25 जून 1975: इंदिरा गांधी ने इसी दिन थोपी थी इमरजेंसी, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था बड़ा झटका

भारत में 25 जून की तारीख को "ब्लैक डे" के नाम से याद किया जाता है क्योंकि इसी दिन साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल का ऐलान किया था। आज इमरजेंसी को 46 साल पूरे हो गए हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Pallavi Srivastava
Update:2021-06-25 11:22 IST

1975 Emergency In India:  देश के सियासी इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर देश में इसी दिन आपातकाल (Emergency) लगाने की घोषणा की गई थी। 25 जून 1975 से 23 मार्च 1977 तक की 21 महीने की अवधि को देश के राजनीतिक इतिहास में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है।

दरअसल 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले से इंदिरा गांधी को भारी झटका लगा था और यही फैसला देश में इमरजेंसी लगाने का बड़ा कारण बना। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने वह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली का दोषी ठहराते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया गया था। जस्टिस सिन्हा ने छह साल तक इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।

21 महीने (25 जून 1975 से 23 मार्च 1977) की अवधि का था आपातकाल pic(social media)

सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं मिली थी राहत

जस्टिस सिन्हा के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देश में सियासी भूचाल आ गया। उस समय इंदिरा गांधी सत्तारूढ़ कांग्रेस की सर्वशक्तिमान नेता थीं और किसी भी सूरत में दूसरे को सत्ता सौंपने को तैयार नहीं थीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच कई दिनों तक बैठक और विचार-विमर्श का दौर चला और आखिरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 23 जून, 1975 को हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन इस मामले की सुनवाई की और जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में हिस्सा तो ले सकती हैं मगर उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं रहेगा।

देश में इमरजेंसी लगाने की सिफारिश

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रॉय और कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं ने इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी लगाने का सुझाव दिया। इंदिरा सरकार की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी। आपातकाल लगाने के बाद 21 मई महीने की अवधि को आजादी के बाद के इतिहास में सबसे विवादित और अलोकतांत्रिक काल माना जाता है क्योंकि इस दौरान इंदिरा विरोधी सारे नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था।

राजनारायण को था जीत का भरोसा

दरअसल देश में इमरजेंसी लगाने की पटकथा इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने लिखी थी। 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत हासिल हुई थी। उस समय लोकसभा की 518 सीटों में से कांग्रेस 352 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा करती थीं और उन्होंने 1971 के चुनाव में भी इसी सीट से जीत हासिल की थी। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को एक लाख से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी।

1971 के लोकसभा चुनाव में राजनारायण ने भी रायबरेली में काफी मेहनत की थी और उन्हें अपने चुनावी जीत का पूरा भरोसा था। उन्हें अपनी जीत पर इतना ज्यादा भरोसा था कि उन्होंने नतीजों की घोषणा के पहले ही विजय जुलूस तक निकाल दिया था। नतीजों की घोषणा के समय उन्हें करारा झटका लगा और इंदिरा गांधी उन्हें हराने में कामयाब रहीं।

इंदिरा पर चुनाव में धांधली का आरोप

इंदिरा गांधी के चुनाव जीतने के बाद राजनारायण ने इस मसले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने अपनी याचिका में इंदिरा गांधी पर चुनावों में धांधली और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए। उनका कहना था कि इंदिरा गांधी ने गलत तरीके अपनाकर चुनाव में जीत हासिल की है। लिहाजा उनका चुनाव रद्द किया जाना चाहिए।

इस मामले की सुनवाई सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने की थी। उन्होंने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कोर्ट में तलब किया था। उनका यह आदेश काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री को कोर्ट में पेश होना पड़ा। इंदिरा गांधी 18 मार्च, 1975 को अपना बयान दर्ज कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहुंची थीं और इस दौरान उनसे करीब पांच घंटे तक जिरह की गई थी।

हाईकोर्ट के फैसले से लगा बड़ा झटका

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और जिरह करने के बाद आखिरकार 12 जून 1975 का वह ऐतिहासिक दिन आया जिस दिन जस्टिस सिन्हा को इस मामले में फैसला सुनाना था। उस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट का परिसर खचाखच भरा हुआ था और कहीं भी पैर रखने तक की जगह नहीं थी। जस्टिस सिन्हा की कोर्ट नंबर 24 में तो जाने के लिए बकायदा हाईकोर्ट की ओर से पास तक जारी किया गया था।

जस्टिस सिन्हा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया और उनके 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी बैन लगा दिया। किसी को भी हाईकोर्ट के ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं थी। हाईकोर्ट का फैसला आते ही कांग्रेस के खेमे में सन्नाटा पसर गया।

आपातकाल के समय की तस्वीर (फाइल फोटो) pic(social media)

रामलीला मैदान में जेपी की ऐतिहासिक रैली

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही विपक्षी दलों के नेताओं ने इंदिरा गांधी पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा दिया था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर विपक्ष के तेवर और तीखे हो गए। 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष की ओर से ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया गया जिसे संबोधित करने के लिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी मंच पर मौजूद थे। अपने संबोधन के दौरान लोकनायक ने इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने की मांग की और प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता पढ़ते हुए नारा दिया- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। विपक्ष के तीखे तेवर से कांग्रेस के खेमे में हड़कंप मच गया।

कुर्सी बचाने के लिए देश पर थोपी इमरजेंसी

रामलीला मैदान की इस रैली के जरिए विपक्षी नेता देश में बड़ा सियासी संदेश देने में कामयाब हुए और इंदिरा गांधी जबर्दस्त दबाव में आ गई। जबर्दस्त तनाव के दौर से गुजर रहीं इंदिरा गांधी रैली खत्म होने के बाद राष्ट्रपति भवन पहुंच गईं। उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को देश में आपातकाल लगाने का प्रस्ताव सौंपा। इंदिरा सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत देश में आपातकाल लगाने की मंजूरी दे दी।

26 जून, 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने रेडियो पर देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की। आपातकाल की घोषणा के बाद विपक्ष के आंदोलन को जोर जबर्दस्ती से कुचलने की पूरी चेष्टा की गई और लोकनायक जयप्रकाश नारायण समय सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

इमरजेंसी के बाद चुनाव में मिली हार

आपातकाल के उस दौर को आज भी देश के इतिहास में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। करीब 21 महीने की अवधि के बाद देश में 1977 में आम चुनाव कराए गए थे, लेकिन इस चुनाव में इंदिरा गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस इस चुनाव में सिर्फ 153 सीटें जीत सकी जबकि जनता पार्टी ने बहुमत हासिल किया।

इसके बाद मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार बनी। हालांकि यह सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी और 1980 में देश में फिर आम चुनाव हुए जिसमें जीत हासिल करके इंदिरा गांधी की एक बार फिर सत्ता में वापसी हुई।

Tags:    

Similar News