Aadujeevitham Story: नजीब की असल जिंदगी पर आधारित आदुजीविथम को बनाने में मेकर्स को लगे 9 साल

Aadujeevitham Real Story: पृथ्वीसुकुमार की फिल्म आदुजीविथम जो कि नजीब की असल जिंदगी पर आधारित है, इस फिल्म को बनाने में मेकर्स को 9 साल का समय लग गया..

Written By :  Shikha Tiwari
Update: 2024-03-28 03:31 GMT

The Goat Life Aadujeevitham Story 

Aadujeevitham Story: इस फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। इस फिल्म को बनाने में मेकर्स को 9 साल से ज्यादा का समय लग गया है। अब कहीं जाकर ये फिल्म सिनेमाघरो में रिलीज होने को तैयार है। इस फिल्म का मेकर्स ने ट्रेलर रिलीज कर दिया है। जिसे दर्शको ने काफी ज्यादा पसंद किया है। मलयालम सुपरस्टार पृथ्वीराज सुकुमारन (Prithvi Sukumar)की सर्वाइवल एडवेंचर फिल्म द गोट लाइफ आडुजीवितम (The Goat Life Aadujeevitham) 28 मार्च 2024 को दुनियाभर के सिनेमाघरों में रिलीज होगी। एक्टर ने फिल्म की डबिंग का पूरा काम कर लिया है। यह फिल्म 4 भाषाओं में तमिल, तेलुगु, कन्नड़ व हिंदी भाषा में रिलीज होगी। यह एक महाकाव्य पर आधारित है, जो कि नजीब (Najeeb)की अविश्वसनीय सच्ची कहानी को दर्शाती है। चलिए आज हम आपको बताते है कि फिल्म आडुजीवितम की कहानी (Aadujeevitham Story) व इससे संबंधित अन्य अपडेट के बारे में जानते है। 

 'द गोट लाइफ' आडुजीवितम रियल स्टोरी

यह फिल्म 2008 के मलयालम के सबे लोकप्रिय बेस्टसेलर उपन्यास आदुजीविथम (Aadujeevitham Novel) पर आथारित है। बेन्यामिन द्वारा लिखित इस उपन्यास का 12 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस उपन्यास में नजीब नाम के एक युवक की सच्ची काहनी को दर्शाया गया है। जोकि 90 के दशक की शुरूआत में विदेश में अपना भाग्य तलाशने के लिए केरल के हरे-भरे समुद्र तटों पर पलायन कर गया था। ए मजबूर नजीब को न केवल शारीरिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है, बल्कि अलगाव व निराशा का भी सामना करना पड़ता है। 

Full View


आदुजीविथम में असली नजीब कौन है (Who is the real Najeeb in Aadujeevitham)-

केरल के एक गाँव में जन्मे नजीब (Najeeb)ने, कई अन्य लोगों की तरह, अपने परिवार व अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन का सपना देखा था। 1993 में वो सेल्समैन की नौकरी के लिए एक ऐसी यात्रा पर निकल पड़ता है, जो उसके जीवन को हमेशा के लिए बदल कर रख देती है। जब वह सऊदी अरब पहुँचता है, तब वहाँ जाकर पता चलता है,कि जो एजेंट ने उससे मीठी-मीठी बाते की थी,वो सब झूठ था। नजीब वहाँ खुद को ेक सुपरमार्केट की जगह रेगिस्तान में अलग-थलग पाया है। 

वहाँ एक क्रूर नियोक्ता जोकि 700 बकरियों को चराने के लिए मजबूर करता है। नजीब ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब उसने मुझे रोता देखा तब भी उसे मुझपर दया नहीं आई और वह मुझे पीटता था। मुझे खाने को बासी कुबू देता था। मैं कूबू को गीला करने के लिए बकरी के दूध का इस्तेमाल करता था और उसे खाता था। बकरियों को नहलाया तक नहीं जाता था। जिसकी वजह से उसके दूध से बदबू आती थी। नजीब ने बताया कि उसके पास एकमात्र पोशाक थी। और उसे बदलने के लिए भी कोई वैकल्पिक परिधान उपलब्ध नहीं कराया गया था। 

उन्होंने बताया कि बॉस के अलावा उनको किसी और से बात करने की अनुमति नहीं थी। उन्हें अरबी भाषा का ज्ञान नहीं था। यदि वो शुरूआत में सफेद की जगह काली बकरी पकड़ लेते थे, तो बॉस उन्हें पीटता था। तब भी नजीब को एक आशा थी, क्योकि वो अपनी पत्नी को उस अवस्था में छोड़कर आया था। जब वह गर्भवती थी। 

आखिर 2005 का वो दिन आ गया। जब उसका बॉस व उसके भाई बाहर थे, नजीब मौका पाकर भाग गया। काफी तकलीफों का सामना करने के बाद उसकी मुलाकात एक मलयाली से होती है। जहाँ से इस उपन्यास की नींव रखी गई। 

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