पिता की पिटाई के खौफ़ से ' ट्रेजडी किंग ' ने अपना नाम बदलकर दिलीप कुमार रख लिया था

दिलीप कुमार एक पठान परिवार से संबंध रखते थें। उन्हें अपने पिता से बहुत डर लगता था।

Written By :  Priya Singh
Update:2021-12-20 15:12 IST

फोटो साभार : सोशल मीडिया

सदी के महानायक में से एक अभिनेता दिलीप कुमार ( Dilip Kumar) अब हमारे बीच नहीं रहें। हालांकि दिलीप कुमार को आज भी फिल्म उद्योग में उनके श्रेष्ठ योगदान के लिए याद किया जाता है। मुगल - ए - आजम( Mughal - E - Azam), क्रांति (Kranti), सौदागर ( Saudagar) , राम और श्याम ( Ram Aur Shyam) , कर्मा( Karma) , कानून अपना अपना ( Kanoon Apna Apna) ,देवदास ( Devdas) , नया दौर ( Naya Daur) आदि दिलीप कुमार की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल है। इन फ़िल्मों में दिलीप कुमार के अभिनय को खूब सराहा गया। लेकिन किसे पता था कि जिस अभिनेता के अभिनय की सराहना पूरी दुनिया करती है। उनके पिता को उनका अभिनय करना पसंद न होगा।

दिलीप कुमार के पिता को पृथ्वीराज कपूर का एक्टिंग करना पसंद नहीं था

अभिनेता दिलीप कुमार ने एक इंटरव्यू में बातचीत के दौरान बताया कि उनके पिता लाला ग़ुलाम सरवर ( Lala Ghulam Sarwar) फिल्मों के सख्त खिलाफ़ थें। उनके पिता को उनका अभिनय करना बिल्कुल पसंद नहीं था। दिलीप कुमार के पिता नहीं चाहते थें कि वो अभिनेता बनें। दिलीप कुमार ने बताया कि उनके पिता के अजीज दोस्त दीवान बसेश्वर नाथ सिंह कपूर के बेटा पृथ्वीराज कपूर ( Prithviraj Kapoor) फ़िल्मों में एक्टिंग किया करते थें। अभिनेता के पिता अपने दोस्त से अक्सर ये शिकायत किया करते थें कि तुमने ये क्या कर रखा है, जो इतना नौजवान और सेहतमंद लड़का देखो यह क्या करता है।

पिता के खौफ से बदला था दिलीप कुमार ने अपना नाम

दिलीप कुमार ने अपने एक्टिंग करियर के बारे में बात करते हुए कहा, " जब मैं फिल्म में आया, तो पिताजी पठान आदमी थें, गुस्सावर तबीयत थी उनकी। खौफ़ था कि जब उनको मालूम होगा तो नाराज़ बहुत होंगे। उस वक़्त दो - तीन नाम सामने रखे गए कि युसूफ खान नाम रखा जाए या दिलीप कुमार रखा जाए या बासुदेव रखा जाए? तो मैंने अपनी ज्यादती तौर पर कहा कि युसूफ खान मत रखिए और जो आपके दिल में आए आप नाम रख दीजिए।" इसके बाद उन्होंने कहा कि दो - तीन महीने बाद जब मैंने एक इश्तेहार देखा तो मालूम हुआ कि मेरा नाम दिलीप कुमार है।

ट्रेजडी वाली कहानियों का असर ज्यादा होता है

इंटरव्यू में बात करते हुए महेंद्र कौल ने दिलीप कुमार से पूछा कि पठान आमतौर पर गुस्से वाले लोग होते हैं, आर्ट, अभिनय इन सबसे दूर रहते हैं। ऐसे में ये पेशा आपने कैसे अपने लिए चुन लिया। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, " मैं खुद भी इस बात को समझ नहीं पाया। मुझे लगता है कि मैं इत्तेफाक से एक एक्टर बन गया। कुछ शायद मेरे बचपन के जो वक्यात और हादसात थें, उनकी कुछ नौइयत इस किस्म की थी कि अंदरूनी तौर से जो जज्बाती कैफ़ियत थी, सदीद थी। मानव कौल ने आगे उनसे पूछा कि आप ट्रेजेडी के शहंशाह बन चुके हैं तो वो हंसते हुए कहते हैं, " हां मैं फिल्म के आखिर में मर जाता हूं। दरअसल, ट्रेजडी वाली कहानियों का असर ज्यादा होता है। खुशी जल्दी गुजर जाती है, जबकि दर्द अपना असर छोड़ जाता है। मुझे लगता है कि ट्रेजडी वाली फिल्मों का असर इसलिए भी ज्यादा होता है।"

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