साल 2021 का राष्ट्रीय शैक्षिक परिदृश्य, शिक्षा क्षेत्र में बड़े बदलावों की ओर सरकार ने बढ़ाए कदम

Look back 2021 education in India: लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस समारोह में संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'जब गरीब की बेटी, गरीब का बेटा मातृभाषा में पढ़कर 'प्रोफेशनल्स' बनेंगे तो उनके सामर्थ्य के साथ न्याय होगा।

Written By :  aman
Update:2021-12-20 00:23 IST

Look back 2021 education in India: लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस समारोह में संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'जब गरीब की बेटी, गरीब का बेटा मातृभाषा में पढ़कर 'प्रोफेशनल्स' बनेंगे तो उनके सामर्थ्य के साथ न्याय होगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को गरीबी के खिलाफ लड़ाई का मैं साधन मानता हूं।' यह समझने के लिए काफी है कि केंद्र की मौजूदा सरकार देश की शिक्षा-व्यवस्था को किस दिशा में आगे ले जाने की ओर अग्रसर है।

हालांकि, कोरोना महामारी ने बीते दो सालों में हमारे जीवन के सभी अंगों को प्रभावित किया है। मगर, उनमें सबसे ज्यादा कुछ प्रभावित हुआ है, तो वो है छोटे से लेकर बड़े बच्चों की शिक्षा व्यवस्था। अब जब देशवासी ये सोचने लगे थे, कि शायद वो समय आ गया है जब कोरोना से आगे बढ़कर बच्चे फिर स्कूलों की ओर रुख करेंगे, तो कोरोना के नए वेरिएंट ने बढ़ते कदम को फिर ठिठकने को मजबूर कर दिया है।

ताकि रटने-रटाने के दौर ख़त्म हों  

केंद्र की मोदी सरकार की शिक्षा नीति की तरफ नजर दौड़ाएं, तो पाते हैं कि वो परंपरागत शिक्षा पद्धति में पूरी तरह बदलाव चाहती है। देश में एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था लागू हो, जिसके तहत शुरुआत से ही एक बच्चे का सर्वांगीण विकास हो सके। उन बच्चों को रटने-रटाने के दौर से निकालकर ज्ञान, विज्ञान और बुद्धि-कौशल पर फोकस किया जा सके। गौरतलब है कि  भारत की शिक्षा नीति में 34 साल बाद यह बदलाव किया गया है। नई शिक्षा नीति में स्कूली बच्चों को मोटे और भारी स्कूली बस्ते से निजात, प्री प्राइमरी क्लास से लेकर बोर्ड परीक्षा, अंडर ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन के तरीके, एमफिल की डिग्री और रिपोर्ट कार्ड तक बहुत कुछ बदल गया। इस नई नीति के तहत भारतीय शिक्षा-व्यवस्था को नए सिरे से 21वीं शताब्दी की जरूरत के हिसाब से गढ़ा गया है। मतलब, स्पष्ट शब्दों में कहें तो स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के क्षेत्र में बड़े बदलाव को मंजूरी मिल गई है।

स्कूल छोड़ चुके 2 करोड़ बच्चों को वापस लाने पर जोर 

हालांकि, साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही शिक्षा क्षेत्र में ढांचागत सुधार का अनुमान लगाया जा रहा था। इसलिए नई शिक्षा नीति के रूप में जो ढांचा सामने आया है वह व्यावहारिक नजर आ रहा है। गौर करें तो इसमें पाठ्यक्रम को मूल मुद्दों तक ही सीमित रखा गया है। साथ ही, ज्ञानपरक वस्तुएं तथा कौशल विकास को जोड़ने की कोशिश की गई है। स्कूली शिक्षा में प्री-प्राइमरी को जोड़ा गया है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी इसके हिसाब से योजना तैयारी कर रही है। लेकिन जो सबसे अहम और खास बात है, वो ये है कि इस शिक्षा नीति में स्कूलों से बाहर हो चुके करीब 2 करोड़ बच्चों को एक बार फिर स्कूल लाने की तैयारी की गई है। खास बात है, कि इनमें 10वीं तथा 12वीं कक्षा में फेल हो चुके बच्चे भी शामिल हैं, जो धीरे-धीरे विद्यालय से दूर हो गए थे।

