रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: विदेशों में भारतीय गेहूं की भारी डिमांड, व्यापारियों से किया जा रहा संपर्क

Effect of Russia Ukraine War: रूस- यूक्रेन युद्ध का असर अब व्यापार पर दिखने लगा है, विदेशों से भारतीय गेहूं व्यापारियों से संपर्क किया जा रहा है

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shashi kant gautam
Update: 2022-03-16 16:36 GMT

उक्रेन युद्ध का असर: Photo - Social Media

Effect of Russia Ukraine War: यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के चलते और कुछ चाहे जो हो रहा हो लेकिन भारत (India) के गेहूं व्यापारियों (wheat traders) को अच्छा खासा फायदा हुआ है। बताया जाता है कि विदेशों से भारतीय व्यापारियों के पास बहुत संपर्क किया जा रहा है क्योंकि यूक्रेन पर रूस के हमले के चलते काला सागर (Black Sea) के रूट पर बहुत बड़ा असर पड़ा है और इस रास्ते से सप्लाई नहीं हो पा रही है। ऐसे में विदेशी आयातक काला सागर के रास्ते आने वाले गेहूं का विकल्प खोज रहे हैं।

रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine crisis) में बहुत विशाल क्षेत्र में गेहूं का उत्पादन होता है और दुनिया के कुल गेहूं निर्यात का 30 फीसदी इन्हीं दोनों देशों से आता है। यूरोप तो लगभग पूरी तरह रूसी और यूक्रेनी गेंहूं (Russian and Ukrainian wheat) पर निर्भर है। भारत ने पिछले कुछ दिनों में पांच लाख टन गेहूं निर्यात के एग्रीमेंट किए हैं।

काला सागर रूट: Photo - Social Media

यूक्रेन युद्ध के कारण अनाज की कीमतों में तेजी

व्यापारियों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के कारण अनाज की कीमतों में बहुत तेजी आई है, जिसका फायदा दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश भारत को हो रहा है। इसी सप्ताह यूरोपीय गेहूं की कीमत 400 यूरो प्रति टन यानी लगभग 33 हजार रुपये पर पहुंच गई थी। ये पिछले 14 साल में सबसे ज्यादा है। इसके विपरीत उलट भारत में गेहूं उत्पादकों को लगभग 19,700 रुपये प्रति टन का न्यूनतम मूल्य मिलता है।

रिकार्ड उत्पादन

भारत में पिछली पांच फसलों से रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन (wheat production in india) हुआ है। गोदामों में गेहूं का स्टॉक भरा पड़ा है। मुफ्त अनाज बांटने के बाद भी ढेरों सरपल्स स्टॉक है। चूँकि गेहूं भंडार भरे हुए हैं इसीलिए व्यापारी निर्यात के लिए आतुर भी हैं। चूंकि भारत में एमएसपी ज्यादा है सो गेहूं निर्यात का फायदा तभी ज्यादा होता है जबकि वैश्विक बाजार में दाम चढ़े हुए हों। यही वजह है कि इस साल भारत रिकॉर्ड 70 लाख टन गेहूं का निर्यात करेगा।

भारतीय गेहूं की भारी डिमांड: Photo - Social Media

उर्वरक की कमी

यूक्रेन युद्ध से जुड़ी एक चिंता उर्वरक को लेकर है। दरअसल, रूस केमिकल उर्वरक के भी सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है। रूस पर लगाये गए ग्लोबल प्रतिबंधों के कारण वहां से उर्वरक की सप्लाई ठप हो जायेगी और इसका असर घरेलू बाजारों के दामों पर पड़ेगा। केमिकल उर्वरक की कीमत (chemical fertilizer price hiked) पिछले साल से लगभग दोगुनी हो चुकी है। नाइट्रोजन आधारित यूरिया और दुनियाभर में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला फासफोरस आधारित डायमोनियम फास्फेट पिछले साल के मुकाबले क्रमशः 98 प्रतिशत और 68 प्रतिशत महंगा हो चुका है।

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