कोरोना राक्षस, अंत करेगा भारत- रामायण सीरियल के 'लक्ष्मण' से खास बातचीत

पहले रामायण जैसे सीरियल के लिये शूटिंग करना काफी चैलेंजिंग होता था। स्टूडियो, मेकप रूम, कास्टयूम, लाइट के साथ-साथ तकनीक में भी काफी बदलाव आ चुका है। अब चीज काफी हद तक आसान हो चुकी हैं। जैसे एसी स्टूडियों, एसी मेकप रूम, हस्के कास्टयूम, लाइट आदि।

Update:2020-05-03 14:57 IST

संदीप पाल

लखनऊ। रामायण में राम चन्द्र भगवान ने अधर्म के प्रतीक बन चुके रावण का अन्त कर लोगों को मुक्ति दिलायी थी। ठीक इसी प्रकार अज्ञात तरीके से लोगों को शिकार बना रहे कोरोना रूपी राक्षस का अंत भारत करेगा। हमें अपने प्रधानमंत्री व सरकार, कारोना वॉरियर्स के साथ अपने पर विश्वास करते हुये, इन सबका सहयोग करना चाहिए, ये कहना है रामायण में लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले एक्टर/प्रोडूसर सुनील लहरी का।

‘‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा’’। यह कहते हुए सुनील ने कहा कि मेरे पिता शिखर चंद्र लहरी भोपाल मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर थे। मेरी मां तारा लहरी व पिता दोनों ही चाहते थे कि मैं भी डाक्टर बनूं। लेकिन जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। मैं बनना चाहता था डाक्टर लेकिन ईश्वर ने मुझे एक्टर बना दिया।

सुनील का जन्म 9 जनवरी 1961 को मध्यप्रदेश के दामोह जिले में हुआ और इनको सबसे ज्यादा प्रसिद्धि रामायण में लक्ष्मण के रोल में मिली है।

सुनील के परिवार में शैलेन्द्र लहरी और शशेंद्र लहरी, 2 भाई हैं। सुनील की दो शादियां हुईं, इनकी पहली पत्नी राधा सेन और दूसरी पत्नी भारती पाठक हैं।और इनका निवास स्थान भी दमोह में ही है।

वैसे सुनील के दादा दादी की कहानी, विक्रम बेताल, परवीर चक्र समेत कुछ फिल्मों में अपनी अदाकारी दिखाई। लेकिन कुछ मजा नहीं आने के चलते उन्होने सिने जगत से दूरी बना ली। सुनील ने पहले अरुण गोविल के साथ एक प्रोडक्शन कम्पनी बना कर काम किया। अब वह अपनी प्रोडक्शन शिखर मूवीज व मूवी टैक के नाम से चला रहे है।

पहले कंटेंट अच्छा था

33 साल पहले कन्टेंट अच्छा था और दूरदर्शन अकेला मनोरंजन का साधन था। रामायण जैसे सीरियल पहले भी पसंद किये जाते थे और आगे भी पसंद किये जायेंगे। आज भी लोग रामायण का एपिसोड देखने के लिए उतावले दिखे हैं।

रामायण की टीआरपी

33 साल पहले रामायण को लेकर दर्शकों में जो क्रेज था। आज उससे ज्यादा क्रेज दर्शकों में देखने को मिल रहा है। लक्ष्मण की फैन फालोइंग पहले से ज्यादा है। लॉकडाउन में दर्शकों की विशेष मांग पर रामायण का टेलीकास्ट एक बार फिर दूरदर्शन पर हुआ और सीरियल सारे रिकार्ड तोड़ते हुए टीआरपी के मामले में सबसे आगे चला गया।

क्या कभी किसी प्रकार विरोघ हुआ था?

