UP में धड़ल्ले से चल रहा फर्जी स्कूलों का गोरखधंधा, खामोश बैठी योगी सरकार

Update: 2017-09-02 07:00 GMT
fake board schools in uttar pradesh without government permission

सुधांशु सक्सेना

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनते ही प्रदेश के शिक्षा विभाग के क्रियाकलापों में सुधार और गुणवत्तापरक शिक्षा की आस जगी थी, लेकिन योगी सरकार को उसके अधिकारी ही फेल कर दे रहे हैं। पूरे प्रदेश में बिना मान्यता के चल रहे फर्जी स्कूलों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। आलम यह है कि खुद राजधानी में सैकड़ों फर्जी स्कूल संचालित हो रहे हैं। इसमें नर्सरी से लेकर कक्षा 12 तक के बच्चों को शिक्षा दी जा रही है और कोई नहीं जानता कि इन बच्चों के बोर्ड के फार्म कहां से भरे जा रहे हैं। शिक्षा विभाग के सूत्रों की मानें तो कई प्रभावशाली लोग शिक्षा के इस गोरखधंधे में शामिल हैं। यही कारण है कि बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग सब कुछ जानकर भी अनजान बने हुए हैं। जब ऊपर से कार्रवाई का निर्देश आता है तो एकाध स्कूलों पर छापा मारकर खानापूर्ति करके उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भेज दी जाती है। कुछ दिन बाद शिक्षा की ये दुकानें फिर सज जाती हैं। प्रदेश में ऐसे बेलगाम पनप रहे फर्जी बेसिक और माध्यमिक स्कूलों पर अंकुश लगा पाने में विभाग अक्षम साबित हो रहा है।

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फर्जी बोर्ड ने हजारों को बांट दी मार्कशीट

प्रदेश की राजधानी में फर्जी स्कूलों से लेकर फर्जी बोर्ड तक की भरमार है, लेकिन शिक्षा विभाग कुंभकरणी नींद सो रहा है। राजधानी के फरीदी नगर एरिया में उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालय शिक्षा बोर्ड नाम से संचालित एक फर्जी शिक्षा बोर्ड ने इसी वर्ष 12 हजार छात्र-छात्राओं को 10वीं और 12वीं की मार्कशीट बांट दी। जब छात्र-छात्राओं ने अपनी आगे की शिक्षा के लिए अन्य उच्च शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आवेदन किया और इनके प्रमाण पत्रों की जांच हुई तो फर्जी बोर्ड और फर्जी मार्कशीटों का खुलासा हुआ। छात्रों के हंगामा करने पर मौके पर शिक्षा विभाग के अधिकारी पहुंचे तो उन्होंने इसके संचालकों पर कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिलाया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इसके अलावा इस बोर्ड से मान्यता प्राप्त राजधानी के करीब तीन दर्जन स्कूलों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।

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दो कमरों में चार फर्जी बोर्ड

माध्यमिक शिक्षा विभाग के सूत्रों ने बताया कि फरीदी नगर में पकड़ा गया फर्जी बोर्ड उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालय शिक्षा बोर्ड पहले दो कमरों में संचालित होता था। वर्ष 2008 में प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालय परिषद अधिनियम पारित कर एक मुक्त विद्यालय गठित करने की बात कही,लेकिन बाद किन्हीं कारणों वश इस मुक्त विद्यालय परिषद का गठन नहीं हुआ। फिर भी वर्ष 2013 में उसी नाम का प्रयोग कर इस फर्जी बोर्ड का राजधानी के जानकीपुरम एरिया के सेक्टर सी स्थित डीएस कालोनी में दो कमरों में गठन कर बड़े पैमाने पर खेल शुरू कर दिया गया। इतना ही नहीं इस बोर्ड के अलावा उन्हीं दो कमरों में व्यावसायिक शिक्षण एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तर प्रदेश, बोर्ड ऑफ मेडिकल हेल्थ एंड रिसर्च, बोर्ड ऑफ अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजूकेशन, दिल्ली के नाम सामने आए हैं। हालांकि इनमें से तीन बोर्ड को बंद कर वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालय शिक्षा बोर्ड को फरीदीनगर में एक ऑफिस खोलकर वहां स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद बड़े पैमाने पर खेल शुरू हुआ। शिक्षा विभाग के सूत्रों के मुताबिक इस फर्जी बोर्ड ने मेरठ, हरदोई, बस्ती, मुजफ्फरनगर, कानपुर, इलाहाबाद, आजमगढ़, शामली, देवरिया, फैजाबाद, गोंडा, बागपत, रायबरेली, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी और यहां तक कि बिहार के कई जनपदों के स्कूलों को मान्यता दे रखी है। यह सारा खेल पिछले काफी समय से चल रहा था, लेकिन शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों को इसकी भनक तक नहीं लगी।

