मदर टेरेसाः एक संत और नाइटेंगल, क्या इस पर किसी को शक है
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को एक अलबानियन परिवार में नार्थ मैसीडोनिया के स्कोपजे में हुआ था। मदर मेरी टेरेसा को कैथोलिक चर्च ने सेंट टेरेसा ऑफ कलकत्ता की उपाधि दी थी।
लखनऊ: भारत में मदर टेरेसा को उनके मानवतापूर्ण कार्यों के लिए बहुत आदर की नजर से देखा जाता है। उन्हें पीड़ितों और गरीबों की कलकत्ता और उसके बाहर निस्वार्थ सेवा के लिए 1979 में नोबल शांति पुरस्कार भी दिया गया था। मदर टेरेसा को 20वीं सदी की प्लोरेंस नाइटिंगेल भी कहा जाता है।
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को एक अलबानियन परिवार में नार्थ मैसीडोनिया के स्कोपजे में हुआ था। मदर मेरी टेरेसा को कैथोलिक चर्च ने सेंट टेरेसा ऑफ कलकत्ता की उपाधि दी थी। मदर टेरेसा का पूरा नाम एंजेजे गोंक्सी बोजेक्सी था। 5 सितंबर को कोलकात में उनका निधन हुआ। वह अपने पीछे दयालुता और मानवता की एक ऐसी विरासत छोड़ गईं जिसका तमाम लोग अनुकरण करते हैं। वेटिकन सिटी में एक समारोह में पोप फ्रांसिस ने 5 सितंबर 2016 को उन्हें सेंट टेरेसा ऑफ कोलकाता घोषित किया था।
मदर टेरेसा के पिता का निधन तभी हो गया था जब वह आठ वर्ष की थीं। इसी के साथ उनके परिवार ने आर्थिक सुरक्षा खो दी थी। जब वह 18 साल की हुईं तो उन्होंने आयरलैंड में राथफर्नहाम में सिस्टर्स ऑफ लारेटो को ज्वाइन कर लिया। इसके बाद वह कभी अपने परिवार से नहीं मिलीं। एक साल बाद वह सिस्टर्स ऑफ लारेटो कान्वेंट दार्जिलिंग भारत में भेज दी गईं। 1931 में जब वह नन बनीं तो उन्होंने आस्ट्रेलिया और स्पेन के संरक्षक संतों लीसिक्स के संत थेरेसी और अविला के सेंट टेरेसा से प्रभावित होकर अपना नाम टेरेसा रख लिया।
कलकत्ता के सेंट मेरी हाईस्कूल में उन्होंने 15 साल तक इतिहास और भूगोल पढ़ाया लेकिन गरीब लोगों के दुख देखकर उन्हे गहरी पीड़ा हुई। वह कहती थीं कि मैंने सब कुछ त्यागने और गरीबों में सबसे गरीब लोगों के बीच उनकी सेवा करने का मसीह का अनुसरण करने का आह्वान सुना। 1948 में उन्होंने नन का लबादा उतारकर गरीबों की सेवा की जीवनशैली को अपना लिया।
1950 में, उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जो "भूखे, नंगे, बेघर, अपंग, अंधे, कुष्ठरोगियों, उन सभी लोगों की सेवा करने के लिए समर्पित है, जो पूरे समाज में अवांछित, अप्रभावित महसूस करते हैं। समाज के लिए एक बोझ बन गए हैं और हर कोई इससे दूर रहता है।"
मदर टेरेसा को 1962 में पद्मश्री और 1971 में पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार मिला। उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। हालांकि, उन्होंने नोबेल सम्मान भोज से इनकार कर दिया और 192,000 अमरीकी डालर की पुरस्कार राशि का उपयोग भारत में गरीबों की मदद में करने का अनुरोध किया।
मैला ढोने वालों के सम्मान में मदर टेरेसा ने नीली धारियों और सैंडल के साथ प्रतिष्ठित सफेद साड़ी पहनी। उन्हें 2003 में संत घोषित किया गया था। उनका आधिकारिक शीर्षक अब 'कलकत्ता की संत टेरेसा' है। मदर टेरेसा की जन्मशती के उपलक्ष्य में केंद्र सरकार ने 5 रुपये का सिक्का जारी किया था।
एक तरफ मदर टेरेसा का एक ऐसा व्यक्तित्व है वहीं दूसरी तरफ फ्रांस के शोध पत्र स्टडीज इन रिलिजन जर्नल के एक पेपर में, मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के तीन प्रोफेसरों ने यह दावा किया कि दिवंगत मदर टेरेसा प्रशंसा के योग्य नहीं हैं, उन्हें केवल संत रहने दिया जाए।
इस पेपर ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। खासकर भारत में मीडिया का काफी ध्यान आकर्षित किया, शोधपत्र में तर्क दिया गया कि मदर टेरेसा की एक परेशान करने वाली विश्वदृष्टि थी जिसने गरीबी को रोमांटिसाइज किया और आर्थिक रूप से वंचितों को अपनी परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करने से हतोत्साहित किया। वह राजनीतिक रूप से भोली थी यह बात उनके- हैती के जीन-क्लाउड "बेबी डॉक" डुवेलियर जैसे तानाशाहों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने और अल्बानिया के कम्युनिस्ट शासक एनवर होक्सा की कब्र पर माल्यार्पण करने से साबित होती है।। इस पेपर में उनके मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित सेवाओं में चौंकाने वाली खराब चिकित्सा स्थितियों का उल्लेख करते हुए आरोप लगाया गया कि विदेशों से भेजे गए धन का पीड़ितों की सेवा की जगह वेटिकन के लिए उपयोग किया गया। फिर टेरेसा के चमत्कार के सवाल पर कहा गया कि यह एक संदिग्ध "चमत्कार" पर आधारित है जिस पर रोगी का अपना पति भी विश्वास नहीं करता है। इस लिए टेरेसा को संत बनाने के लिए एक और चमत्कार की आवश्यकता है।
पेपर के लेखकों में से एक, यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ साइकोएजुकेशन के सर्ज लारिवी का कहना है कि वह और उनके सह-लेखक नैतिकता पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में, जब इस पर चर्चा कर रहे थे कि टेरेसा के काम में शुद्ध परोपकारिता मौजूद है या नहीं।" टेरेसा के काम के बारे में और अधिक पढ़ते हुए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि "यदि प्रासंगिक तथ्य ज्ञात थे, तो अभी तक किसी ने भी उनका सही ढंग से विश्लेषण नहीं किया है।