नेता जी! मान जाइए वर्ना आपके फ्री चुनावी वादे देश को श्रीलंका, ग्रीस बना देंगे, जानिए कैसे
Politicians Free Election Promises: अगर नेताओं ने फ्री चुनावी वादे करने बंद नहीं किए तो विश्वगुरु भारत के कुछ राज्यों की आर्थिक दशा स्थिति श्रीलंका या ग्रीस जैसी हो सकती है।
Politicians Free Election Promises: श्रीलंका के हालतों ने दुनिया भर के देशों और उनकी सरकारों के टेंशन टाईट कर दी है। हम ठहरे पड़ोसी तो हमारी चिंता एक अलग लेबल पर है। क्यों है! यही तो हम बताने प्रकट हुए हैं।
विश्वगुरु भारत के कुछ राज्यों की आर्थिक दशा स्थिति श्रीलंका या ग्रीस जैसी हो सकती है… ये हम कतई नहीं कह रहे..और ना ही हमारी कुछ ऐसी मंशा है। हम तो चाहते हैं कि देश तरक्की करे। रूपया डॉलर से सैकड़ों कदम आगे निकल जाए लेकिन टेंशन वाली बात ये है कि 2 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी के साथ देश के टॉप ब्यूरोक्रैट्स की मीटिंग थी। मीटिंग में जो बात हुई वो ही खतरे की घंटी नहीं नहीं...बड़ा वाला घंटा है!
क्या है टेंशन?
मीटिंग में चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के मुफ्त चुनावी वादे और लोकलुभावन योजना पर काफी बात हुई। कहा गया कि इसे नहीं रोका गया तो कई राज्यों की आर्थिक दशा बदतर हो सकती है। मीटिंग में मौजूद बड़के अधिकारियों ने पीएम साहेब से डरते-डरते कहा कि चुनावी वादों के कारण ये योजनाएं आर्थिक रूप से बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं हैं (डरे इसलिए थे क्योंकि इसमें बीजेपी शासित राज्य भी हैं)। ऐसे चुनावी वादे किए जाते रहे तो कुछ राज्यों की आर्थिक हालत श्रीलंका या ग्रीस की तरह बदहाल हो सकती है। मीटिंग में मौजूद अधिकारियों ने पीएम से मांग की है कि पार्टियों को समझाया जाए कि वो चुनावी और सियासी वादे राजकोष की हालत को देखने के बाद ही करें।
ये राज्य हैं टेंशन का बड़ा कारण?
पंजाब विधानसभा चुनाव के समय दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने 200 यूनिट फ्री बिजली वाले वादे के बाद कहा था.. पैसा बहुत है जी! लेकिन पैसा तो है नहीं। बताते हैं आपको पूरा गुणा गणित...
पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा। ये वो राज्य हैं जहां लाखों का कर्जा है। इनमें से कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है।
शुरू करते हैं पंजाब से। इस राज्य का का जितना जीडीपी है उसका तक़रीबन 53.3 प्रतिशत हिस्सा कर्ज है। राजस्थान का अनुपात 39.8 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल का 38.8 प्रतिशत, केरल का 38.3 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 37.6 प्रतिशत है। आपकी जानकारी के लिए बता दें, इन सभी राज्यों को राजस्व घाटे का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है।
इस लिस्ट में महाराष्ट्र और गुजरात भी शामिल हैं। गुजरात का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 प्रतिशत, महाराष्ट्र का 20 प्रतिशत है।
कर्ज में डूब रहा यूपी
वर्ष 2017 में, जिस समय सीएम योगी आदित्याथ ने यूपी की गद्दी संभाली, सूबे पर 4,73,348।2 करोड़ का कर्ज था। 2018 में बढ़कर 5.17 लाख करोड़, 2019 में 5.67 लाख करोड़। 2020 में 5.49 लाख करोड़ हो गया। 2021 के संशोधित पूर्वानुमान में कर्ज 6.0 लाख करोड़ की सीमा पार कर गया।
वहीं 2022 के बजट पूर्वानुमान में 6 लाख 53 हजार 307.5 करोड़ का अनुमान है।
पंजाब का हाल जानिए
कैप्टन अमरिंदर सिंह 2017 में पंजाब की सत्ता पर काबिज हुए थे। 2017 में पंजाब पर 1.82 लाख करोड़ का कर्ज था। 2018 में यह कर्ज 1.95 लाख करोड़।
2019 में 2.11 लाख करोड़। 2020 में 2.29 लाख करोड़। 2021 के संशोधित पूर्वानुमान में कर्ज 2.59 लाख करोड़ का अनुमान। 2022 के बजट में 2 लाख 82 हजार 864.6 करोड़ का अनुमान है।
देवभूमि उत्तराखंड पर कितना कर्ज
2017 में कुल कर्ज 44.50 हजार करोड़ था। 2018 में 53.07 हजार करोड़। 2019 में 59.38 हजार करोड़। 2020 में 67.54 हजार करोड़। 2021 में 75.35 हजार करोड़। 2022 में 84.288 हजार करोड़ का अनुमान है।
गोवा भी अछुता नहीं
2017 में 16,903 करोड़ का कर्ज था। 2022 में बढ़कर 28,509 करोड़ होने का अनुमान है।
इतना पढ़ने के बाद आप समझ गए होंगे कि हमारे नेता हमें कुछ भी फ्री या ऐसा नहीं दे रहे जो हमारे लिए झामफाड़ साबित हो। बल्कि ये हमें या ऐसे कहें कि हमारी आने वाली कई नस्लों को कर्ज में डुबो रहा है। हमारी सरकारें और नेता समय रहते नहीं सुधरे तो भविष्य पड़ोस में दिख रहा है न... बाकी आप समझदार हैं! हैं ना!
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