Price Rise: ग्लोबल डिमांड बढ़ी, गेहूं-आटे के दाम ऊंचाई पर

Global Demand: गेहूं के आटे की कीमतें बढ़ रही हैं क्योंकि गेहूं का उत्पादन और स्टॉक दोनों गिर गया है और देश के बाहर मांग बढ़ी है।

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-05-09 12:26 IST

गेहूं-आटे की बढ़ी मांग (फोटो-सोशल मीडिया)

Global Demand: गेहूं के आटे की कीमतें (Wheat flour price) बढ़ रही हैं क्योंकि गेहूं का उत्पादन (production of wheat) और स्टॉक दोनों गिर गया है और देश के बाहर मांग बढ़ी है। यही वजह है कि आटे का अखिल भारतीय मासिक औसत खुदरा मूल्य अप्रैल में 32.38 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो जनवरी 2010 के बाद से सबसे अधिक है।

राज्यों के नागरिक आपूर्ति विभागों द्वारा केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को रिपोर्ट किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि शनिवार (7 मई) को गेहूं के आटे का अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 32.78 रुपये प्रति किलोग्राम था जो एक साल पहले की कीमत से 9.15 प्रतिशत अधिक ( 30.03 रुपये प्रति किलो) है।

गेहूं और आटे दोनों की रसद लागत में इजाफा

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिन 156 केंद्रों के लिए डेटा उपलब्ध है, उनमें पोर्ट ब्लेयर में सबसे अधिक (59 रुपये प्रति किलोग्राम) और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में सबसे कम (22 रुपये प्रति किलोग्राम) की कीमत थी। चार महानगरों में, औसत गेहूं के आटे का खुदरा मूल्य मुंबई में सबसे अधिक (49 रुपये प्रति किलोग्राम) था, इसके बाद चेन्नई (34 रुपये प्रति किलोग्राम), कोलकाता (29 रुपये प्रति किलोग्राम) और दिल्ली (27 रुपये प्रति किलोग्राम) का स्थान है।

आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष की शुरुआत से गेहूं के आटे की अखिल भारतीय औसत दैनिक खुदरा कीमतों में 1 जनवरी से 5.81 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अप्रैल में रिकॉर्ड ऊंचाई अप्रैल 2021 में दर्ज 31 रुपये प्रति किलोग्राम के औसत खुदरा मूल्य से काफी अधिक थी।

सूत्रों ने कहा कि आटे की कीमतों में लगातार वृद्धि यूक्रेन में युद्ध के कारण उत्पादन में गिरावट के बीच गेहूं की कीमतों में वृद्धि और भारतीय गेहूं की उच्च विदेशी मांग के कारण हुई है। डीजल की घरेलू कीमत ने भी गेहूं और आटे दोनों की रसद लागत में इजाफा किया है।

गैर-पीडीएस गेहूं व आटा के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति मार्च 2022 में 7.77 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो मार्च 2017 के बाद सबसे अधिक थी। उस समय यह 7.62 प्रतिशत दर्ज की गई थी।

गेहूं के आटे के साथ, बेकरी ब्रेड की कीमतों में भी हाल के महीनों में तेज वृद्धि दर्ज की गई है। इस साल मार्च में बेकरी ब्रेड के लिए खुदरा मुद्रास्फीति 8.39 प्रतिशत थी, जो जनवरी 2015 के बाद से सबसे अधिक है। आटा और ब्रेड की कीमतें ऐसे समय में बढ़ रही हैं जब देश में गेहूं के उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है।

सरकार ने 2021-22 के लिए 110 मिलियन टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा था, जो 2020-21 में अनुमानित 109.59 मिलियन टन से अधिक है। दरअसल, इस साल 16 फरवरी को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान में 2021-22 के लिए कुल गेहूं उत्पादन 111.32 मिलियन टन आंका गया था।

मार्च में तापमान में अचानक हुई वृद्धि ने रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन की सरकार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। आशंका है कि 2021-22 के लिए कुल गेहूं उत्पादन लक्ष्य से कम हो सकता है। केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने पिछले सप्ताह कहा था कि गेहूं का उत्पादन करीब 105 मिलियन टन होने की उम्मीद है।

खाद्य मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में गेहूं की पैदावार में गिरावट का एक कारण गर्मी की जल्द शुरुआत को बताया गया है। उत्पादन में गिरावट और निजी खरीदारों की अधिक मांग के कारण खुले बाजार में गेहूं की कीमतें सरकार द्वारा मौजूदा रबी विपणन सत्र के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,015 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर मँडरा रही हैं।

 न्यूनतम स्टॉकिंग मानदंड

इस स्थिति में, सरकारी एजेंसियों द्वारा सार्वजनिक खरीद लक्ष्य से कम होने की आशंका है। खाद्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, मौजूदा रबी विपणन सत्र के दौरान गेहूं की खरीद 195 लाख टन होने की संभावना है, जो सरकार के 444 लाख टन के प्रारंभिक खरीद लक्ष्य और पिछले साल की 433 लाख टन की वास्तविक खरीद से काफी कम है। एफसीआई पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार 28 अप्रैल तक 156.92 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है।

खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022-23 की शुरुआत में गेहूं का स्टॉक 190 लाख टन था, जो चालू सीजन में 195 लाख टन की खरीद के साथ बढ़कर 385 लाख टन होने की उम्मीद है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के तहत वितरण के लिए आवंटन तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को ध्यान में रखते हुए 2022-23 का सरकारी स्टॉक में 80 लाख टन गेहूं के साथ समाप्त होने की उम्मीद है, जो 1 अप्रैल को 75 लाख टन के न्यूनतम स्टॉकिंग मानदंड से थोड़ा ही अधिक है।

कम ओपनिंग स्टॉक और कम खरीद के मद्देनजर, सरकार ने पीएमजीकेएवाई के तहत राज्यों के आवंटन को संशोधित कर दिया है इस योजना के तहत कवर किए गए व्यक्तिगत लाभार्थियों को प्रति माह 5 किलो खाद्यान्न मुफ्त प्रदान किया जा रहा है।

संशोधन के बाद, पीएमजीकेएवाई के तहत गेहूं आवंटन अब 18.21 लाख टन प्रति माह से घटकर 7.12 लाख टन प्रति माह हो जाएगा, जिससे सरकार पीएमजीकेएवाई के शेष पांच महीनों के दौरान लगभग 55 लाख टन गेहूं बचाने में सक्षम होगी। ये योजना सितंबर तक चलने वाली है।

जहां खाद्य सुरक्षा और गरीब कल्याण अन्न योजना ने लगभग 80 करोड़ लाभार्थियों को राहत प्रदान की है, वहीं गरीबी की लाइन के ठीक ऊपर रहने वाले लोगों की एक बड़ी संख्या केंद्र या राज्यों की किसी भी खाद्यान्न योजना के अंतर्गत नहीं आती है। आटा और ब्रेड की बढ़ती कीमतों से लोगों के इस समूह को सबसे ज्यादा नुकसान होने की संभावना है।

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