ऐसा मैंने भी सुना है लेकिन उस समय मैं लक्ष्मण के किरदार को निभाने में इतना व्यस्त था कि मेरा ध्यान इन बातों की तरफ नहीं गया। कहते हैं कि रामानंद सागर की रामायण कथा को लेकर केंद्र की तत्कालीन सरकार ने बहुत विरोध किया था। सरकार के सूचना मंत्री ने अपने कैबिनेट नोट में लिखा था कि रामायण भारत की मूल भावना के खिलाफ है। ऐसे सीरियल से भारत की धर्मनिरपेक्षता को खतरा उत्पन्न हो सकता है।

सुनने में तो यहां तक आया था कि रामानंद सागर ने निर्णय किया कि अगर सरकार से दूरदर्शन पर रामायण टेलीकास्ट करने की इजाज़त नहीं मिली तो वह इसे वीडियो कैसेट के माध्यम से लोगों तक पहुंचायेंगे। तत्कालीन सरकार से विवाद की यह बातें प्रेम सागर (रामानंद सागर के बेटे) ने अपने पिता की बायोग्राफी ‘एन एपिक लाइफः रामानंद सागर’ में लिखी हैं।

जनता का रिएक्शन

रामायण सीरियल का ये असर था कि जब हम लोग घूमने जाते तो लोग चरण स्पर्श करते और अभी भी लोग इसी तरह से भीड़ लगा देते हैं। रामायण सीरियल में काम करने वाले सभी कलाकार जिस सम्मान के हकदार थे उन्हे वह सम्मान व प्यार दर्शकों से भरपूर मिला। आज 33 साल बाद भी वही सम्मान, प्यार, व उत्साह बरकरार है। दोबारा रामायण के टेलिकास्ट से यह बात साबित हो गई है। सीरियल के सभी कलाकारों को कोई परेशानी नहीं है। मैं दर्शकों का शुक्रगुजार हूं। न जाने कितने कलाकार आये और गुमनामी में खो गये। किसी को उनका पता तक नहीं। लेकिन लक्ष्मण की छवि लोगों के दिलों दिमाग पर आज भी है।

पहले और आज की शूटिंग में परिवर्तन

पहले रामायण जैसे सीरियल के लिये शूटिंग करना काफी चैलेंजिंग होता था। स्टूडियो, मेकप रूम, कास्टयूम, लाइट के साथ-साथ तकनीक में भी काफी बदलाव आ चुका है। अब चीज काफी हद तक आसान हो चुकी हैं। जैसे एसी स्टूडियों, एसी मेकप रूम, हस्के कास्टयूम, लाइट आदि।

क्या रामायण शूटिंग के दौरान कलाकारों के पैरों में छाले पड़ गये थे?

महाराष्ट्र गुजरात बार्डर के समीप उमर गांव में रामायण सीरियल की शूटिंग के दौरान कई बार पारा 45 डिग्री व उससे अधिक होता था। ऐसे में शूटिंग करना काफी चैलेंजिंग होता था। कई बार कलाकारों के पैरों में छाले पड़ जाया करते थे। लेकिन उस समय हम सभी में एक अलग प्रकार का जोश था। काम के प्रति सच्ची लगन ने गर्मी, भूख-प्यास सब खत्म कर दी थी।

थियेटर करने का ख्याल कब और कैसा आया?

जब मैं मुम्बई के स्कूल में पढ़ाई कर रहा था। तब छुट्टी के दौरान में ओम पुरी के थियेटर को ज्वाइंन किया। उससे पहले मैं स्कूल में प्ले इत्यादि करता था और मुझे कई बार हवा महल में काम करने का मौका मिला। यहीं से मेरी थियेटर के प्रति रुचि बढ़ी। थियेटर के अलावा मुझे हॉकी, क्रिकेट खेलने का शौक था। लेकिन स्कूल स्तर के आगे नहीं खेल सका।

आपअपने पुत्र कृष को लेकर क्या सोचते हैं?

मैंने शशि कपूर से एक बात सिखी कि अपने पुत्र को कभी स्टारडम में नहीं पालना चाहिए। उन्होने अपने पुत्रों को जीवन की सच्चाई से वाकिफ किया। मैंने अपने बेटे कृष को खुद की मेहनत से आगे बढने की प्रेरणा दी है।

आपको किनका सहयोग/साथ मिला?

मैंने ख्वाजा अब्बास जैसे महान फिल्म कहानीकार के साथ काम किया है। स्मिता पाटिल, चेतन आनन्द, ऋषि दा का मुझे सिने जगत में बहुत सहयोग/साथ मिला है। मैंने फिल्म जगत में कदम ” नक्सलवादी” से किया जो की 1983 में आई थी। रामायण के बाद भी रहा 1993 में आजा मेरी जान और बहारों की मंजिल 1991 में आया जबकि रामायण 1987 से 1990 के बीच चला था इस तरह से इसका फिल्मी कैरियर रहा।

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