रुचि को मिले पंख 

इसके अलावा भी कई अन्य बदलाव होने हैं। जैसे- इन छात्रों का कौशल विकास के तहत उनकी ही पसंद के अनुसार किसी खास चीज में ट्रेनिंग दी जाएगी। इसी आधार पर उच्च शिक्षा में बिखरे ढांचे को एक नियम के भीतर लाने की तैयारी की जा रही है। इसमें कोर्स को कुछ इस तरह तैयार किया जाएगा, जिसमें छात्र किसी भी कोर्स को बीच में ही छोड़कर कोई अन्य विकल्प भी चुन सकेंगे। ताकि, इनका क्रेडिट ट्रांसफर भी हो सकेगा। कहने का लब्बोलुआब ये है कि नई शिक्षा नीति के तहत छात्रों की रुचि को सरकार ने 'पंख' देने की कोशिश की है।

शिक्षा क्षेत्र को मिले 93,224.31 करोड़ रुपए 

अब एक नजर यदि साल इस साल आम बजट में शिक्षा क्षेत्र को दी गई राशि पर दौड़ाएं तो पाते हैं, कि साल 2021-22 के आम बजट में शिक्षा मंत्रालय को 93,224.31 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। जिसके तहत उच्च शिक्षा विभाग को 38,350 करोड़ रुपए आवंटित हुए। बजट के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई शहरों में चल रहे विभिन्न अनुसंधान संस्थानों, यूनिवर्सिटी, और कॉलेजों की चर्चा की थी, जो सरकार के समर्थन से चल रही है। उन्होंने उदाहरण हैदराबाद का दिया जहां तकरीबन 40 मुख्य संस्थान हैं। उन्होंने कहा, इसी तरह देश के 9 अन्य शहरों में भी हम इसी पैटर्न पर समग्र ढांचा विकसित कर संस्थानों में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकेंगी। साथ ही, इन संस्थानों की स्वायत्तता बरकरार रहे इसका भी खास ख्याल रखा जाएगा।

इतना ही नहीं, बजट में एक बड़ी राशि आवंटित किए जाने के दौरान कहा गया, कि देश के 15,000 से अधिक स्कूलों के संचालन में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सभी पक्षों को शामिल किया जाएगा। ताकि, देश में गुणवतापूर्ण शिक्षा को और मजबूत किया जा सके। इसका मकसद स्कूलों को अपने क्षेत्र के लिए बेहतर 'उदाहरण' के रूप में भी विकसित करना है।

रक्षा मंत्रालय से संबद्ध 100 नए स्कूल खुलेंगे 

केंद्र सरकार देश में 100 नए सरकारी और निजी स्कूल खोलने की दिशा में आगे बढ़ चली है। खास बात है, कि ये स्कूल रक्षा मंत्रालय से संबद्ध होंगे। जैसा कि हमने पहले ही बताया, कि इसके लिए कैबिनेट से मंजूरी भी मिल चुकी है। देश में रक्षा मंत्रालय के तहत सैनिक स्कूल खोले जाएंगे। मौजूदा वक्त में हमारे देश में सिर्फ 33 सैनिक स्कूल ही हैं। लेकिन, निकट भविष्य में पढ़ाई की गुणवत्ता को और बेहतर करने के मकसद से तथा वहां से निकले छात्रों के देश में अहम योगदान दे सकने को लेकर सैनिक स्कूल खोलने की तैयारी की जा रही है। ये सभी सैनिक स्कूल सरकारी और निजी भागीदारी के तहत खोले जाएंगे। बता दें, कि वर्ष 2022-23 सत्र से इनमें पढ़ाई शुरू भी हो जाएगी। एक आधिकारिक बयान में बताया गया है, कि एकेडमिक ईयर 2022-23 से करीब 5,000 स्टूडेंट्स ऐसे 100 संबद्ध स्कूलों में छठी क्लास में एडमिशन ले पाएंगे।

