स्वतंत्रता दिवस: क्रांतिकारी ने लिखा लेख, साक्षी है चांद का फांसी अंक
75 वें स्वतंत्रता दिवस आइये जानते हैं उन अनाम वीरों के बारे में...
आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों ने असंभ्य यातनाएं सहीं, पूरा जीवन जेल में बिता दिया, दो दो बार आजीवन कारावास की सजा भोगी। फांसी के फंदे पर चढ़ गए या फिर तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिये गए। 75 वें स्वतंत्रता दिवस आइये जानते हैं उन अनाम वीरों के बारे में जिन्होंने तोप या तलवार की जगह कलम चलाई और अपनी जान कुर्बान कर दी। इस सिलसिले में इलाहाबाद से 1922 से दीपावली से शुरू किया गया चाँद पत्रिका का प्रकाशन उल्लेखनीय है। इसकी शुरुआत करने वाले क्रांतिकारी विचारधारा के पत्रकार थे राम रिख सहगल।
कलम चलाने के अपराध में सजा ए मौत
चांद पर चर्चा से पहले आइये जानते हैं उन हुतात्माओं के बारे में जिन्हें कलम चलाने के अपराध में सजा ए मौत मिली। लखनऊ के एक बुजुर्ग मुस्लिम पत्रकार ने मुझे बताया था कि उनके दादाजी अखबार निकालते थे। अखबार का क्या था। हाथ से लिखा हुआ दो पन्ने का पर्चा था। क्योंकि उस दौर में छापा खाना था ही नहीं। अंग्रेज सिपाहियों ने उनको पकड़ा। अधिकारी के पास ले गए बताया हुजूर ये अखबार निकालता है। अंग्रेज अधिकारी ने पूछा कि कितनी प्रतियां निकालते हो। जवाब मिला पचास। अंग्रेज अधिकारी ने कहा ओ माई गॉड। तुम तो बहुत खतरनाक आदमी है। अगर एक गाँव में एक पढ़ने वाले आदमी ने पढ़ कर लोगों को तुम्हारा अखबार सुनाया तो तुम पचास गांव हमारे खिलाफ तैयार कर देगा। इसको फांसी दे दो। और उन्हें फांसी दे दी गई। इसी तरह से प्रसिद्ध नाटककार और लखनऊ दूरदर्शन के निदेशक रहे विलायत जाफरी के दादा को वैचारिक क्रांति करने के चलते तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया था।
सैकड़ों क्रांतिकारी फांसी पर लटकाए गए
कन्हैया लाल वाजपेयी गांव गांव जागरुकता लाने में ही अंग्रेजों द्वारा मौत के घाट उतार दिये गए थे। दरअसल 1857 के स्वाधीनता संग्राम के बाद अंग्रेज बहुत अधिक सशंकित हो उठे थे। और उन्होंने बहुत तेजी से दमन चक्र चलाया था। 1857 से 20वीं सदी के आरंभ तक अंग्रेजों ने असंख्य युवाओं और बुद्धिजीवी पत्रकार ये समाज में जागरुकता लाने वाले लोगों को चुन चुन कर साफ किया। बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र और संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश आदि जगहों पर सैकड़ों क्रांतिकारी फांसी पर लटकाए गए।
चांद ने अपना फांसी अंक प्रकाशित किया
जिस समय देश में फांसियों का दौर चल रहा था उसी समय उबलते माहौल में चांद ने अपना फांसी अंक प्रकाशित किया। जब लोग दीपावली के प्रकाश में हंसी खुशी और आनंद के वातावरण महसूस करते हैं उस समय अमावस की काली अंधेरी रात जैसा देश की हालत का दृश्य चांद के संपादक आचार्य चतुरसेन शास्त्री प्रस्तुत किया है।
चांद पर फांसी अंक अपनी सामग्री के लिए आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उस समय था इसे पढ़कर आज की पीढ़ी यह बेहतर ढंग से जान सकेगी कि देश की आजादी के लिए जिन साहसी वीरों ने अपने प्राण न्योछावर किए वह कैसे थे, उनके विचार कैसे थे और भविष्य को वह किस रूप में देखते थे। हालांकि चांद के इस अंक को पढ़कर सही-सही जानना मुश्किल है कि इसको लिखने वाले लोगों के यह वास्तविक नाम क्या हैं। चांद के इस फांसी अंक में फांसी पर चढ़ने वाले वीरों का विवरण दिया गया है, उनमें से कुछ रेखाचित्र सरदार भगत सिंह ने जेल की कालकोठरी से कर भेजा था। उन्होंने डॉक्टर मथुरा सिंह और बलवंत सिंह के छद्म नामों से भी लेख लिखें हैं। चांद में प्रकाशित बहुत सी सामग्री में नीचे जो नाम दिए गए हैं वह छद्म हैं।
