Sedition Law: देशद्रोह की धारा 124 ए, आखिर इसमें है क्या

Sedition Law: केंद्र सरकार जब तक राजद्रोह से संबंधित धारा पर पुनर्विचार नहीं कर लेती है तब तक ये धारा निलंबित रखी जायेगी।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update:2022-05-11 15:15 IST

क्या है धारा 124 ए (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Sedition Law: केंद्र सरकार जब तक राजद्रोह से संबंधित धारा पर पुनर्विचार नहीं कर लेती है तब तक ये धारा निलंबित रखी जायेगी। राजद्रोह से संबंधित दफा 124 ए (124A IPC) आखिर है क्या, जानते हैं इसके बारे में।

124ए राजद्रोह

- भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ जो कोई भी, शब्दों द्वारा, या तो बोले गए या लिखित, या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या अन्यथा, घृणा या अवमानना ​​में लाने का प्रयास करता है, या उत्तेजित करता है या असंतोष को उत्तेजित करने का प्रयास करता है, उसे आजीवन कारावास, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है, या तीन वर्ष तक कारावास और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण 1: "असंतुष्टता" की अभिव्यक्ति में विश्वासघात और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल हैं।

स्पष्टीकरण 2: घृणा, अवमानना या अप्रसन्नता को भड़काने के प्रयास के बिना, वैध तरीकों से सरकार के उपायों में बदलाव के प्रयास संबंधी टिप्पणियां, इस धारा के तहत अपराध का गठन नहीं करती हैं।

स्पष्टीकरण 3: घृणा, अवमानना या अप्रसन्नता को भड़काने के प्रयास के बिना सरकार की प्रशासनिक या अन्य कार्रवाई की अस्वीकृति व्यक्त करने वाली टिप्पणियां इस धारा के तहत अपराध नहीं बनती हैं।

अपराध का वर्गीकरण

सजा- आजीवन कारावास और जुर्माना, या 3 साल के लिए कारावास और/या जुर्माना। ये संज्ञेय तथा गैर-जमानती है। तथा सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय केस होंगे। ये मामले गैर-शमनीय हैं, यानी जुर्माना भरने से ही अपराध का शमन नहीं होगा।

अब सरकार ने क्या कहा

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में प्रार्थना की है कि न्यायालय एक बार फिर से आक्षेपित धारा की वैधता की जांच करने के लिए समय न लगाए और प्रतीक्षा करने की कृपा करे। सरकार ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि जब तक सरकार द्वारा मामले की समीक्षा नहीं की जाती, तब तक वह इस मामले को नहीं उठाए।

नए हलफनामे में, केंद्र ने कहा - आजादी का अमृत महोत्सव (स्वतंत्रता के 75 वर्ष) की भावना और पीएम नरेंद्र मोदी की दृष्टि में, भारत सरकार ने धारा 124ए, राजद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है।

"बार एंड बेंच" ने हलफनामे के हवाले से बताया है कि - "भारत सरकार देशद्रोह के विषय पर व्यक्त किए जा रहे विभिन्न विचारों से पूरी तरह से अवगत है और नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की चिंताओं पर भी विचार कर रही है। वह संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने और संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस महान राष्ट्र ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के प्रावधानों की फिर से जांच करने और उन पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच के समक्ष ही किया जा सकता है।

इसके पहले बीते शनिवार को, केंद्र सरकार ने देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा था। एक लिखित प्रस्तुतीकरण में, केंद्र ने मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ को बताया था कि केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य में फैसला, जिसने कानून को बरकरार रखा था, बाध्यकारी था।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा प्रस्तुत लिखित नोट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के केदार नाथ सिंह के फैसले, जिसने धारा 124 ए की वैधता को बरकरार रखा था, को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा प्रदान किया गया था। इसलिए, तीन-न्यायाधीशों की पीठ देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को कानूनी चुनौती नहीं सुन सकती है।

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