इस प्रकार होगा 100 नए सैनिक स्कूलों का ढांचा 

दरअसल, केंद्र सरकार चाहती है, कि देश में नई शिक्षा नीति के अनुसार बच्चों को जो शिक्षा दी जाए उसमें सैनिक स्कूल बड़ी भूमिका निभाएं। अक्सर ऐसा विदेशों में देखा जाता रहा है।  इसी के मद्देनजर देशभर में 100 नए सैनिक स्कूल खोले जाएंगे। हालांकि, ये नए स्कूल सरकारी और निजी दोनों होंगे। लेकिन इसका सीधा संबंध रक्षा मंत्रालय की तरफ से चलने वाले सैनिक स्कूल से होगा। कहने का मतलब है, कि नए खुलने वाले सैनिक स्कूल भले ही निजी भागीदारी के तहत क्यों न खुलें, लेकिन उनका संचालन पहले से चल रहे सैनिक स्कूलों के जरिए होगा। यहां पढ़ाए जाने वाले कोर्स का पैटर्न भी वही होगा जो उन सैनिक स्कूलों में होता है। इसके लिए जो नीति तैयार की गई है उसके लिए पहले चरण में 100 स्कूलों को खोलने में विभिन्न राज्यों, गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) तथा निजी भागीदारी की मदद ली जाएगी।

लद्दाख में खुलेगा केंद्रीय विश्वविद्यालय

इसी साल संसद के मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा ने केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2021 पास किया। जिसके तहत केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय (सेंट्रल यूनिवर्सिटी) की स्थापना की जाएगी। गौरतलब है, कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद- 370 हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने नई यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा की थी। लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पास कर चुकी थी। संसद में इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जानकारी दी, कि लेह और लद्दाख केंद्र सरकार की प्राथमिकता में सबसे ऊपर है। अतः इस क्षेत्र में एक गुणवत्तापूर्ण संस्थान स्थापित होना ही चाहिए। बता दें, कि वर्तमान में लद्दाख में कोई केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं है। इसलिए, केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा की पहुंच सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में पहुंचाने के लिए इस नए विश्वविद्यालय को खोलने का फैसला लिया है।

आदिवासी बच्चों के लिए 'एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय'

वित्तमंत्री सीतारमण ने देश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में 758 'एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय' खोलने की घोषणा की। इसके लिए पिछले बजट की तुलना में आवंटित राशि बढ़ाई गई। बजट राशि को बढ़ाकर 1,418 करोड़ रुपए किया गया। एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय की लागत 20 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 34 करोड़ रुपए की गई है। जबकि,पहाड़ी तथा दुर्गम इलाकों में इसकी बजट राशि बढ़ाकर 48 करोड़ रुपए की गई है। बता दें, कि 'एकलव्य स्कूल आवासीय विद्यालय', देश में पहले से चल रहे नवोदय की तर्ज़ पर खुलेंगे। नवोदय विद्यालयों में ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र के प्रतिभाशाली बच्चों को पढ़ने का मौका दिया जाता है। यहां चयनित बच्चे कक्षा 6 से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करते हैं। दरअसल, एकलव्य विद्यालयों को तैयार करने के पीछे का मकसद आदिवासी इलाकों से आने वाले बच्चों को उन्हीं के परिवेश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल देने है। ताकि, आदिवासी क्षेत्र की स्थानीय कला, संस्कृति और खेल के साथ-साथ कौशल विकास को बढ़ावा मिल सके। एकलव्य विद्यालयों के जरिए आदिवासी बच्चों को पढ़ाई में सुविधा मिल सकेगी।

पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना का पुनरुद्धार 

सरकार द्वारा प्रदेश के स्थायी निवासियों के छात्रों के लिए 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना चलाई जा रही है l अब सवाल उठता है, कि पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति का अर्थ क्या होता है? इसका मतलब होता है, 10वीं के बाद दी जानी वाली छात्रवृत्ति l अतः इस योजना का लाभ केवल अनुसूचित जाति (एससी वर्ग) और अनुसूचित जनजाति (एसटी वर्ग) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग एवं विकलांग छात्र/छात्राओं को ही मिल सकता है। पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना में छात्रों को अधिकतम 10 हज़ार रुपये सालाना तक की मदद दी जाती है l इस बार सरकार ने पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना का भी पुनरूद्धार किया है। जिसके तहत केंद्र की सहायता में भी वृद्धि की गई है। आवंटन राशि भी बढ़ाई गई है।

