Brutal Murders in India 2022: क्यों बढ़ रही हैं टुकड़े टुकड़े कर देने की घटनाएं, सोसायटी के लिए खतरे की घंटी
Brutal Murders in India: समाज में निर्ममता का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। और दिल्ली में श्रद्धा हत्याकांड में टुकड़े टुकड़े किये जाने के बाद इस तरह की घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है।
Brutal Murders in India 2022: समाज में निर्ममता का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। और दिल्ली में श्रद्धा हत्याकांड (Shraddha murder case in Delhi) में टुकड़े टुकड़े किये जाने के बाद इस तरह की घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुई घटनाएं इसके ताजा उदाहरण। न्यूजट्रैक ने इस बारे मनोचिकित्सकों की राय ली। उनका कहना है कि पहली बात तो ये कि ऐसा नहीं है इस तरह की घटनाएं समाज में अचानक से होने लगी हैं। पहले भी इस तरह की घटनाएं होती थीं और आज भी हो रही हैं। लेकिन फर्क ये आया है कि आज मीडिया का अटेंशन इस तरह की घटनाओं में बढ़ गया है। जिसके चलते इनकी बाढ़ सी दिखायी दे रही है। हालांकि इस तरह की घटनाओं का बढ़ना हमारी सामाजिक सभ्यता (social etiquette) के लिए खतरे की घंटी है।
मनोचिकित्सक डॉ अजय तिवारी का कहना है कि यह एक तरह का होमीसाइड है जो कि सप्रेशन ऑफ थॉट्स का नतीजा है। वह कहते हैं कि ये सही है कि समाज में दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है।
कब होती है हत्या
यहां ये समझना जरूरी है कि हत्या तब होती है जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को मारता है। एक मानव वध के लिए केवल एक स्वैच्छिक कार्य या चूक की आवश्यकता होती है, जो दूसरे की मृत्यु का कारण बनती है, और इस प्रकार एक मानव वध आकस्मिक, लापरवाही, या लापरवाहीपूर्ण कार्यों का नतीजा हो सकता है, भले ही नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा न हो।
वह कहते हैं कि हालांकि मानव वधों को अक्सर मानव समाजों में बहुत अलग तरीके से देखा जाता है; कुछ को अपराध माना जाता है, जबकि अन्य को कानूनी प्रणाली द्वारा अनुमति या आदेश भी दिया जाता है। कई बार इनमें मानव वध करने वाला व्यक्ति दूसरे को मारकर खुद ही जान दे देता है या देने की कोशिश करता है।
मनोचिकित्सकों का कहना है कई बार ये साबित करने का प्रयास किया जाता है कि मानसिक विकार के कारण हुए मानव वध के लिए इस कार्य को करने वाला आपराधिक रूप से जिम्मेदार नहीं हैं। सजा सुनाते समय अक्सर मानसिक स्वास्थ्य और विकास को ध्यान में रखा जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, मौत की सजा को बौद्धिक अक्षमता वाले सजायाफ्ता हत्यारों पर लागू नहीं किया जा सकता है।
मनोवैज्ञानिक कारण
सप्रेशन ऑफ थाट्स जिसे विचार दमन कहते हैं। एक मनोवैज्ञानिक रक्षा तंत्र है। यह एक प्रकार की विस्मृति है जिसमें एक व्यक्ति जानबूझकर किसी विशेष विचार के बारे में सोचना बंद करने का प्रयास करता है। जो कि अक्सर जुनूनी-बाध्यकारी विकार (ओसीडी) से जुड़ा होता है। ओसीडी तब होता है जब एक व्यक्ति बार-बार (आमतौर पर असफल) परेशान करने वाले विचारों को रोकने या "बेअसर" करने का प्रयास करेगा। इसे स्मृति निषेध का एक कारण भी माना जाता है। सोच का दमन मानसिक और व्यवहारिक दोनों स्तरों के लिए प्रासंगिक है, संभवतः विडंबनापूर्ण प्रभावों के लिए अग्रणी है जो इरादे के विपरीत असर दिखाता है।
जब कोई व्यक्ति उच्च संज्ञानात्मक भार के तहत विचारों को दबाने की कोशिश करता है, तो उन विचारों की आवृत्ति बढ़ जाती है और पहले से अधिक सुलभ हो जाती है। साक्ष्य से पता चलता है कि स्व-निगरानी उच्च होने पर लोग अपने विचारों को व्यवहार में अनुवादित होने से रोक सकते हैं; हालांकि यह स्वत: व्यवहार पर लागू नहीं होता है, और इसका परिणाम अव्यक्त, अचेतन कार्यों में हो सकता है। जिसका नतीजा भयावह रूप में सामने आ सकता है।