चाँद के फांसी अंक की विषय सूची महत्वपूर्ण है। क्रम को सात भागों में इस प्रकार बांटा गया है :
- पन्द्रह कवितायें :— प्राणदण्ड (रामचरित उपाध्याय); फांसी (कुमार बी ए); मृत्यु में जीवन (विद्याभास्कर शुक्ल); अंतिम भाव (आनंदी प्रसाद श्रीवास्तव); सन्देश (सूर्यनाथ तकरु); रज्जुके (एक एम एस सी); प्रणय वध (अनाम); शहीद (प्रभात); फांसी की डोर (प्रो रामनारायण मिश्र); डायर (रसिकेश); मैना की क्षमापत्र-प्रतीक्षा (दुर्गादत्त त्रिपाठी); प्रश्नोत्तर (नवीन); भयंकर पाप (कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'); फांसी (एक राष्ट्रीय आत्मा); फांसी के तख्ते से (शोभाराम 'धेनुसेवक ')
- पांच कहानियां:— फांसी (विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक); प्राण बध (मूल विक्टर ह्यूगो; अनुवाद चतुरसेन शास्त्री); विद्रोही के चरणों में (जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'); जल्लाद (उग्र); फन्दा (आचार्य चतुरसेन शास्त्री)। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रेमचंद युग के तीनों महान लेखकों (कौशिक; उग्र और आचार्य) की ये कालजयी कहानियाँ प्रथम बार फाँसी अंक में ही प्रकाशित और चर्चित हुईं।
- बारह लेख :— प्राण दण्ड : प्राचीन भारतीय विचारकों का मत (आचार्य रामदेव एम ए); फाँसी की सज़ा (रायसाहब हरविलास जी शारदा); तांतिया भील और उसकी फाँसी (एक नीमाड़ी); फ्राँस की राज्यक्रान्ति के कुछ रक्तरंजित पृष्ठ (रघुवीर सिंह बी ए); ईसा के पवित्र नाम पर (संकलित); भारतीय दंडविधान और फाँसी (मनोहर सिंह); सन 57 में दिल्ली के लाल दिन (ख्वाज़ा हसन निज़ामी देहलवी); फाँसी के भिन्न तरीक़े (रमेश प्रसाद बी एस सी) सन 57 के कुछ संस्मरण (संकलित); फ़्रांस में स्त्रियों का प्राणदण्ड (त्रिलोचन पंत बी ए); बन्दा बहादुर का बलिदान (श्री मुक्त २२०); संस्कृत साहित्य में प्राण वध (जयदेव शर्मा विद्यालंकार)।
- चार इतिवृत :— स्कॉटलैंड की रानी मेरी का क़त्ल (प्रीतम सिंह); चार्ल्स का क़त्ल (राजेंद्रनाथ); महाराज नन्दकुमार को फाँसी (कल्याण सिंह); मृत्युंजय सुकरात (श्रीकृष्ण)।
- दो नाटक :— कानूनीमल की बहस (जे पी श्रीवास्तव); पिता अब्राहिम लिंकन का वध (संपादक)।
- हास्य व्यंग्य :— दूबेजी की चिट्ठी (विजयानंद दूबे)। दूबे जी के हास्य-व्यंग्य में फांसी पर ही बड़ी गहरी और मार्मिक चोट की गई है।
- विप्लव यज्ञ की आहुतियाँ :— पृष्ठ 244 से लेकर 322 तक में 50 से ऊपर ऐसे क्रांतिकारियों का ब्यौरा उनकी संक्षिप्त जीवनी सहित दिया गया है; जिन्हें ब्रिटिशराज में फाँसी दी गयी थी। कुछ के परिचय चित्र सहित मौज़ूद हैं। आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने लिखा है कि 325 पृष्ठ छापकर भी आधे से अधिक लेख तथा कवितायेँ प्रकाशित नहीं हो सकीं, जिनमे अनेकों विद्वानों के लेख भी देरी से आने के कारण शामिल हैं, इसका हमें वास्तव में बड़ा खेद है। पर निश्चय यह किया गया है कि यदि इस विशेषांक का हिन्दी संसार ने उचित सत्कार किया तो आगामी मई का चाँद भी फांसी अंक के नाम से ही एक दूसरा विशेषांक प्रकाशित किया जाये।
आचार्य द्वारा चाँद का "फांसी अंक" का सम्पादकीय भी पांच शीर्षकों के अंतर्गत बांटा गया है।
- दण्ड का निर्णय;
- अपराध का विकास
- कानून और उसका विकास
- क्रान्तिवाद
- फांसी।