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केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की तर्ज पर शुरू किए गए इस फर्जी बोर्ड का नाम उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालय शिक्षा बोर्ड रखा गया और मान्यता बांटने के नाम पर करोड़ों रुपये डकारे गए। इतना ही नहीं इस फर्जी बोर्ड की ओर से दी जाने वाली मार्कशीट यूपी बोर्ड की मार्कशीट से एकदम मेल खाती है। मार्कशीट पर बाकायदा छात्रों का विवरण, फोटो के अलावा यूपी सरकार का लोगो भी लगा हुआ है। इस फर्जी बोर्ड ने ओपन बेसिक एजूकेशन के साथ ही डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजूकेशन तक की परीक्षाएं कराकर फर्जी डिग्री बांट दी। इस फर्जी बोर्ड का संचालन करने वाले आफिस को तो बंद कर दिया गया, लेकिन जिम्मेदारों ने इस फर्जी बोर्ड से मान्यता लेने वाले स्कूलों के बारे में पड़ताल करना मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में प्रदेश के हजारों छात्र-छात्राओं का भविष्य दांव पर लगा हुआ है और कोई भी इस बोर्ड से मान्यता पाए स्कूल का आसानी से शिकार बन सकता है।

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प्रदेश में तीन हजार फर्जी स्कूलों का संचालन

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के संरक्षक डॉ.आर.पी.मिश्र ने बताया कि माध्यमिक और बेसिक शिक्षा विभाग की मिलीभगत से प्रदेश में करीब तीन हजार स्कूल फर्जी तरीके से संचालित हो रहे हैं। लखनऊ में करीब 110, बागपत में 200, सुल्तानपुर में 306, रामपुर में 300, कानपुर में 800, कानपुर देहात में 600, मेरठ में 500 स्कूलों को नोटिस जारी की गई है, लेकिन किसी ने नोटिस का जवाब नहीं दिया है। इस साल भी सबने एडमिशन लिए हैं। ऐसे में विभागीय अधिकारियों की मंशा साफ है। कोई कुछ करना नहीं चाहता है।

जिम्मेदार बोले-हो रही कार्रवाई

जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश कुमार सिंह से जब इस बारे में जानकारी ली गई तो उन्होंने कहा कि हमने माल मलिहाबाद में एक फर्जी इंटर कालेज में छापा मारकर बंद करने के निर्देश दिए। हालांकि इस मामले कोई एफआईआर नहीं दर्ज करवाई गई, लेकिन लगातार एक टीम उस विद्यालय में जाकर इस बात को सुनिश्चित कर रही है कि वहां शिक्षण कार्य न होने पाए। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत बगैर मान्यता और मानक के एक भी स्कूल नहीं चल सकता है।

अधिनियम में प्रावधान है कि फर्जी स्कूल पर प्रतिदिन 10 हजार रुपए जुर्माना लगाया जाना है। जुर्माने की रकम अधिकतम एक लाख रुपए हो सकती है। जुर्माना न अदा करने पर भूराजस्व की तरह इसकी वसूली करने की व्यवस्था है। इसके बाद विद्यालय संचालक पर एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश हैं। हम नियमानुसार प्रभावी कार्रवाई कर रहे हैं। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी ने बताया कि हमने बाजारखाला में संचालित कुछ फर्जी स्कूलों पर कार्रवाई की है। इसके अलावा हम ऐसे स्कूलों की सूची तैयार कर रहे हैं जो अस्थायी मान्यता या सिर्फ पांचवीं की मान्यता पर पूरा इंटर कालेज या डे बोॄडग स्कूल चला रहे हैं। इनके संचालकों पर एफआईआर करवाई जाएगी।

