कंपोस्ट खाद, सड़ते कूड़े, गोबर वगैरह हर जगह फंगस के कण होते हैं। फंगस या तो कोई नुकसान नहीं करती या फिर बेहद गम्भीर बीमारी पैदा कर देती है। फंगस भी कई तरह की होती है और उनमें से एक है म्यूकोरमाईसीट्स जिसे ब्लैक फंगस कहा जा रहा है। आमतौर पर इससे शायद ही कोई बीमार पड़ता है लेकिन इन दिनों इसका बहुत प्रकोप देखने को मिल रहा है।

इससे होने वाली अवस्था को म्यूकोरमाईकोसिस बीमारी कहते हैं। सीडीसी का कहना है कि ये एक गंभीर लेकिन रेयर फंगल इंफेक्शन है जो म्यूकोरमाईसीट्स नामक फफूंदी के एक ग्रुप की वजह से होता है। इस ग्रुप में कई तरह की फफूंदी होती है जो हमारे चारों ओर वातावरण में अति सूक्ष्म कणों के रूप में मौजूद रहती है। इनसे बच कर रहना लगभग असंभव होता है। म्यूकोरमाईकोसिस बीमारी मुख्यतः उन्हीं लोगों को होती है जिनके कोई बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या है जो ऐसी दवा लेते हैं जिनसे शरीर की इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है।

कहां पनपता है फंगस

फंगस घर के भीतर और बाहर, दोनों जगह रहता है। ये घरों, अस्पतालों में उन जगह पनपता है जहां काफी नमी होती है। जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर है वे फंगस के संपर्क में आने से बीमार पड़ सकते हैं। म्यूकोरमाईकोसिस में उसका फंगस आमतौर पर साइनस या फेफड़ों को प्रभावित करता है। ये फंगस सांस के जरिये श्वास तंत्र और फेफड़ों में पहुंचता है। लेकिन त्वचा के कट जाने, जल जाने या किसी अन्य चोट के जरिये भी ये फंगस अंदर पहुंच सकता है। ये फफूंदी हवा से ज्यादा मिट्टी में पाई जाती है। और गर्मियों में ज्यादा पनपती है।

अस्पताल में प्रकोप

सीडीसी का कहना है कि कभी कभार अस्पताल में फंगस के प्रति एक्सपोज़ होने से मरीज इससे प्रभावित हो जाते हैं। नमी वाले वातावरण में इस फंगस से मरीजों में संक्रमण की आशंका ज्यादा होती है। इसलिए अस्पताल में उन मरीजों को हवादार जगह रखना चाहिए जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है, एयर फ़िल्टर का प्रयोग करना चाहिए, कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीजों को पहले से ही एन्टी फंगल दवा देनी चाहिए। अगर एक ही अस्पताल में भर्ती कई मरीजों में फंगल इंफेक्शन होता है तो पूरे अस्पताल की जांच और सुधार होने चाहिए।

किनको होने की आशंका

सीडीसी का कहना है कि म्यूकोरमाईकोसिस एक रेयर बीमारी है लेकिन ये उनमें होने की ज्यादा संभावना है जिनको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है, जो ऐसी दवाइयां लेते हैं जिनसे शरीर की कीटाणुओं और बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है।

- जिनको डाइबिटीज है या जिनमें लम्बे समय तक शुगर लेवल बहुत ज्यादा रहा हो।

- कैंसर से पीड़ित मरीज।

- जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ है।

- जिनका स्टेम सेल प्रत्यारोपण हुआ है।

- जिनमें व्हाइट ब्लड सेल कम हैं। इसे न्यूट्रोपेनिया कहा जाता है।

- जिनको लम्बे समय तक कॉर्टिको स्टेरॉयड दी गई है।

- शरीर में आयरन की अत्यधिक मात्रा है।

- सर्जरी, जल जाने या घाव की वजह से स्किन इंजरी है।

- सीडीसी के अनुसार म्यूकोरमाईकोसिस बीमारी बहुत कम पाई जाती है। 1992-92 के एक आकलन के अनुसार दस लाख लोगों में इससे बीमार होने की दर सालाना 1.7 है।

- म्यूकोरमाईकोसिस संक्रामक रोग नहीं है। ये एक मरीज से दूसरे में नहीं फैलता है।

कोई कैसे बचे

म्यूकोरमाईकोसिस पैदा करने वाले फंगस के सूक्ष्म कणों से बच पाना तो बहुत मुश्किल है। इस बीमारी की कोई वैक्सीन भी नहीं है। लेकिन कमजोर इम्यून सिस्टम वाले कुछ उपाय करके म्यूकोरमाईकोसिस के जोखिम को कम कर सकते हैं। सीडीसी का कहना है कि ये भी कोई गारंटीड उपाय नहीं हैं।

- धूल वाली जगहों पर न जाएं, जैसे कि कंस्ट्रक्शन साइट। अगर जाना पड़े तो एन95 मास्क जरूर लगाएं।

- सीलन वाली बिल्डिंग या पानी से क्षतिग्रस्त बिल्डिंग के सीधे संपर्क में आने से बचें।

- मिट्टी या धूल के सीधे संपर्क में आने वाले काम न करें। अगर करना हो तो जूते, फुल पैंट, पूरी बांह की शर्ट, रबर के दस्ताने पहनें।

- मिट्टी या धूल का एक्सपोज़र हुआ है तो साबुन और पानी से स्किन को अच्छी तरह साफ करें।

- स्किन में कट-फट जाने पर तुरंत साबुन और पानी से धोएं। 

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