"An Insignificant Man" बनाना केजरीवाल की चमचागीरी नहीं'

भ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन से खड़ी हुई आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल पर बनी फिल्म 'एन इनसिग्निफिकेंट मैन' सिर्फ एक डॉक्यूमेंट्री नहीं है, बल्कि यह उन संघर्षो को बयां करती है, जिससे जूझते हुए कोई पार्टी सरकार बनाकर आलोचकों को अवाक कर देती है।

Update:2017-11-08 11:41 IST
"An Insignificant Man" बनाना केजरीवाल की चमचागीरी नहीं'

नई दिल्ली : भ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन से खड़ी हुई आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल पर बनी फिल्म 'एन इनसिग्निफिकेंट मैन' सिर्फ एक डॉक्यूमेंट्री नहीं है, बल्कि यह उन संघर्षो को बयां करती है, जिससे जूझते हुए कोई पार्टी सरकार बनाकर आलोचकों को अवाक कर देती है। कई लोग इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को अरविंद केजरीवाल की प्रचार फिल्म बता रहे हैं, लेकिन फिल्म के निर्देशक द्वय डंके की चोट पर कहते हैं कि 'हमने केजरीवाल की चमचागीरी के लिए फिल्म में पांच साल नहीं लगाए।'

फिल्म 'शिप ऑफ थीसियस' से दुनियाभर से तारीफ बटोर चुके आनंद गांधी के दो सहयोगी और फिल्म के निर्देशकों खुशबू रांका और विनय शुक्ला ने आम आदमी पार्टी 400 घंटे पर्दे के पीछे की गतिविधियों को शूट कर यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म तैयार की है।

खुशबू रांका कहती हैं, "अगर कोई फिल्म विचार के स्तर पर कुछ नया नहीं दे सकती तो वह बेकार है और ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी पार्टी के अंदर चल रही वास्तविक बहसों, मनमुटाव और तमाम गतिविधियों को शूट करके फिल्म बनाई गई है। इसमें किसी का इंटरव्यू नहीं है, कोई सूत्रधार कहानी नहीं गढ़ रहा, हमने बस घटनाओं को जस का तस रखा है।"

यह भी पढ़ें .... टोरंटो में हुआ केजरीवाल की ‘एन इनसिग्निफिकेंट मैन’ का प्रीमियर, जल्द आएगी फिल्म

यह एक नॉन फिक्शन पॉलिटिकल फिल्म है, भारत में इस तरह की फिल्में कम ही देखने को मिलती हैं, क्योंकि इस तरह की पॉलिटिकल फिल्मों में बेशुमार चुनौतियां होती हैं तो इस फिल्म के दौरान क्या चुनौतियां रही? जवाब में विनय कहते हैं, "हमने जर्नलिस्टिक अप्रोच के साथ फिल्म बनाई है। किसी की चमचागीरी के लिए नहीं। आम आदमी पार्टी का इस फिल्म पर किसी तरह का कोई कंट्रोल नहीं है। समाज का नियम है कि आप कुछ भी करो, कुछ लोग प्रशंसा करते हैं, तो कुछ आलोचना। लोकतंत्र में ऐसा ही होता है, तभी तो ये लोकतंत्र है। 17 नवंबर को जब यह फिल्म रिलीज होगी, तब पता चलेगा कि इसमें केजरीवाल की कई चीजों की आलोचना हुई है और ऐसा हमने संतुलन बैठाने के लिए नहीं की है, बल्कि स्वाभाविक तौर पर हुई है।"

लेकिन केजरीवाल ही क्यों? इस पर खुशबू कहती हैं, "एन इनसिग्निफिकेंट मैन का मतलब है एक मामूली आदमी, जो फर्श से अर्श पर पहुंचा है। यह डॉक्यूमेंट्री किसी पार्टी का गुणगान करने के लिए नहीं बनाई गई है, बल्कि इसके मूल में एक तथ्य है कि किसी पार्टी का जन्म कैसे होता है, उसका विस्तार कैसे होता है, और यही सब हमने इस फिल्म के जरिए दिखाया है।"

यह भी पढ़ें .... अन्ना हजारे का ऐलान, कहा- मेरा केजरीवाल से अब कोई रिश्ता नहीं

निर्देशकों का कहना है कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेताओं से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें माकूल जवाब नहीं मिला। विनय कहते हैं, "फिल्म में अरविंद केजरीवाल, योगेंद्र यादव और आम आदमी पार्टी के कई नेताओं को दिखाया गया है और शीला दीक्षित और मोदी की रैलियों व उनके बयानों के अंश भी हैं, लेकिन इन दोनों प्रमुख पार्टियों से संपर्क करने पर हमें कुछ खास समर्थन नहीं मिला।"

योगेंद्र यादव हालांकि अब अलग पार्टी बना चुके हैं, लेकिन फिल्म के निर्देशकों को इससे फर्क नहीं पड़ता। उनका मानना है, "किसी लोकतांत्रिक पार्टी में ऐसा ही होता है, लोग आते-जाते रहते हैं, लेकिन पार्टी वहीं रहती है। ठीक वैसा ही योगेंद्र यादव के साथ हुआ। लोग बदलते हैं, लेकिन विचारधारा बनी रहती है। हर 10 साल में एक नई पार्टी का जन्म होता है। इसलिए हमने एक टाइमलेस फिल्म बनाई है।"

यह भी पढ़ें .... VIDEO VIRAL: केजरीवाल ने गाया गाना, सोशल मीडिया पर खूब हो रहा शेयर

इस फिल्म पर तकनीकी रूप से खासी रिसर्च की गई है। काम वर्ष 2012 में शुरू किया गया था। कुल मिलाकर डेढ़ साल में फिल्म की शूटिंग हुई, उसके बाद दो साल फिल्म की एडिटिंग में लगे और तब जाकर 90 मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री तैयार हुई है।

आम मसाला फिल्मों पर सेंसर बोर्ड के रवैये की तरह इस डॉक्यूमेंट्री पर भी बोर्ड का वाहियात रवैया रहा। मसलन, सेंसर बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने फिल्म में शीला दीक्षित और मोदी के नाम और चेहरा दिखाए जाने पर इनसे एनओसी लाने को कहा था।

यह भी पढ़ें .... केजरीवाल ने उपचुनाव में जीत पर मतदाताओं को सराहा, कहा हम खुश हुए

विनय कहते हैं, "हमने फरवरी में सेंसर बोर्ड के पास यह फिल्म भेजी थी। तब निहलानी जी ने कहा था कि 'आपकी फिल्म को हम पास कर देंगे, बस आपने फिल्म में जिन-जिन भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के नाम और चेहरे दिखाए हैं, उनसे अनापत्ति प्रमाणपत्र यानी एनओसी ले आइए।' यह तो वही बात हुई कि आप चांद को छूकर लौट आइए। हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा-खासा सपोर्ट मिला। इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री एसोसिएशन ने बिना किसी कट और आपत्ति के फिल्म को ज्यों का त्यों पास कर दिया.. इसे कहते हैं समझ।"

--आईएएनएस

Tags:    

Similar News