राजधानी में चल रहा फर्जी दिल्ली एजूकेशन बोर्ड

राजधानी में सरकार की नाक के नीचे एक और फर्जी बोर्ड संचालित हो रहा है। बीएचएसई, दिल्ली के नाम से चल रहे इस बोर्ड ने प्रदेश में लगभग 150 स्कूलों को मान्यता दे रखी है। लखनऊ में लगभग दो दर्जन स्कूल इससे संबंद्घ हैं। मान्यता न होने के बाद भी यह बोर्ड हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परिक्षाएं आयोजित करा रहा है और विद्यार्थियों को मार्कशीट और सॢटफिकेट बांट रहा है। नतीजतन लखनऊ समेत प्रदेश के करीब 20 हजार विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लग गया है। इस बोर्ड के को ऑर्डिनेटर आर.के.श्रीवास्तव से जब रिपोर्टर ने स्टूडेंट बनकर बात की तो उन्होंने दावा किया कि बोर्ड का पंजीकरण दिल्ली में किया गया है और इसकी स्थापना 1930 में की गई थी। वैसे श्रीवास्तव बोर्ड के मुख्यालय और रीजनल आफिस तक के बारे में सही जानकारी नहीं दे पाए। ज्यादा पूछताछ करने पर फोन काट दिया गया। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में यह बोर्ड 2005 के बाद से सक्रिय है और स्कूलों को मान्यताएं देने का बड़े पैमाने पर बिजनेस कर रहा है।

लखनऊ में इसने प्रज्ञा बालिका इंटर कॉलेज सेमरा, सिन्हा सीनियर सेकेंडरी स्कूल काकोरी, विंध्याचल देवी इंटर कॉलेज पलटन छावनी, मां सरस्वती इंटर कॉलेज सरोजनी नगर, संगीता सीनियर सेकेंडरी स्कूल सरोजनी नगर, आरजे जूनियर हाईस्कूल, एसके मॉण्टेसरी दुबग्गा बाईपास, ग्रीन-वे पब्लिक स्कूल दुबग्गा बाईपास समेत अन्य स्कूलों का मान्यता दे रखी है। इस बोर्ड से मान्यता पाने वाले कई स्कूल लखनऊ के अलावा मैनपुरी, गाजीपुर, प्रतापगढ़, फीरोजाबाद, मथुरा, बांदा, आगरा, मुरादाबाद, वाराणसी, गोंडा, शीरामनगर, बागपत, बदायूं, जालौन, मेरठ, अलीगढ़, फैजाबाद, सीतापुर, उन्नाव, हरदोई और झांसी में चल रहे हैं। इसके बारे में राजधानी के विभागीय अधिकारियों से लेकर अन्य उच्च अधिकारियों को भनक तक नहीं है।

स्कूलों ने नहीं दिया नोटिस का जवाब

शिक्षा विभाग ने कई स्कूलों को नोटिस भेजी है, लेकिन अभी तक किसी भी स्कूल ने जवाब नहीं दिया है। ऐसे में शिक्षा विभाग सिर्फ प्रभावी कार्रवाई की बात करके कुंभकरणी नींद सो रहा है। जिन स्कूलों को नोटिस भेजी गई है, उनमें सरस्वती इंटरनेशनल स्कूल काजीखेड़ा मलिहाबाद, श्रीमती गुरुदेई प्यारेलाल पब्लिक स्कूल काकोरी, अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद स्कूल बड़ागांव स्कूल काकोरी, जीपी मेमोरियल स्कूल बड़ागांव काकोरी, जीनियस कॉवेंट स्कूल मौरा काकोरी, बाबा लक्ष्मणदास जूनियर हाईस्कूल कसमंडी खुर्द मलिहाबाद, जनशक्ति विद्या मंदिर सिसेंडी मोहनलालगंज, पन्ना बाबा स्कूल अमानीगंज मलिहाबाद, एसीडी पब्लिक स्कूल जबरौली मोहनलालगंज, वीएचसी एकेडमी गुरुकुल जेहटा काकोरी सहित काफी संख्या में स्कूल शामिल हैं। वैसे एक सच्चाई यह भी है कि अभी भी कई स्कूल ऐसे हैं, जिन पर विभाग की नजर ही नहीं पड़ी है।

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