अब 14 इंजीनियरिंग कॉलेज में होगी भारतीय भाषाओं में पढ़ाई

नई शिक्षा नीति के तहत 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों में पांच भारतीय भाषाओं में बीटेक प्रोग्राम की पढ़ाई की घोषणा की है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी AICTE आगामी शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए बीटेक पहले वर्ष की किताबों को क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध करवाने की तैयारियों में जुट गया है। अब इसे आसान भाषा में समझें, तो देश में पहली बार इंजीनियरिंग की पढ़ाई में अंग्रेजी भाषा आ  दिक्कतें छात्रों के लिए बाधा नहीं बनेगी। अब, कोई भी छात्र अपनी सुविधा के अनुसार, भारतीय भाषाओं का विकल्प चुन सकेगा। हालांकि, भविष्य की जरूरतों को देखते हुए उन्हें बीटेक की चार साल की पढ़ाई के दौरान अंग्रेजी भाषा एक विषय के रूप में पढ़ना अनिवार्य होगा। इस नए प्रयोग पर प्रधानमंत्री ने भी खुशी जाहिर की थी। आठ राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेज, पांच भारतीय भाषाओं जिनमें हिंदी, तमिल, तेलुगू, मराठी और बांग्ला में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं। इंजीनियरिंग के कोर्स का 11 भारतीय भाषाओं में अनुवाद के लिए एक टूल भी विकसित किया जा चुका है।

भारतीय साइन लैंग्वेज एक भाषा के रूप में

देश में पहली बार, भारतीय साइन लैंग्वेज को एक भाषा विषय का दर्जा दिया गया है। अब छात्र इसे एक भाषा के तौर पर भी पढ़ सकेंगे। उम्मीद है, कि इससे भारतीय साइन लैंग्वेज को बढ़ावा मिलेगा। साइन लैंग्वेज से दिव्यांग साथियों को बहुत बड़ी मदद मिलेगी। नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में पढ़ाई का प्रावधान बापू के सपनों को साकार करने की दिशा में एक और कदम है।

हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज

केंद्र सरकार ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए साथ ही डॉक्टरों की कमी से निपटने के लिए अब हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की है। सरकार ने देश के हर जिला अस्पतालों में एक मेडिकल कॉलेज बनाने की योजना तैयार की है।

सैनिक स्कूलों में अब बेटियों को भी मिलेगा प्रवेश  

देश के सैनिक स्कूलों में अब राष्ट्र की बेटियों को भी प्रवेश मिल सकेगा। अतः अब वो लड़कियां भी इन सैनिक स्कूलों में प्रवेश पा सकेंगी, जिन्हें सेना की ट्रेनिंग प्राप्त कर देश सेवा का सपना पूरा करना है। अब देश की बेटियां सेना में अधिकारी बनने का सपना भी पूरा कर सकेंगी। बता दें, कि इससे पहले अब तक सैनिक स्कूलों में सिर्फ लड़कों को ही प्रवेश मिलता था। सिर्फ लड़के ही सेना की ट्रेनिंग प्राप्त करते थे। लेकिन, अब इसमें बदलाव करते हुए लड़कियों को भी प्रवेश की छूट मिल गई है। दरअसल, मिजोरम स्थित सैनिक स्कूल, छिंगछिप में 2018-19 सेशन के तहत एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था। जिसमें गर्ल्स कैडेट्स को दाखिला दिया गया था। इस पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद सरकार ने फैसला लिया है कि सभी सैनिक स्कूलों में लड़कों के साथ-साथ अब लड़कियों को भी भी एडमिशन दिया जाएगा। 

इस प्रकार केंद्र सरकार ने इस वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में कई बदलावों के तहत पूरी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की भरपूर कोशिश की है। शिक्षाविद भी इन क़दमों को भविष्य की राह में मील का पत्थर बता रहे हैं। भले ही, अभी तुरंत इन प्रयासों का लाभ मिलता नहीं दिखेगा, मगर भविष्य में ये दूरगामी शुभ संकेतों का वाहक बनेंगे।   pm narendra modi government new education policy major changes examination system

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